कहा कहा मची है डूबते जहाज सी भगदड़ ?
कहा कहा मची है डूबते जहाज सी भगदड़ ?
पिछले कुछ महीनो से लग रहा है कि कांग्रेस (Congress) व आप पार्टी (AAP) में भगदड़ सी मच गयी है. सप्ताह भर पहले ही दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली के भाजपा (BJP) में शामिल होने के कुछ दिन ही बाद कांग्रेस की ही एक और नेता दिल्ली माहिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष बरखा सिंह ने भी जिस तरह लवली की भाजपा की बाह थामी है, उससे तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस में भगदड़ की स्थिति बन चुकी है.
ध्यान रहे कुछ ही समय पहले कर्नाटक के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व पूर्व मुख्य मंत्री एस एम कृष्णा ( S M Krishna) कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का कमल थाम चुके है. इससे थोड़ा ओर पहले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों के समय भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था. इन कांग्रेस के इन नेताओं में उत्तरप्रदेश की पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी थी.
ऐसी ही बुरी हालत उतराखंड में भी देखने को मिली थी, तब कांग्रेस के अधिकांश दिग्गजों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. दिल्ली के स्थानीय चुनावों से ठीक पहले आम पार्टी के विधायक ने भी आप पार्टी छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली. कांग्रेस व आप के लिए यह एक महज दुर्योग नहीं हो सकता कि उसके ऐसे भगदडी नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जो भाजपा में अपना भविष्य देख रहे है.
कुछ सालो पहले तक कांग्रेस या अन्य दल छोड़कर बीजेपी में आने वाले नेताओं को उचित सम्मान नहीं मिलता था लेकिन उतराखंड में हुए भारी फेर बदल के दोरान कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं व उत्तरप्रदेश में कांग्रेस व अन्य पार्टियों को छोड़ने वाले नेताओं को बीजेपी में मिले सम्मान से बीजेपी की स्वीकार्यता विपक्षी नेताओं में भी बढ़ने लगी है.
वेसे भी मोदीजी के सामने विपक्ष बहुत बौना है, अत: राजनीति में ही अपना भविष्य (Career / Profession) बना चुके नेताओं को बीजेपी में ही अपना भविष्य नजर आने लगा है. वेसे भी डूबते हुए जहाज में कोई कब तक सवारी करेगा. यदि कांग्रेस, आप पार्टी व कुछ अन्य पार्टी के नेताओं को उनकी पार्टियों के जहाज डूबते हुए दिख रहे है तो भगदड़ तो मचनी है ही. वो अलग बात है कि आप पार्टी के तो नेता नए-नवेले है, अत: उनकी स्वीकार्यता भाजपा में उतनी नहीं हो सकती जितनी कि कांग्रेस मुक्त भारत के लिए कांग्रेसी नेताओं की.
वेसे भी सिद्धांतो की राजनीति का दौर अब समाप्त हो चुका है. राजनीति एक ऐसा व्यवसाय बन चुकी है, जिसमे सारे निर्णय अपने निजी लाभ-हानि के हिसाब से होने लगे है. ऐसी हालत में डूबते हुए जहाज की कोई कब तक सवारी करेगा ?