Wednesday, September 13, 2017

न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-22)  

न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-22)

 

हम वायु दाब की शक्ति व उसकी कार्य प्रणाली के बारे में चर्चा कर रहे थे

7– अस्पताल में ड्रिप चढ़ाने का अनुभव जीवन में सबको ही रहा होगा। ड्रिप बराबर व सही मात्रा में कार्यरत रहे, उसके लिए डॉक्टर एक सुई  ऊपर की ओर बोतल के पेंदे में लगा देता हैं, ताकि उससे हवा को बोतल में प्रवेश का रास्ता मिल जाय व ड्रिप सही चलती रहे। इसके बिना ड्रिप रूक जायेगी अथवा प्लास्टिक की बोतल पिचक जाती हैं, और वह भी एक समय सीमा के बाद काम करना बन्द कर सकती हैं।

8- कभी कच्चे रास्ते में आपने गाड़ी अवश्य चलाई होगी। गाड़ी के पीछे मिट्टी का गुब्बार उड़ता नजर आता हैं। गाड़ी अपने रफ़्तार से हवा को चीरती हुई आगे दौड़ती हैं, तो वायु उस जगह को भरने के लिए गाड़ी के पीछे तीव्र गति से दौड़ती हैं। उसकी इस गति से मिट्टी भी साथ में उड़ने लगती हैं। वायु की तीव्रता व ताकत का इससे अनुमान लगाया जा सकता हैं।

9- पहले खाना बनाने के लिए स्टोव का उपयोग बहुतायत से किया जाता था। गांवों में टायरों में हवा भरने के लिए पम्प का प्रयोग किया जाता था। दोनों में हवा को आगे पहुंचाने की एक ही तकनीक होती थी। हवा एक मात्रा तक अंदर जाती थी, उसके बाद पम्प को दबाने में जोर लगाना पड़ता था, तब आदमी समझ जाता था कि अब हवा पूरी हो गई हैं। अंदर की वायु दाब मारने लग जाती थी, जिससे पम्प का दबना मुश्किल हो जाता था। वायु दाब की क्षमता का उपयोग कर विज्ञान ने भी बहुत अविष्कार किये, जिनका उपयोग हम आज भी बड़े पैमाने पर करते आ रहे हैं।

10- हम परफ्यूम का उपयोग करते हैं। तरल शॉप का उपयोग करते हैं। शैम्पू का उपयोग करते हैं। फोम का प्रयोग करते हैं। इन सभी में वायु दाब का ही उपयोग होता हैं। वायु के अंदर प्रवेश करते ही, अंदर की चीज बाहर आने लग जाती हैं।

11- घरों में ज्युसर मिक्सचर आदि कई सामान ऐसे रहते हैं, जिनके नीचे रबर के उल्टे दीपकनुमा  आकृति से दिखाई देने वाले गुटके लगे रहते हैं। मशीन के वजन से उन लचीले रबर के गुटको के अंदर की हवा निकल जाती हैं, और मशीन फर्श पर स्थिर हो जाती हैं। टेबल के ऊपर केवल काँच ही लगाया जाना हो, तो वहां पर भी ऐसे ही रबर के गुटकों का उपयोग किया जाता हैं। काँच के वजन से गुटके दबते हैं, व उनमें से हवा निकल जाती हैं। उससे काँच उन गुटकों से चिपक सा जाता हैं। जब तक गुटके सही रहते हैं, ऊपर लगा ग्लास सुरक्षित रहता हैं। यह भी वायु दाब का ही खेल हैं।

12- हम कोल्ड ड्रिंक पीते हैं। पाइप से मुँह में खींचते हैं। यह भी वायु दाब के कारण होता हैं।

13- कई लोग हुक्का पीते हैं। तम्बाकू में निकोटीन की मात्रा कम करने हेतु हुक्के के नीचे एक जगह ऐसी बनाई जाती हैं, जिसमें पानी भरा रहता हैं।दूसरी तरफ मुँह में जाने वाली नलकी होती हैं, जो पानी से ऊपर की ओर लगी रहती हैं। जब धूम्रपान करने वाला हुक्का खीचता हैं, तो धुम्र का पहला प्रवेश पानी में  होता हैं, जिससे उस धुँए में समाहित निकोटीन की मात्रा पानी में घुल जाने से कम हो जाती हैं। हुक्के में उस धूम्र के पानी से होकर गुजरने के कारण पानी में बुलबुले बनते हैं, और हुक्के में गुड़-गुड़ की आवाज आती हैं। इस तरह के हुक्के आज भी प्रचलित हैं। इसमें हुक्के के दूसरी तरफ जो पाइप लगी होती हैं, जिससे हम हुक्कपान करते हैं, वो पानी में नहीं होने से, हमारे मुँह में केवल धुम्र ही आएगा, और वो धूम्र अनिवार्य रूप से पानी के अंदर से गुजरकर ही आयेगा। यह सब भी वायु क़ी विशेष कार्य प्रणाली से ही सम्भव हो पाता हैं।

शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा

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