न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-21)
न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-21)
हमें वायु दाब की कार्य प्रणाली व उसके ताकत की वास्तविकता को भी समझना होगा। मैं आज आपका ध्यान दैनिक जीवन में काम आने वाली उन बातों की ओर खीचना चाहता हूँ, जिससे हम वायु दाब की शक्ति व उसकी कार्य प्रणाली का सहजता से अनुमान लगा सकते हैं –
- आजकल रसोई में हम air tight डिब्बे काम में लेते हैं। डिब्बे के ढक्कन पर लगे लिवर को दबाने से डिब्बे के अंदर की हवा कुछ कम हो जाती हैं। लिवर पर दाब हटते ही वह अपने स्थान पर आ जाता हैं और डिब्बे में से निकली वायु से डिब्बे में जो थोडा सा रिक्त स्थान बनता हैं, उससे डिब्बे के चारों ओर वायु दाब उसी अनुपात में बढ़ जाता हैं, जिससे ढक्कन मजबूती से बन्द हो जाता हैं। उसे खोलने के लिए हमें पहले उसी लिवर को दबाना पड़ेगा, जिससे वायु डिब्बे के भीतर प्रवेश कर सकें वरना डिब्बा नहीं खुलेगा।
- कई बार हमें दो कटोरी अथवा दो गिलास को (जो इकट्ठी रख दी गई हो) एक दूसरे से अलग करने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं। जब तक किसी भी रास्ते से वायु का प्रवेश, दोनों के बीच अंदर की ओर नहीं होगा, तब तक हम उन बर्तनों को एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते हैं।
- हम कनस्तर (पीपे / डिब्बे)) से तेल को छोटे बर्तन में निकालते हैं। आपने देखा होगा की पीपे के भरे होने के बावजूद भी तेल तीव्र गति से बाहर नहीं आता हैं। न हम उसकी धार को समगति में स्थिर कर पाते हैं। तेल रुक रुक कर व उछल उछल कर निकलता हैं। जितना तेल एक बार में बाहर आता हैं, वो खाली जगह भरने, वायु पीपे में प्रवेश होती हैं, तब जाकर पुनः तेल बाहर आएगा। यह उस स्थिति में होता हैं, जब आप हवा के प्रवेश की जगह नहीं रखते हैं। आप यदि निकास की आधी जगह ही काम मे लेते हैं, तो यह परेशानी नहीं होगी, क्योंकि निकास द्वार की खाली जगह से वायु भीतर प्रवेश करती रहेगी। कई समझदार व अनुभवी लोग पीपे के निकास द्वार के विपरीत कोने में एक छोटा सा छेद कर देते हैं, उससे वायु का प्रवेश खाली हो रही जगह में सुगमता से होने लगता हैं। फिर आप एक ही लय और धार से तेल को आसानी से बाहर निकाल सकते हैं।
- हम छोटे थे। गाँव में रहते थे। ट्रेक्टर के लिए डीजल लाने हेतु दो तीन लोहे के ड्रम (दो सौ लीटर के) घर में रखने पड़ते थे। बरसात के बाद काम कम होने पर एक दो खाली ड्रम छत पर रख देते थे। वो ड्रम दिन में दो बार बड़े जोर से आवाज करते थे। आवाज करने का समय भी रोज लगभग एक साही रहता था। किसी साथी ने कहा की तुम्हारे छत पर भूत रहता हैं, जो ड्रम में रहता हैं, जिससे यह जोर की आवाज होती हैं। वर्षों तक से मुक्त नहीं हो पाये। बाद में समझ में आया कि यह सारा खेल वायु दाब की वजह से हो रहा था, न कि भूत से। तीव्र गर्मी से ड्रम की वायु गर्म होकर फैलती थी, तब बंद रखे ड्रम की ऊपरी चद्दर बीच में से ऊपर उठ जाती थी, जिससे तेज आवाज होती थी। जब शाम को ड्रम में स्थित वायु ठण्डी होने लगती, तब अंदर खाली जगह बनने लगती, और ड्रम पर वायु दाब बढ़ने लगता, जिससे ऊपर उठी हुई चद्दर पुनः नीचे की तरफ दब जाती थी। इससे दुबारा जोर से आवाज होती। यही क्रम रोज का था।
- जब हमने तैरना सीखा, तब हमारे पास ट्यूब की सुविधा नही थी। हम रात को पहनने वाले सूती पाजामे को अपने साथ ले जाते थे। कमर के नाड़े की रस्सी से एक तरफ का पूरा खुला हिस्सा मजबूती से बांध लेते थे। दूसरी तरफ दोनों पायन्चों पर गांठ मार देते थे। अब इस पाजामे को पानी में डालकर पूरा गीला कर देते थे। फिर दोनों तरफ से बन्द पाजामे की एक टांग के बीच के हिस्से को मुँह से लगाकर उसमें हवा भरते। इसी तरह पाजामे की दूसरी टांग में भी हवा भर देते। हमारा ट्यूब तैयार हो गया। हमने कपड़े में हवा भरकर ट्यूब तैयार कर लिया। उसी की सहायता से हमने तैरना सीखा। हमारे पास तो पीने के पानी की जो केतली रहती थी, वो भी मोटे सूती कपड़े की ही रहती थी। हम बाहर जाते तब पीने का पानी उसी में भरकर ले जाते थे। उसमें पानी बहुत ठण्डा रहता था। जैसे धातु से बने घड़े से ज्यादा ठंडा पानी मिटटी के घड़े में रहता हैं, वैसा ही फर्क कपड़े की केतली व धातु अथवा प्लास्टिक से बनी केतलियों के पानी की ठंडक में रहता था। कपड़े की केतली का पानी मिटटी के घड़े के समान या उससे भी ज्यादा ठंडा रहता था। यह दोनों उदाहरण भी वायु दाब को समझने हेतु आपके समक्ष रखे हैं। हवा भरने के बाद हम उस पाजामे की सहायता से तैरना सीखते थे। पानी के ऊपर रहने से हमारा पूरा भार उस पाजामे पर भले ही नहीं पड़ता था, परन्तु जितना भी पड़ता था वह कम नहीं था, लेकिन कपड़े के अंदर की हवा नहीं निकलती थी। जब कुछ कम हो जाती तो पुनः मुंह से हवा भर लेते थे। दरअसल कपड़े की बुनाई में जो धागों का बारीक़ अंतर रहता था, वो छिद्र पानी की परत से बन्द हो जाते थे, फिर हवा को बाहर निकलने की जगह नहीं मिलती क्योंकि उस पर बाहर का वायु दाब भी कार्यरत रहता था।
- हम कई बार कोल्ड ड्रिंक की बोतल जल्दी ठण्डी करने की इच्छा से फ्रीजर में रख देते हैं। भूलवश बोतल उसी में पड़ी रह जाती हैं। यदि बोतल का ढक्कन पूरी तरह से टाइट हैं, तो सवेरे वो कांच की बोतल टूटी हुई मिलेगी। यदि बोतल प्लास्टिक की हुई तो पिचकी हुई मिलेगी। यह भी वायु दाब की वजह से होता हैं। जब बोतल में स्थित तरल ज्यादा ठंडक पाकर बर्फ में परिवर्तित हो जाता हैं, तो बोतल में खाली जगह बन जाती हैं। उस खाली जगह में प्रवेश करने हेतु वायु का दाब बोतल पर पड़ने लगता हैं, जिससे कांच की बोतल टूट जाती हैं व प्लास्टिक की बोतल पिचक जाती हैं। यदि इन बोतलों का ढक्कन पूरा बन्द न हो अथवा कहीं से वायु को अंदर प्रवेश का रास्ता मिल जाता हो तो फिर ऐसा घटित नहीं होगा।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा
Related Post
2 Responses to न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-21)
Add a Comment
Click here to cancel reply
Leave a Reply Cancel reply
Tags: Articles,Extraordinary – असाधारण,Good News अच्छी खबरे,H2O,International अन्तराष्ट्रीय,Must Read,National राष्ट्रीय,Nature प्रकृति,Shiv Ratan Mundra,गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत,जल और पृथ्वी,न्यूटन,न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त,ब्रह्मांड,भारतीय पुरातन विज्ञान,वायु,वायु तत्व,शिव रतन मुंदड़ा
आपके लेख के अंतिम दो बाते सही प्रतीत नहीं होती है –
1. सूती कपड़े की पीने के पानी की जो केतली में पानी ठण्डा होने का वायु दाब से सम्बन्ध समझ नहीं आ रहा है.
2. कोल्ड ड्रिंक की बोतल की बात भी सही नहीं लगती क्योकि बर्फ ज़मने से बर्फ पानी से ज्यादा जगह घेरता है.जिससे बोतल में उपस्थित हवा पर बाहर निकलने का दबाव (आतंरिक वायु दाब) बनने से बोतल टूटती है, न कि बाहरी वायु दाब से.
आप द्वारा लिखी गई दोनों बातों में से पहली बात – कपड़े की केतली का वायु दाब से क्या सम्बन्ध हैं?
वैसे तो यह उदाहरण मेरे द्वारा अलग से नहीं दिया गया हैं बल्कि पायजामें में हवा भरने वाले उदाहरण के साथ ही इसे लिखा हैं। कपड़े की केतली का कपड़ा मोटा होता हैं, तथा उसमें पानी का हल्का रिसाव बराबर होता रहता हैं, क्योंकि कपड़ा वायु दाब से दब जाता हैं। उसमें वायु का प्रवेश नहीं होता बल्कि दाब की वजह से ही थोडा बहुत रिसाव होता रहता हैं। इसी रिसाव की वजह से ही उसमें पानी ठंडा रहता हैं। मिट्टी के घड़े में भी बारीक़ छिद्रों से पानी का रिसाव होता रहता हैं, जिससे पानी ठण्डा रहता हैं। यदि कपड़े की केतली पर वायु दाब नहीं होता तो पानी का रिसाव भी नहीं होता। पानी के ठंडे होने की बात तो उस केतली की विशेषता स्वरूप कही गई थी। मुख्य बात से उसका कोई सम्बन्ध नहीं हैं।
आप द्वारा कही गई दूसरी बात शत प्रतिशत सही हैं। बोतल अपने आन्तरिक दबाब से ही फूटती हैं, न कि बाहरी दाब से। लिखने में यह अशुद्धि रह गयी हैं, कृपया पाठक गण इस अशुद्धि को सुधार कर पढ़ें। सादर नमन।