भारतीय पुरुषों को क्या डराता है?

भारतीय पुरुषों को क्या डराता है?

समाज का डर: हमें क्या डरा रहा है?

एक भारतीय पुरूष के लिए, डर एक सामान्य समझाने योग्य भावना होती है। समाज के दबाव, परिवार द्वारा उम्मीदें और अपनी आवश्यकताओं को पोषित करने का दबाव हमें डराता है। जैसे मेरी पत्नी कहती है, "अर्पित, तुम्हें मजदूरी करनी पड़ती है ताकि हमारे और सभी ग्राहकों की कठिनाईयाँ दूर हो सकें।"तुम मुझे अगर यकीन नहीं करते हो, तो मेरे कुत्ते ब्रूनो और तोता मित्तु को देखो।

भाषा सरंक्षण का डर: हमारी सांस्कृतिक धरोहर

अगला डर हमारे भाषाओं का है, हमारी सांस्कृतिक धरोहर। जैसा कि आप जानते हैं, हमारी मिट्टी की खुशबू, हमारे खेतों की हरियाली, हमारे गांवों की सड़कें, हमारे शहरों की भीड़- ये सब हिंदी भाषा को पोषित करती हैं। जब हम अपनी भाषा को खोते हैं, हम अपनी धरोहर को खोते हैं। जैसा कि मेरे पुराने दोस्त रियन कहते हैं, "अर्पित, हमे अपनी भाषा संरक्षित रखना चाहिएं, यही हमारी पहचान हैं।"

विदेशी संस्कृति के प्रति डर: अपनी पहचान को गवाने का खतरा

जब विदेशी संस्कृति हमारे देश में आती है, तो हमारे पास अंतरराष्ट्रीय संस्कृति की स्वीकार्यता और समर्थन का एक मजबूत संकेत मिलता है। यह समझा जाता है कि “विदेशी” संस्कृति में कुछ नयापन होता है, जिससे हमें प्रभावित किया जाता है। यह हमें अपनी सांस्कृतिक मूल्यों और धाराओं से दूर ले जाता है। ंहमें यह समझना चाहिए कि हमारी स्वतंत्रता और संविधान ने हमे विविधता को स्वीकारने और नयापन का सम्मान करने की आजादी दी है।

सस्ती और शीघ्र उपलब्धता : त्वरित उपभोग का डर

एक ऐसे जीवन शैली में, जहाँ हम सब कुछ त्वरित उपलब्ध करने के लिए अनेक सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। हमें कभी-कभी खतरा महसूस होता है। त्वरित उपलब्धता और उपभोग के इस डर के बारे में सोचें, जिसे हमने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। यह वास्तव में हमारे सभ्यता की एक बड़ी समस्या बन गई है। इसे हल करने के लिए, हमें सचेत होने की आवश्यकता है।

धन का डर: अवसादन और आर्थिक स्वतंत्रता

अंत में, हमारी अर्थव्यवस्था में डर का एक बड़ा हिस्सा है- धन। धनाढ्य होने की उम्मीद में हम बहुत कठिनाईयों का सामना करते हैं, धन संचय की उम्मीद में हम अपने स्वप्नों को त्याग देते हैं। क्योंकि हम धन के बिना आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकते। जैसा कि मेरे बच्चे अर्यमन कहते है, "पापा, हमें धन का सही उपयोग जानना चाहिए।"

यह सब मेरे प्रस्तावित डरों में से कुछ हैं, जिन्हें मैंने एक भारतीय पुरुष के रूप में पहचाना है। यह तस्वीर अवश्य ही पूरी नहीं हो सकती है, डर के बड़े आयाम कुछ और भी हो सकते हैं - इन्हीं कुछ बातों को समझने की कोशिश करने की उम्मीद में!

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