भूकंप ने हिलाया उत्तर-पूर्व और बंगाल: 5.8 तीव्रता, उडालगुड़ी के पास केंद्र, कई जिलों में नुकसान

भूकंप ने हिलाया उत्तर-पूर्व और बंगाल: 5.8 तीव्रता, उडालगुड़ी के पास केंद्र, कई जिलों में नुकसान

5.8 का झटका, उथली गहराई और लगातार आफ्टरशॉक्स: असम से उत्तर बंगाल तक दहशत

रविवार शाम 4:41 बजे असम के उडालगुड़ी के पास 5.8 तीव्रता का भूकंप आया और कुछ ही मिनटों में पूरी पट्टी—उडालगुड़ी, सोनितपुर, तामूलपुर, नलबाड़ी से लेकर गुवाहाटी तक—घरों से लोग बाहर निकल आए। केंद्र गुवाहाटी से करीब 65 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में, लगभग 29 किलोमीटर की उथली गहराई पर दर्ज हुआ। उथले भूकंप सतह पर ज्यादा असर करते हैं, और यही हुआ—कई मकानों में दरारें पड़ीं, सामान गिरा, और भगदड़ में कम से कम दो लोग घायल हो गए। उत्तर बंगाल तक झटके महसूस किए गए, हालांकि inland लोकेशन और तीव्रता के कारण सुनामी का कोई खतरा नहीं बना।

मुख्य झटके के बाद डेढ़ घंटे में तीन आफ्टरशॉक्स लगे—4:58 बजे 3.1, 5:21 बजे 2.9 और 6:11 बजे 2.7। छोटे झटके होने के बावजूद, बार-बार का कंपन लोगों की चिंता बढ़ाने के लिए काफी था। संशोधित मर्काली तीव्रता पैमाने (MMI) पर अधिकतम तीव्रता VII रही, जिसे ‘बेहद प्रबल’ श्रेणी में रखा जाता है—ऐसी स्थिति में कमज़ोर निर्माणों में दरारें, प्लास्टर का झड़ना और भारी वस्तुओं का खिसकना आम है।

प्रशासन ने कहा है कि जिला टीमें नुकसान का आकलन कर रही हैं। असम स्टेट डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (ASDMA) और स्थानीय SDRF यूनिट्स को हाई-अलर्ट पर रखा गया है। अस्पतालों, स्कूलों और पुलों की प्राथमिक सुरक्षा जांच शुरू कर दी गई है ताकि किसी सेकेंडरी खतरे—जैसे ढांचे की छिपी कमजोरी—की समय रहते पहचान हो सके।

गुवाहाटी और आसपास के शहरी हिस्सों में पुराने अपार्टमेंट ब्लॉक्स और कच्चे- पक्के मिश्रित निर्माण सबसे ज्यादा दहले। कई जगह लोगों ने कुछ सेकेंड्स तक तेज कंपन और फिर धीरे-धीरे थमते झटके महसूस किए। संचार नेटवर्क पर भी कुछ मिनटों के लिए लोड बढ़ा, हालांकि सेवाएं सामान्य बनी रहीं।

रेलवे और हाईवे प्राधिकरणों ने नियमित प्रोटोकॉल के तौर पर ट्रैकों, ब्रिज बियरिंग्स और एम्बैंकमेंट्स की विज़ुअल जांच शुरू की है। पहाड़ी ढलानों और नदी किनारों पर मिट्टी के धंसाव का जोखिम ऐसे समय बढ़ता है; फिलहाल बड़े भूस्खलन की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन मॉनसून नमी के बीच निगरानी बढ़ा दी गई है।

यह इलाका इतना संवेदनशील क्यों, और आगे किन बातों पर नजर रखें

उत्तर-पूर्व भारत दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय इलाकों में आता है। यहां भारतीय प्लेट उत्तर की ओर बढ़ते हुए यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है। इसी भूकंपीय टकराव ने हिमालय बनाया और यही ऊर्जा समय-समय पर झटकों के रूप में निकलती रहती है। यही कारण है कि असम, अरुणाचल, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और सिक्किम का बड़ा हिस्सा भारत के सीस्मिक ज़ोन V में रहता है—यानी उच्चतम जोखिम श्रेणी।

इतिहास गवाह है: 1897 का शिलांग भूकंप (लगभग M8.1) और 1950 का असम-तिब्बत भूकंप (लगभग M8.6) इस क्षेत्र की भूकंपीय ताकत को दिखाते हैं। 2011 में सिक्किम में 6.9 तीव्रता का झटका भी दूर-दूर तक महसूस हुआ था। आज के उथले 29 किमी केंद्र ने सतह पर ऊर्जा केंद्रित की, इसलिए अपेक्षाकृत कम तीव्रता होने के बावजूद असर ‘फील’ ज्यादा हुआ। ब्रह्मपुत्र घाटी की गहरी, मुलायम अलूवियल मिट्टी कंपन को बढ़ा सकती है—इसे साइट एम्प्लिफिकेशन कहते हैं—जिससे गुवाहाटी और नदी किनारे बसे कस्बों में झटके लंबे या ज्यादा तीव्र महसूस हो सकते हैं।

आफ्टरशॉक्स का पैटर्न सामान्य है—मुख्य झटके के बाद छोटे, घटती तीव्रता वाले झटके घंटे-दिन भर जारी रह सकते हैं। जरूरी क्या है? कमजोर और क्षतिग्रस्त ढांचों से दूर रहना, और अनावश्यक रूप से बंद जगहों—जैसे बेसमेंट पार्किंग—में भीड़ न लगाना। अगर दीवारों में तिरछी दरारें दिखें, दरवाजे-खिड़कियां फंसने लगें, या छत से प्लास्टर झड़ा हो तो किसी अधिकृत इंजीनियर से स्ट्रक्चरल ऑडिट कराना समझदारी है।

मौके पर राहत के साथ-साथ मिड-टर्म तैयारी भी उतनी ही अहम है। इमारतें अगर भारतीय मानकों—IS 1893 (भूकंपीय डिज़ाइन) और IS 4326 (भूकंपीय रेट्रोफिटिंग)—के हिसाब से बनी हों तो नुकसान काफी घटता है। पुराने स्कूलों, अस्पतालों और पुलिस थानों का ‘रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग’ कर कमज़ोर जॉइंट्स, सॉफ्ट-स्टोरी और अनएंकरड पानी की टंकियों की पहचान करना चाहिए। जहां संभव हो, कॉलम जैकेटिंग, वॉल-डायाफ्राम सुदृढ़ीकरण और रूफ-टाई सुधार जैसे लो-कोस्ट रेट्रोफिट विकल्प अपनाए जा सकते हैं।

घर-परिवार स्तर पर भी कुछ सरल कदम जो तुरंत मदद करते हैं:

  • भूकंप के दौरान “ड्रॉप, कवर, होल्ड”: नीचे झुकें, मज़बूत मेज के नीचे जाएं और पैर पकड़कर स्थिर रहें।
  • झटकों के बाद गैस कनेक्शन, बिजली के स्विचबोर्ड और पानी की पाइप में रिसाव की जांच करें। शक हो तो मुख्य सप्लाई बंद करें।
  • सीढ़ियां और लिफ्ट: आफ्टरशॉक्स में लिफ्ट न लें। निकलना हो तो सीढ़ी से, और भीड़ से बचकर।
  • आपात बैग तैयार रखें—टॉर्च, पावर बैंक, प्राथमिक दवा, पानी, सूखा भोजन, जरूरी दस्तावेजों की कॉपी।
  • अफवाहों से बचें। आधिकारिक बुलेटिन्स और स्थानीय प्रशासन की सलाह का पालन करें।

कृषि और ग्रामीण इलाकों में, मिट्टी के चूल्हों, कच्ची दीवारों और बिना बांधाव (अनएंकरड) छतों के ढहने का जोखिम होता है। पंचायत स्तर पर सामुदायिक इमारतों की जॉइंट जांच, और स्कूलों में भूकंप मॉक-ड्रिल से जागरूकता बढ़ती है। शहरी इलाकों में ऊंची इमारतों के स्टिल्ट फ्लोर और पार्किंग लेवल की सुदृढ़ता—अक्सर सबसे कमजोर कड़ी—की जांच जरूरी है।

नुकसान के दस्तावेज संभाल कर रखें—दीवार, छत, फर्श और पाइपलाइन के क्लोज-अप फोटो; तारीख-समय के साथ लिखित विवरण; और यदि उपलब्ध हो, स्थानीय प्रशासन की निरीक्षण पर्ची। बीमा होने पर यह सब क्लेम में मदद करेगा। बिना बीमा वाले परिवार स्थानीय प्रशासन और आपदा राहत मद से तत्काल सहायता के लिए आवेदन कर सकते हैं; राज्य और जिला स्तर पर SDRF/SDMA के प्रावधान ऐसे ही हालात के लिए हैं।

परिवहन और यात्रा पर नजर: बड़ी तीव्रता न होने के बावजूद, संवेदनशील ब्रिज और पहाड़ी सड़कों की रूटीन जांच चलती रहती है। लंबी दूरी की बसें या ट्रेनें ले रहे लोगों के लिए सलाह यही है कि ऑपरेटर की एडवाइज़री देखें और अतिरिक्त समय रखें।

आगे किन संकेतों पर ध्यान दें? अगर बारिश तेज है और झटके आए हैं, तो ढलानों पर दरारें, पेड़ों का झुकना, या अचानक गंदा पानी बहना—ये भूस्खलन के शुरुआती संकेत हो सकते हैं। नदी किनारे के इलाकों में ढीली रेत वाली जमीन पर लिक्विफैक्शन का जोखिम सिद्धांततः मौजूद रहता है; पार्किंग और भारी मशीनरी को सख्त जमीन पर शिफ्ट करना बेहतर है।

तकनीकी नजरिया भी साफ है: आज का भूकंप मध्यम तीव्रता, उथली गहराई और विस्तृत ‘फील्ट एरिया’ वाली घटना थी। यह हमें याद दिलाता है कि उत्तर-पूर्व की तैयारी—कोड-कंप्लायंट निर्माण, पुरानी इमारतों का रेट्रोफिट, आपदा ड्रिल और स्पष्ट संचार—सिर्फ कागज़ी नहीं, जमीन पर दिखनी चाहिए। वैज्ञानिक और एजेंसियां आफ्टरशॉक्स के पैटर्न को मॉनिटर कर रही हैं; अगर झटकों की आवृत्ति घटती है तो खतरा कम होता जाता है, लेकिन संरचनात्मक सुरक्षा जांच फिर भी टाली नहीं जानी चाहिए।

फिलहाल राहत की बात यह कि कोई सुनामी जोखिम नहीं है और भारी तबाही की खबर नहीं आई। पर सबक भी साफ हैं—उथले केंद्र के झटके शहर और गांव दोनों में तेज महसूस होते हैं; ब्रह्मपुत्र घाटी की मिट्टी कंपन बढ़ा सकती है; और बार-बार के आफ्टरशॉक्स मानसिक दबाव बढ़ा देते हैं। ऐसे में ठंडे दिमाग, सही जानकारी और बेसिक सुरक्षा नियम ही सबसे मजबूत कवच हैं।

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