आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-45)
आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-45)
आज विज्ञान द्वारा ऐसे ऐसे विनाशकारी हथियार बनाये जा चुके हैं, जिससे होने वाली मौतों व दुष्प्रभावों का वृतान्त पढ़कर ही रूह कांप उठे। अभी भी यह दौड़ जारी हैं। कोई देश घातक हथियारों के अनुसन्धान में लगा हैं, तो कोई देश घातक हथियारों के निर्माण में लगा हैं, तो कोई देश घातक हथियार खरीद कर इकट्ठे करने में लगा हैं। आखिर इनका उपयोग क्या हैं? हम आज इनको इकट्ठे करने में मर रहे हैं, और कल इनका उपयोग करके भी मरने वाले हैं।
यह कैसा विकास हो रहा हैं ?
जब द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के हिरोशिमा व नागाशाकी शहरों पर परमाणु बम्ब गिराये गए थे, तब हवाईजहाज के पायलट योद्धा को यह जानकारी नहीं थी कि, मैं कितना विनाशकारी बम्ब गिराने जा रहा हूँ? उसे भी अँधेरे में रखा गया था। विज्ञान अपने परीक्षणों का नकारात्मक पहलू वैसे भी पहले उजागर नहीं करता हैं। उस दिन परमाणु की खोज दुनियाँ के लिए अभिशाप बन गई। जापान के दोनों शहरों पर गिराये गए बम्ब अपने सटीक निशाने पर लगे। दोनों शहर पलक झपकते ही श्मशान मे बदल गए। एक सीमा के दायरे में आने वाले इंसानों के शरीर की चमड़ी पिघल कर हट गयी। लोग मांस के लोथड़े व हड्डियों के कंकाल की शक्ल में बदल गए। दायरे से बाहर वाले लोग रेडियोधर्मिता के संक्रमण की चपेट में आकर तड़पते हुए मरे। कहते हैं कि आज भी उस धरती पर रेडियोएक्टिवता का असर बना हुआ हैं, और जीवन अभिशप्त हैं। मौत का ऐसा वृतान्त जब उस पायलट को समाचार पत्रो में पढ़ने सुनने को मिला, तो वह आत्मग्लानि से भर गया। उसका दिमागी सन्तुलन खत्म हो गया। वह पागल हो गया। अपनी मृत्यु तक वह पागलों की तरह ही जिन्दा रहा। यह सारा वृतान्त पढ़कर, उस दृश्य की कल्पना मात्र से, आज भी हर व्यक्ति के दिल में सिहरन पैदा हो जाती हैं, जबकि यह तो इस खोज की शुरुआत थी। आज तो उस समय से 300 गुणा ज्यादा शक्तिशाली परमाणु बम्ब बनाये जा चुके हैं। आज कई देशों के पास यह तकनीक हैं। परमाणु परीक्षण मात्र ही जलवायु को भारी क्षति पहुँचाता हैं, फिर भी मानव इस प्रतिस्पर्धा में लगा हुआ हैं। कहा जा रहा हैं कि वर्तमान समय में पुरे विश्व में इतने परमाणु व अन्य आयुध इकट्ठे किये जा चुके हैं, जिनका उपयोग कर हमारे पृथ्वी ग्रह को दौ सौ बार नष्ट किया जा सकता हैं।
परमाणु का उपयोग एकमात्र यही नहीं हैं, बल्कि इसका सदुपयोग भी हैं। जिससे मानव हितार्थ के कार्य भी अंजाम दिए जा सकते हैं, परन्तु सब कुछ स्पष्ट होते हुए भी हम इसका उपयोग, विनाश हेतु ही ज्यादा करते आ रहे हैं, और आगे भी करते रहेंगें।
ऐसा क्यों?
क्योंकि हमारा वर्तमान विज्ञान केवल इस भौतिक शरीर को ही ध्यान में रखकर अन्वेषण व अविष्कार कर रहा हैं। हमारा विज्ञान इस देह रूपी स्थूल शरीर को ही जीवन मान कर चल रहा हैं। शायद आज के विज्ञान को इससे आगे की बात पता ही नहीं हैं। जीवन की वास्तविकता से हमारा विज्ञान अभी कोसों दूर है। यहीं से हमें अपने पुरातन ज्ञान की ओर दृष्टिपात करना होगा, जिससे यह स्पष्ट रूप से समझा जा सके कि विज्ञान पहले भी था। उस समय के विज्ञान को विशेष याँ विलक्षण ज्ञान की संज्ञा दी जाती थी, जबकि आज के विज्ञान को मैं विपरीत ज्ञान की संज्ञा देता हूँ।
हमारे पुरातन ज्ञान के अनुसार यह दिखाई देने वाला स्थूल शरीर, जो पंचमहाभूतों से बना हुआ हैं, यह वास्तव में मृत हैं। यह शरीर जन्म से ही मृत हैं। जब तक इसमें आत्म तत्त्व मौजूद हैं, यह शरीर हमें जिन्दा होने का आभास देता हैं, जबकि यह हर समय मृत अवस्था में ही होता हैं। पुरातन ज्ञान के अनुसार हमारे इस स्थूल देह के अंदर एक सूक्ष्म शरीर होता हैं। जिसे अन्तःकरण कहा गया हैं। वास्तव में यह अन्तःकरण ही, जीव रूप होता हैं। सूक्ष्म उसे कहा जाता हैं, जो हमें दिखाई नहीं देता। इस अन्तःकरण को सूक्ष्म शरीर इसीलिए कहा गया हैं, क्योंकि यह हमें दिखाई नहीं देता हैं।
पुरातन ज्ञान के अनुसार हमारे इस स्थूल देह के अंदर सूक्ष्म शरीर व्याप्त हैं, और सूक्ष्म शरीर के अंदर तीसरा कारण शरीर व्याप्त हैं। यह कारण शरीर ही हमारे जन्म का बीज रूप होता हैं। हमारे द्वारा जन्म लेकर इस दुनियाँ में आने के पीछे यह कारण शरीर ही बीज का कार्य करता हैं।
बात कहने मात्र से स्पष्ट नहीं होगी, बल्कि इसे क्रमशः समझना होगा, ताकि यह स्थिति हर व्यक्ति समझ सके व स्वयं अनुभव कर सके।
शेष अगली कड़ी में—–
लेखक : शिव रतन मुंदड़ा