Wednesday, December 18, 2022

Literature साहित्यक

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-47)

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-47)   आध्यात्म ज्ञान के अनुसार सूक्ष्म शरीर के अंदर एक और तीसरा शरीर हैं, जिसे कारण शरीर कहा गया हैं। यह बीज रूप कारण शरीर भी अन्तःकरण में ही अवस्थित रहता हैं। इसके बाद आत्म तत्त्व यानि आत्मा का स्थान होता हैं, जो मूल रूप से ...Full Article

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश। भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-46)-

हमारा आधुनिक विज्ञान जीवन के मूलभूत रहस्यों को जानकर अपने विकास की राह तय करता, यदि विज्ञान हमारे शरीर की रचना के बारे में बताये गए वैदिक ज्ञान को ...Full Article

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश। भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-46)-

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश। भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-46)   हमारा आधुनिक विज्ञान जीवन के मूलभूत रहस्यों को जानकर अपने विकास की राह तय करता, यदि विज्ञान हमारे शरीर की रचना के बारे में बताये गए वैदिकज्ञान को पहले समझता, तो शायद विकास की राह अनुकूल व सही दिशा की ओर अग्रसर होती।जिस भारतीय पुरातन ज्ञान को आज हम पूर्णतया खो चुके हैं,अथवा भुला चुके हैं, वो कितना आवश्यक व महत्त्वपूर्ण हैं, इसकी जानकारी केवल उसे ही प्रत्यक्ष हो सकती हैं, जिसने इस ज्ञान को जीवन में सिद्ध कर लियाहो।   इसे हम आध्यात्मिक ज्ञान कहते हैं, यह हमारे शरीर के विषय का सम्पूर्ण ज्ञान हैं। इन्द्रियों को ही अध्यात्म कहा जाता हैं। इन इन्द्रियों के अलग–अलग देवताहोते हैं, जिन्हें अधिदेव कहा जाता हैं। अधिदेव से प्राप्त शक्ति से, अध्यात्म (इन्द्रियाँ) कार्य करती हैं।इन इन्द्रियों के स्थूल भाग यानि बाहरी भाग का जिनसेनिर्माण होता हैं, उन्हें अधिभूत कहा जाता हैं।इस प्रकार अध्यात्म, अधिदेव व अधिभूत, इन तीनो के एक साथ होने को त्रिपुटी की संज्ञा दी गई हैं।   संसार में किसी भी क्रिया सम्पादन के लिए इस त्रिपुटी का होना अनिवार्य हैं। त्रिपुटी के हुए बिना, कोई भी क्रिया सम्पादित नहीं हो सकती हैं।उदाहरण केलिए– हम किसी वस्तु को देख रहे हैं। इसमें त्रिपुटी इस तरह से बनेगी।   दृष्टा, दृष्टि, दृश्य। इसमें दृष्टा वो हैं, जो देख रहा हैं।दृश्य वो हैं, जिसे देखा जा रहा हैं।देखने वाला दृष्टा व देखे जा रहे दृश्य के बीच में जो दुरी हैं, उसमें भी कोई ऐसा मैकेनिज्म याँ तत्त्व कार्यरत हैं, जिसके माध्यम से  दृष्टा,उस दृश्य को देखता हैं।उसे दृष्टि कहा गया हैं। इस प्रकार दृष्टा, दृष्टि, दृश्य की त्रिपुटी बनने पर ही देखने की क्रिया सम्पन्न हो पायेगी।यदि इन तीनो में से कोई भी एक कड़ी नहीं हों, तोदेखने की क्रिया सम्पन्न नहीं हो पायेगी।    साधारणतः लोग कार्य, क्रिया याँ कर्म शब्दों का तात्त्पर्य एक ही भावार्थ में लेते हैं, जो सही नहीं हैं। इनमें अर्थात्मक भेद रहता हैं।हम जो भी करते हैं, वो सबकार्य की श्रेणी में आता हैं।कामना याँ इच्छा के वशीभूत अथवा प्रतिफल की लालशा से किया गया प्रत्येक कार्य, कर्म की श्रेणी में आता हैं, जबकि क्रिया  स्वतःसम्पादित होती हैं। क्रिया को किया नहीं जाता हैं। जैसे श्वसन क्रिया। रक्त संचारण क्रिया।हम निंद्रा में हों, याँ बेहोश हों, तो भी यह क्रियाएँ स्वतः सम्पादित होतीरहती है।कर्म व क्रिया को कार्य शब्द में संयुक्त किया जा सकता हैं, परन्तु कार्य शब्द को कर्म याँ क्रिया शब्द में संयुक्त नहीं किया जा सकता।   हम अपने विषय से दूर नहीं जाना चाहते हैं, इसलिए उन्हीं बातों का उल्लेख यहाँ पर करेंगें, जो आवश्यक हों।हमारे बाहरी शरीर को देह कहा गया हैं। यहहमारे रहने का मकान हैं। हम आत्मा हैं।इस देह रूपी शरीर (घर) में, हम (आत्मा) निवास करते हैं।जब किसी व्यक्ति की मौत हो जाती हैं, तो उसकी देह,हमारे समक्ष पूर्वतः मौजूद रहती हैं, लेकिन उसमें सजीवता अथवा चेतना का आभास लुप्तहो जाता हैं।ऐसे में आप स्वयं विचार करें कि, जो शरीर पूर्ण रूपेणहमारे सामने पड़ा हैं, वह अब मृत कैसे हो गया? वास्तव में यह शरीर पहले दिन से ही मृतही होता हैं। उसमें जीवन का अहसास, आत्म तत्त्व की उपस्थिति कीवजह से होता हैं।ज्योंही यह आत्म तत्त्व शरीर से जुदा हुआ, कि सजीवता गायब। चेतना लुप्त। क्रियाशीलता खत्म। स्पंदन बन्द।   इसमें कोई संशय नहीं कि हम आत्मा हैं, लेकिन हमने स्वयं को पहचाना नहीं।हम शास्त्र देख पढ़कर याँ किसी महापुरुष के वचनों को सुनकर, भले ही यहमान लें कि हम आत्मा हैं, परन्तु इस बात का हमें कोई आभास याँ अनुभव नहीं हैं। यह आभास व अनुभव हमें आध्यात्म ज्ञान से मिलता हैं।   आध्यात्म के अनुसार इस मकान रूपी देह के अंदर यानि हमारे इस दृश्यगत शरीर के अंदर एक और शरीर मौजूद हैं, जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। जिसेअन्तःकरण का नाम दिया गया हैं। जिसे हम आम भाषा में जीव कहते हैं, वह जीव, हमारा यही अन्तःकरण होता हैं।मूलतः अन्तःकरण ही हमारे बाह्य शरीर काउपयोग, सांसारिक भोगों अथवा मोक्ष प्राप्ति हेतु करता हैं।अन्तःकरण ही सुख दुःख, राग द्वेष, मोह माया जैसे कषायों से ग्रसित रहता हैं।यह अन्तःकरण रूपीजीव ही कर्म बन्धनों में जकड़ा हुआ रहता हैं।जीवन मरण के दुष्चक्र में रहने वाला जीव, यही अन्तःकरण हैं। वैराग्य की ओर रुख करने वाला भी यहीअन्तःकरण होता हैं।यहाँ तक की चर्चा के बाद एक सवाल आप सभी के समक्ष रखना चाहूँगा कि– हमें अपने किस शरीर के उत्थान व विकास की आवश्यकता हैं? मृत देह रूपी बाह्य शरीर हेतु याँ जीव रूप अन्तःकरण वाले सूक्ष्म शरीर हेतु।      ...Full Article

International Women’s Day – महिला / नारी दिवस पर संजय उवाच

नारी और वृक्ष  एक से होते हैं, खुश हों तो दोनों फूलों से सजते हैं…..! दोनों ही बढ़ते और छंटते हैं, इनकी छांव में कितने लोग पलते हैं…..! देना ...Full Article

चार नए लेखकों को मिला भारतीय ज्ञानपीठ का ‘नवलेखन’ पुरस्कार

नई दिल्ली, 29 जुलाई। चार लेखकों को वर्ष 2015 के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का 11वां नवलेखन पुरस्कार गुरुवार को एक समारोह में प्रदान किया गया। इन लेखकों में तीन ...Full Article

E-Book & Print-Book On ‘Income Declaration Scheme, 2016’ Launched

A book written by CA. K.C.Moondra on the subject ‘Convert Black Money To White Money’ through ‘Income Declaration Scheme, 2016 ‘ has been launched  today. This book has been ...Full Article

News Club is Good attempt For Literature

Sumerpur : Rajasthan : News Club is Good attempt For Literature. Now, any one can write any news and article which increase / improve writing habits, grammar and literacy.Full Article

आपकी कलम और देश के खातिर, न्यूज़ क्लब

सुमेरपुर | Sumerpur | राजस्थान | rajasthan :  newsclub.co.in अब प्रारम्भ हो चुकी है . इस मौके पर यह कहना उचित होगा, ” नही पहुचे अखबार और टीवी न्यूज़ ...Full Article

सहकारी घोटालो में से एक और मल्टी स्टेट क्रेडिट कोपरेटिव सोसाइटी का घ...

देश की अर्थ-व्यवस्था का भट्टा बैठाने में सहयोगी अनेको सहकारी घोटालो में से एक और मल्टी स्टेट क्रेडिट कोपरेटिव सोसाइटी का घोटाला.  

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