Tuesday, August 23, 2016

आय घोषणा स्कीम, 2016 के तहत घोषित आय / सूचना की गोपनीयता की कोई गारंटी नहीं.   

भारत सरकार, उसका वित मंत्रालय व आयकर विभाग ने आय घोषणा स्कीम, 2016 की सफलता व प्रचार के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक डाली है. स्कीम  को स्पष्ट करने हेतु जारी किये गए अपने छठे सर्कुलर दिनांकित 14.07.2016  से यह आश्वस्त करने का प्रयास किया है कि इस स्कीम में घोषित आय व उससे सम्बंधित सूचनाये पूर्ण रूप से गोपनीय रहेगी तथा किसी अन्य सरकारी विभाग को नहीं दी जायेगी. लेकिन हकीकत में, पूरी स्कीम व इस सर्कुलर में भी ऐसी गोपनीयता की कोई गारंटी नहीं दी गयी है.

उल्लेखनीय है कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 के पहले से ही उपलब्ध प्रावधानों के आधार पर सरकार गोपनीयता की गारंटी दे रही है. और इस गारंटी को पुख्ता दिखाने के लिए धारा 138 के तहत हाल ही में एक नोटीफिकेसन भी जारी किया है लेकिन यह गारंटी मात्र दिखावटी, अधूरी व असुरक्षित है. आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 सपठित धारा 280 के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई भी सरकारी अफसर / कर्मचारी करदाता से सम्बंधित कोई भी सूचना किसी को भी शेयर / डिस्क्लोज करता है तो उसको अधिकतम 6 माह की जेल हो सकती है बशर्ते उसके विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनुमति सरकार ( उच्च अधिकारियो ) द्वारा दी जावे.

इन प्रावधानों को सावधानी से पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि न तो यह प्रावधान इस बात की गारंटी देता है कि घोषणाकर्ता की कोई भी सूचना अन्य सरकारी विभाग द्वारा घोषणाकर्ता के विरुद्ध काम में नहीं ली जायेगी  और न ही किसी अन्य विभाग द्वारा ऐसी सूचना को इस्तेमाल करने पर कोई पाबंदी लगाईं गयी है.

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 सपठित धारा 280 के प्रावधान बहुत ही हलके व कमजोर है जिसे कि वर्तमान में जोधपुर में कार्यरत आयकर अधिकारी राजेंद्र बोथरा के मामले से समझा जा सकता है. आयकर अधिकारी राजेंद्र बोथरा ने अपनी सुमेरपुर में पोस्टिंग के दोरान एक करदाता की आय से सम्बंधित सूचना न केवल एक्साइज विभाग, सी.बी.आई. व आई.सी.ऐ.आई. को जानबूझकर दे डाली बल्कि उन सूचनाओ को अपनी निजी सूचना / सम्पति के रूप में  भी कन्वर्ट कर डाला था.

 इस गोपनीयता भंग के मामले की जानकारी मिलने के बाद, सम्बंधित करदाता ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 280(2) के प्रावधान के तहत सम्बंधित आयकर कमिश्नर-1, जोधपुर व आयकर कमिश्नर, बीकानेर से आयकर अधिकारी राजेंद्र बोथरा के विरुद्ध क्रिमिनल (फोजदारी) मुकदमा दायर करने की कई बार इजाजत माँगी लेकिन दोनों उच्च अधिकारिओ ने राजेंद्रा बोथरा को संरक्षण  देते हुए उसे बचाने के लिए इजाजत नहीं दी. सारे प्रयासों के असफल हो जाने बाद परेशान होकर, उस करदाता ने मामले को आयकर की उच्चतम संस्था ‘केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड’, दिल्ली के समक्ष भी उठाया लेकिन कोई इजाजत नहीं मिली.

 आयकर विभाग के अधिकारियों की नीति व व्यवस्था से हारकर, उस करदाता ने सुमेरपुर के एक  स्थानीय ऐ.सी.जे.एम. कोर्ट में राजेंद्र बोथरा के खिलाफ एक क्रिमिनल केस दर्ज कराया है जो कि पिछले लगभग डेढ़ साल से उस कोर्ट में लंबित है. कई महीनो के बाद  कोर्ट ने मामले की जांच सुमेरपुर थानेदार को सौप दी और अब यह जांच सुमेरपुर थानाधिकारी के पास में पिछले  लगभग 4 माह से सरकारी मंद गति से चल रही है.  कुल मिलाकर करदाता को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 सपठित धारा 280 के प्रावधानो से कोई संरक्षण नहीं मिला बल्कि इस दोरान उसे अच्छा खासा नुकसान  व उत्पीडन भोगना ही पडा.

 उपरोक्त प्रकरण से स्पष्ट है की आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 सपठित धारा 280 के प्रावधान गोपनीयता की कोई गारंटी नहीं देते है. वर्तमान प्रावधानों के अनुसार किसी भी सरकारी अधिकारी को गोपनीयता भंग करने की संभावित 6 माह की सजा  को इस योजना में गोपनीयता की गारंटी नहीं मना जा सकता है. यदि राजेंद्र बोथरा जेसा कोई भी अधिकारी गोपनीयता भंग  करता है तो करदाता को धारा 138 सपठित धारा 280 में सुरक्षा की ऐसी कोई कोई गारंटी नहीं है जिससे करदाता को नुकसान से बचाया जा सके. इसलिए यह स्कीम पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है. सरकार  को चाहिए कि इस योजना में गोपनीयता की गारंटी के लिए पुख्ता इंतजाम करे.

 

 

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