तीन तलाक से छुटकारा, नहीं तो इस्लाम से छुटकारा ?
पूरे हिंदुस्तान में इन दिनों भारी चर्चा का विषय है – ‘तीन तलाक़’ तथा ‘यूनिफार्म सिविल कोड’. इसके साथ ही एक नई चर्चा व विचारधारा “ तीन तलाक से छुटकारा, नहीं तो इस्लाम से छुटकारा “ जन्म लेती दिख रही है. ऐसी चर्चा व विचार-धारा उन ‘तीन तलाक़’ से पीड़ित विधवा महिलाओ व पढी-लिखी मुस्लिम महिलाओ के बीच व व महिलाओ संगठनो में बलवती होती जा रही है जो ‘तीन तलाक़’ के खिलाफ है.
साधारणतया व ज्यादातर मुस्लिम महिलाये अपने धर्म के प्रति कट्टर ही होती है लेकिन जो महिलाये तीन तलाक का दंश झेलती हुई अपमानजनक जिन्दगी जी रही है तथा भारतीय संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार से वंचित / मरहूम है, उनके मन में व आपस की चर्चा में यह विचार मन में घर करने लग गया है कि यदि मुस्लिम नेतृत्व (मुल्ला-मोलवी) की नाराजगी से बचने के लिए यदि सरकार कोई कारगर कदम नहीं उठाती है ओर उन्हें तीन तलाक़ से छुटकारा नहीं मिलता है, तो “ तीन तलाक” से छुटकारा पाने के लिए व बराबर के हक़ की जिन्दगी जीने के लिए क्यों नहीं इस्लाम छोड़कर किसी ऐसे धर्म के पुरुषो से शादी की जाये जहा स्त्री व पुरूष को बराबरी का हक़ हो.
हो सकता है, यदि एक तरफ समय रहते मुस्लिम नेतृत्व (मुल्ला-मोलवी) ने “तीन तलाक” के मामले में अपने विचारों को नहीं बदला ओर दूसरी तरफ अन्य धर्मो के संगठनो ने ऐसी पीड़ित महिलाओ या ऐसी विचारधारा को समर्थन दिया तो हो सकता है कई के पीड़ित विधवा महिलाओ व पढी-लिखी मुस्लिम महिलाये इस्लाम छोड़कर अन्य धर्म स्वीकार करणा शुरू का दे . यदि वाकई ऐसी जागृति पीड़ित विधवा महिलाओ व पढी-लिखी मुस्लिम महिलाओ में आ गयी या ऐसी विचारधारा बलवती हो गयी तो हो सकता है धर्मांतरण का एक नया अध्याय हिन्दुस्तान में प्रारम्भ हो सकता है.
ऐसा भी संभव है कि भविष्य में कुछ हिंदूवादी संगठन ऐसी महिलाओ को मदद करने व उन्हें धर्मांतरण के लिए तेयार करने के लिए संगठित व योजनापूर्ण तरीके से सक्रिय नजर आये.