Friday, November 16, 2018

‘कोढ़ में खाज’ – प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के लिए अब आयकर सर्वे  

‘कोढ़ में खाज’ – प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के लिए अब आयकर सर्वे

Burden of Income-tax Surveyमार्च, 2017 में सभी भारतीय नागरिक अखबारों में आयकर सर्वे की खबरे पढ़ रहे होंगे या आने वाले दिनों में ओर पढेंगे. इन सर्वे की तुलना आप ‘कम तीव्रता के बम धमाको’ से कर सकते है जो एक साथ पूरे देश में किये गए है या किये जा रहे है. इन आयकर के सर्वे का उद्देश्य भी व्यापार जगत में ‘प्रधान मंत्री जी द्वारा घोषित कालेधन वाले बेईमानो’ में डर, भय, खौंफ व दशहत पैदा करना व केसे ही करके वर्तमान सरकार द्वारा घोषित प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना’ को सफल करवाना है.

कालेधन को समाप्त करने या कालेधन को सफ़ेद करने की ताजा योजना है प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना’. लेकिन पूर्व योजनाओं की तरह यह योजना भी उम्मीद के अनुरूप सफल नहीं हो रही थी या आप यह भी कह सकते है कि यह योजना भी फ़ैल हो रही थी. इसीलिये प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना’ को सफल बनाने के लिए, सरकार  ने आयकर सर्वे का सहारा लेकर किसी भी तरह से जाल में फंसे व्यापारियों से नोटबंदी के बहाने प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना’ में रकम जमा करवाने का दबाव बनाया जा रहा है  / प्रयास किया जा रहा है.

नोटबंदी से अभी तक व्यापार जगत ही नहीं बल्कि पूरा देश उबर ही नहीं पाया है तथा अधिकाँश व्यापार व फेक्ट्रिया अभी तक पटरी पर नहीं लोट पाए है. पूरे व्यापार जगत में डर, भय व खौंफ का माहोल व्याप्त है. ऐसे में अपने उद्देश्यों में पूर्णत: असफल रही नोटबंदी के नाम पर प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना’ को सफल बनाने के लिए किये जा रहे सर्वे, एक तरह से व्यापारियों के किये ‘कोढ़ में खाज’ जेसा है.

हद तो तब हो गयी जब नोटबंदी के बहाने उन व्यापारियों को टारगेट किया जा रहा है जिनको पुराने नोट स्वीकार करने के लिए अधिकृत किया गया था. जबकि दूसरी तरफ हकीकत यह है कि भारत सरकार / आयकर विभाग के पास ऐसे व्यापारियों द्वारा जमा कराये गए पुराने नोटों की कोई जानकारी ही नहीं है. सर्वे की अधिकाँश कार्यवाहिया 09.11.2016 से 30.12.2016  के बीच जमा कराई गयी कुल रकम (नये या पुराने नोट) के आधार पर की गयी जिसका हकीकत में पुराने नोटों की नोटबंदी से कोई लेना देना ही नहीं है.

कौन-कौन बने शिकार – 09.11.2016 से 30.12.2016  के बीच बड़ी-बड़ी राशिया पेट्रोल पंप व इ-मित्र (सरकारी टैक्स व बिल जमा लेने वाले जनता के सहयोगी) नकदी स्वीकार की गयी. ऐसे लोगो को भी शिकार बनाया गया. दोनों ही केटेगरी के व्यापारियों ने नोट बंदी के समय व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार की बहुत मदद लेकिन अब उनको भी इस सेवा का फल ‘आयकर सर्वे व उसमे सरेंडर‘ के रूप में मिल रहा है. कई कम पढ़े-लिखे  करदाताओ के यहाँ तो सर्वे मात्र इसलिए कर दिया गया क्योकि उन्होंने ऑनलाइन नोटिस का जबाव समय पर नहीं दिया जबकि ऐसे नोटिसो का ज्ञान शायद ऐसे करदाताओ को नहीं रहा हो.

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