आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश -भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-43)
आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश -भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-43)
हम में से कोई व्यक्ति यह कह सकता हैं कि आज जनसंख्यां में पहले की अपेक्षा भारी वृद्धि हो चुकी हैं, इसलिए हर जगह हमें भीड़ नजर आ रही हैं, लेकिन तुलनात्मक रूप से देखा जाय तो यह बात भी गलत सिद्ध होगी। आबादी की अपेक्षा हमने साधनो को ज्यादा बढ़ाया हैं। जितनी गुणा आबादी बढ़ी हैं, उससे कई गुणा ज्यादा हमने गति को बढ़ाया हैं। यह सब आबादी बढ़ने से नहीं बल्कि कामनाएं, इच्छाएं, वासनायें बढ़ने से हो रहा हैं। साधनों याँ सुविधाओं का उपयोग कम, दुरूपयोग ज्यादा हो रहा हैं।
कहा जाता हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी हैं। बात सही हैं। पर हर अविष्कार आवश्यकता की सीमाएं लाँघ कर, सुविधाओं की शरहद पर पहुँच चुका हैं। इसके पीछे का मूल कारण यही रहा हैं कि विज्ञान ने सारे अविष्कार हमारे इस पंचभौतिक स्थूल शरीर की सुविधाओं को ध्यान में रखकर खोजे हैं। मानव मन, याँ अन्तःकरण को ध्यान में नहीं रखा गया हैं, जिसे अध्यात्म में सूक्ष्म शरीर कहा गया हैं।
विद्युत की खोज से जो चकाचौंध, जो रोशनी हमने प्राप्त की हैं, उसे आप प्रकाश मत समझ बैठना। सही बात तो यह हैं कि हम इस रौशनी के अँधेरे में डूबे जा रहे हैं। महानगरों व बड़े शहरों के जीवन को आप देखें, तो पायेंगें कि अधिकांश जगहों पर सूर्य का प्रकाश नदारद हैं। दिन में भी बिना विद्युत के काम नहीं चल सकता हैं। हवा व रौशनी, दोनों विद्युत की मदद से ही मिल रही हैं। जबकि सूर्य की रौशनी व प्राकृतिक वायु, दोनों ही जीवन व स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक तत्त्व हैं। आज अधिकांश लोगों में विटामिन D की कमी बताई जाती हैं, जो केवल सूर्य की किरणों से ही हमें प्राप्त हो सकता हैं। कृत्रिम साधनों से प्राप्त वायु की वजह से हम श्वसन सम्बन्धी बिमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। आज की पीढ़ी नीम के पेड़ की छाया व ठण्डी हवा के आनन्द से अनभिज्ञ हैं। उन्हें तालाब के किनारे पर चल रही ठण्डी हवा के झोंको का अनुभव नहीं हैं। यह वास्तविक, सुखद व शरीर को ऊर्जा देने वाली हवा हैं, जिसको हम पंखे कूलर व AC की भेंट चढ़ा चुके हैं।
पंखे की हवा से शरीर वायु रोग से ग्रसित हो जाता हैं। व्यक्ति में सोकर उठने के बाद भी स्फूर्ति व ताजगी नहीं रहती हैं। कभी यह बात समझनी हो, तो रात को छत पर सोकर देखना, याँ घर के बाहर खुली जगह पर सोकर देखना। सवेरे पांच बजे ही, बिना किसी अलार्म के नींद खुल जायेगी। शरीर में ताजगी व स्फूर्ति महसूस होगी। पंखे से भी ज्यादा घातक कूलर और AC हैं, जिनसे आपका शरीर धीरे धीरे रोग ग्रस्त हो जाता हैं और आपको पता भी नहीं लगता हैं कि यह रोग हुआ किस वजह से? जुकाम, सिर दर्द, शरीर में जकड़न, जॉइंट पेन, दमा, एलर्जी, आँखों में कमजोरी, आलस्य, मोटापा जैसे रोग इन्हीं सुविधाओं की देन हैं। यही असली अंधकार हैं, जिसमें आज हम डूबे हुए हैं। महानगरों का जन्म विद्युत की ही देन हैं, जहां बगीचों को छोड़कर, कुछ भी प्राकृतिक नहीं बचा हैं। क्या आज की रोशन दुनियां, आप इसी को बता रहे हैं?
पहले साँझ ढलते ही आदमी अपना काम निपटाकर समय पर सो जाता था। भोर में जल्दी उठ जाता था। जिसे हम अँधेरा समझ रहे हैं, वो शांति व निवरता का दर्शन था, अहसास था। आदमी की कल्पनायें व इच्छाएं सिमित थी। अब साधन सुविधाएँ हो गई, जिससे आदमी की इच्छाओं का दायरा बढ़ गया। इससे संस्कारों व संस्कृति का लोप हो गया। जो भी करो, वो उचित हैं, क्योंकि उसका उदाहरण संसार में कहीं न कहीं मिल ही जायेगा। इस बढ़ते हुए दायरे से हम अपने केंद्र से इतने दूर चले गए हैं, कि पुनः लौटना ही सम्भव नहीं रहा।
विद्युत से हमें फायदा हुआ अथवा नुकसान, यह बात इस पर निर्भर करती हैं कि आप फायदा किसे समझ रहे हैं? हो सकता हैं कि प्रश्नकर्ता के अनुसार इससे फायदा ही फायदा हुआ हो, परन्तु मेरी नजर में कोई फायदा नहीं, बल्कि नुकसान ही नुकसान हुआ हैं।
यह मानव जीवन हमें क्यों मिला?
इसका सदुपयोग क्या हैं?
हमारा अंतिम लक्ष्य क्या हैं?
प्राकृतिक व कृत्रिम वस्तुओं में क्या फर्क हैं?
हमने विज्ञान से कितना पाया वो तो दिखाई दे रहा हैं, परन्तु खोया कितना हैं, यह आज की पीढ़ी शायद ही कभी जान पायेगी।
यदि विद्युत की खोज से मानव जाति का विकास हुआ होता, तो आज मानवता का लोप नहीं होता बल्कि संसार में मानवता बढ़ती। जैसे शिक्षा से यदि ज्ञान बढा होता, तो आज दुनियाँ में स्वार्थ, पाप, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, दुराचार अनैतिकता, चालाकी, आदि नहीं बढ़ते। हमें किससे क्या मिला? अगर यही विकास का मार्ग हैं, याँ इसे ही हम फायदा समझ रहे हैं, तो यह आपको ही मुबारक हो।
शेष अगली कड़ी में—–
लेखक : शिव रतन मुंदड़ा
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