आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-28)
आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-28)
आज के विषय का शीर्षक आपको कुछ अटपटा लग रहा होगा, लेकिन ज्यों ज्यों आप इस लेखमाला को पढेंगें, त्यों त्यों आपको यह अहसास होने लगेगा कि इस चर्चा का उचित शीर्षक यही हैं। वस्तुतः आज हमारे इस भौतिक जगत में जिधर भी नजर दोड़ायेंगें, उधर चारों तरफ विज्ञान ही विज्ञान नजर आयेगा। इसको देखते हुए विज्ञान द्वारा की गई उन्नति को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता हैं, लेकिन मूल विषय इस बात पर टिका हुआ हैं कि इस उन्नति के पीछे इस चराचर जगत का वास्तव में विकास हो रहा हैं या हम अनजाने में विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।
हमारी बात इसी को आधार मानकर कही जा रही हैं, जिस पर हम सभी को गहराई से चिंतन करना होगा। इस विकास की यात्रा को हम अपने घर से ही शुरू करना चाहें, तो हमारे जन्म के बाद घर में पानी का नल कनेक्शन, विद्युत कनेक्शन, टीवी, फ्रिज, पंखे, कूलर, AC, लाइटे, विद्युत आटा चक्की, कम्प्यूटर, दुपहिया वाहन, कार, घड़ियां, फर्नीचर, आरा मशीन, मिक्सी, जूसर, हेयर ड्रायर, वाशिंग मशीन, प्रेस मशीन (इस्त्री), गैस, गैस के चूल्हे, माचिस, मोमबत्ती, पलंग, लेटबाथ, भवन निर्माण, एक्सरसाइज की मशीने, वेट मशीन, मोबाईल, इयरफोन, होम थियेटर आदि आदि अनेकानेक चीजें विज्ञान द्वारा उपलब्ध करा दी गई हैं, जिससे जीवन को सरल सहज व आराम दायक बनाया जा सके। हमारे घर में उपयोग की जाने वाली उपरोक्त कितनी चीजें हमें विज्ञान द्वारा खोज करके दी गई हैं, जिससे हम खुशहाल जीवन जी सकें। पर क्या इन सब चीजों को उपलब्ध कर हम सुखी हो गए हैं? अगर हम सुखी न भी हुए हों तो भी इसमें विनाश वाली बात तो क्या हैं?
जीवन युगों-युगों से चल रहा हैं। पहले जिन चीजों का उपयोग कर हम जीवन चला रहे थे, उनमें अब कई चीजें लुप्तप्राय हो चुकी हैं। यातायात व संचार के साधनों के विकास के साथ विज्ञान की हर देन, हर जगह पहुचने लगी हैं। हमने भोग के साधनों का उपयोग करते हुए जीवन आरामदायक व आसान तो बना लिया हैं, लेकिन इस पर गहराई से विचार करें, वर्तमान परिस्थितियों पर मनन करें, तो कई बातें हमारे जीवन में ऐसी जुड़ गई हैं, जो हमें विनाश की और धकेल रही हैं। हम इस बात की शुरुआत पुनः घर से ही शुरू करते हैं। जो साधन हमें घर के लिए उपलब्ध हुए हैं, उनसे हमारी जीवनशैली में विकृति आने लगी हैं। बचपन में रात को बिस्तर बिछाकर सोते थे, जिसे सवेरे उठते ही तह करके वापस तय जगह पर रख देते थे। रईसों के घर में निवांर पट्टी से व साधारण घरों में मुंझ की रस्सी से बनी चारपाई जरूर होती थी जो बड़े बुड्ढों के लिए होती थी, लेकिन उठने के बाद उसे भी दीवार के सहारे खड़ी कर दी जाती थी। बाद में दिन भर सोने का काम ही नहीं था और न ऐसी जगह थी जहां आज की तरह धम्म से जाकर, जब जी में आएं तब जाकर पड़ जाएँ। आज तो हर घर में स्थायी रूप से बिस्तर लगा होता हैं, पलंग के रूप में।
पहले सभी अपने अपने कार्यों में व बच्चे पढ़ाई या सामूहिक खेलकूद में व्यस्त रहते थे। साथ खेलने की गरज एकदूसरे की आवश्यकता, प्रेम, सम्पर्क व मिलनसारिता को बढ़ावा देती थी। मोहल्ले की औरते अपने घरों के कई काम जैसे अनाज की सफाई, पापड़, मंगोड़ी, राबोडी, सेवइयां, आदि बनाना आपस में मिलकर पूरा करती थी। यह कार्य सालभर के लिए इकट्ठे ही हर घर में पुरे कर लिए जाते थे, जिससे सारा सामाजिक ताना बाना एक दूसरे की अंतर निर्भरता का बना हुआ रहता था।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा








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