कांग्रेस के यु.पी. मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में शीला दीक्षित की घोषणा प्रजातंत्र के साथ भद्दा मजाक
देश की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था सही अर्थो में नेताओं के हाथ का खिलोनो मात्र है जो कि प्रजातंत्र के साथ खिलवाड़ है. कांग्रेस के यु.पी. मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में शीला दीक्षित की घोषणा भी प्रजातंत्र के साथ भद्दा मजाक है.
यह देश का दुर्भाग्य है कि 15 वर्ष तक दिल्ली की मुख्य मंत्री रही व आज भी दिल्ली की मतदाता होते हुए कांग्रेस ने शीला दीक्षित को कांग्रेस के यु.पी. मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया. यह तथ्य इस प्रजातंत्र के लाचार मतदाताओं का कितना आदर करती है, देखा जा सकता है. सारी दुनिया जानती है कि आज भी शीला दीक्षित दिल्ली में रहती है.
दिल्ली का मतदाता न तो यु.पी. का मतदाता बन सकता है और न ही यु.पी. विधान सभा का चुनाव लड़ सकता है तो फिर वो यु.पी. की मुख्य मंत्री केसे बन सकती है. अत: यहाँ इस राजनीतिक चालबाजी को समझना होगा. इस घोषणा ने बाद होगा यह कि शीला दीक्षित अब अपना नाम दिल्ली की मतदाता सूचि में से हटवायेगी तथा यु.पी. में कही भी अपना नाम मतदाता सूची में जुड़वाँ लेगी. हो सकता है, दिल्ली के अगले चुनाव में वापिस दिल्ली की मतदाता बन जाये. है ना नेताओं का खेल.
याद रहे कजरीवाल दिल्ली के मुख्य मंत्री बनने तक यु.पी. के नॉएडा में निवास कर रहे थे यानिकी नागरिक नॉएडा के थे लेकिन दिल्ली के मतदाता बन कर वहा का चुनाव लड़ सकते थे इस लिए चुनाव भी लड़ा और मुख्यमंत्री भी बन गए. हिन्दुस्तान में ही यह संभव है कि केजरीवाल पंजाब या गुजरात का अगला विधान सभा चुनाव लडले. राजस्थान में एक ऐसा उदाहारह भी देखने को मिला कि एक गाव के सरपंच ने पास की नगरपालिका का चुनाव लड़कर वहा का चेयरमैन बन गया और जिस दिन चेयरमैन बना उस दिन वह दोनों जगह, गाव व शहर का मतदाता था.
हिंदुस्तान के कानूनों को नेता लोग केसे कचूमर बनाते है तथा प्रजातंत्र के साथ केसा भद्दा मजाक हमारे नेता लोग करते है इसके ये सभी जीते जागते उदाहरण मात्र है. शीला दीक्षित व केजरीवाल तो ताजा व बड़े उदाहरण है, अन्यथा ऐसे मजाक तो भारतीय प्रजातंत्र में रोज होते रहते है लेकिन भारतीय मीडिया की नजर में ऐसी बाते नहीं आती है – कैलाश चंद्रा