Sunday, August 11, 2019

जीएसटी से परेशान व्यापारी केसे करे व्यापार – जागे और इलाज बताये देश के कर्णधार !  

जीएसटी से परेशान व्यापारी  केसे करे व्यापार – जागे और इलाज बताये देश के कर्णधार  !

 

जेसा कि न्यूज़ क्लब पर कई बार लिखा गया है कि जीएसटी अब हिन्दुस्तान का सच बन चुका है, अत: मन से या बिना मन से इसे स्वीकार करना ही पडेगा. कहा यह भी जाता है कि जिसको भी हिन्दुस्तान में व्यापार करना है, तो उसे जीएसटी को अंगीकार करना ही होगा. इस सच्चाई से अब किसी का इनकार नहीं है लेकिन अब वो व्यापारी कहां जाकर व्यापार करे, जो  जीएसटी क़ानून स्वीकार कर रहा है. हम यहाँ ऐसी कई जीएसटी बीमारियों का जिक्र कर रहे है जिसका इलाज इस देश के कर्णधार ही कर सकते है –

व्यापारी जीएसटी कम्पोजीशन में जा ही नहीं पा रहा है : व्यवस्था यह दी गयी थी कि एक बार सबको रेगुलर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना था तथा उसके बाद 16.08.2017 (अंतिम तिथि) तक उसे कम्पोजीशन का आप्शन लेना था. कई ऐसे व्यापारी है जो जून, 2017 में ही रेगुलर जीएसटी में माइग्रेट हो गए थे लेकिन आज दिन तक उन्हें सरकारी वेबसाइट पर कम्पोजीशन का आप्शन ही नहीं मिला. ऑनलाइन ईमेल द्वारा व कस्टमर केयर पर शिकायते की गयी लेकिन कुछ नहीं हुआ.

सरकार की घोषणा व सरकार पर विश्वास करके ऐसे व्यापारी अपने आप को  कम्पोजीशन डीलर मानकर कोई टैक्स की वसूली भी नहीं कर रहे है क्योकि जीएसटी कस्टमर केयर द्वारा इसे बार-बार तकनीकी खराबी बताई जा रही थी और आश्वासन दिया जा रहा था. सरकार ही बताये कि इस “जीएसटी कम्पोजीशन” नामक  बीमारी का इलाज अब कहा और केसे होगा.

जीएसटी में रजिस्ट्रेशन ही नहीं हो रहा है : ऐसे कई मामले है जिनमे बार-बार प्रयास करने के बावजूद कल दिनांक 08.2017 तक जीएसटी  में रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया. पुराने वैट कालीन व्यापारियों में से कइयो का जीएसटी  में माइग्रेशन भी संभव नहीं हो पाया,  तो कई मामले डिपार्टमेंट में वेरिफिकेशन के लिए पेंडिंग पड़े है. ऐसे में व्यापारी अपना व्यापार जीएसटी के अनुसार जारी रखे हुए है, लेकिन कब तक बिना रजिस्ट्रेशन व्यापार करता रहेगा और उसका क्या भविष्य होगा.  अब सरकार बताये कि इस “जीएसटी  माइग्रेशन” व “जीएसटी  रजिस्ट्रेशन” नामक बीमारी का इलाज अब कहा और केसे होगा.

नाम कुछ और रजिस्ट्रेशन किसी ओर नाम से : एक व्यापारी के मामले में देखने को मिला कि वैट राज में उसका नाम रजिस्ट्रेशन में गलत चल रहा था. जीएसटी लागू होने से पहले ही उस व्यापारी ने अपना नाम बदलवा कर सही करवा दिया और अब  जीएसटी  में माइग्रेशन कर रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया. जब रजिस्ट्रेशन आया तो व्यापारी परेशान, उसका रजिस्ट्रेशन पुराने गलत नाम से कर दिया. व्यापारी जीएसटी राज में अपने सही नाम से ही व्यापार कर रहा है लेकिन अब क्या करे. सही नाम से की गयी खरीद और बिक्री का अब क्या करे. उसके सप्लायर ने सही नाम से सप्लाई/ एजेंसी देने से ही मना कर दिया तो अब व्यापार केसे करे. सरकारी वेबसाइट पर नाम सुधारने की कोई व्यवस्था ही नहीं है. अब सरकार बताये कि इस “जीएसटी  में गलत नाम से “जीएसटी  रजिस्ट्रेशन” नामक बीमारी का इलाज अब कहा और केसे होगा और इलाज होने तक व्यापार केसे होगा.

जीएसटी में  रजिस्ट्रेशन के लिए पैन वेलिडेशन नहीं हो रहा है : कई मामलों में व्यापारी ने अपनी तरफ से सारी पालना कर दी. उसके हिसाब से सब कुछ सही है लेकिन उसका पैन डाटा वेरीफाई ही नहीं हो रहा है. जिससे जीएसटी  में  रजिस्ट्रेशन अटक चुके है. इस गडबडी के पीछे सरकारी की गलत नीति रही जिसके अनुसार सरकार ने पेनकार्ड व डेटाबेस में मामूली से भिन्न-भिन्न नाम की छूट दे रखी  है. हालाकि सीए लोग इस कमी को दूर करने के प्रयास कर रहे है लेकिन जब तक दुरस्त नहीं हो जाते, ऐसे लोगो के रजिस्ट्रेशन व उनकी साँसे अटकी रहेगी. भागीदारी फर्म / HUF  के मामलों में भागीदार व पार्टनर  का भी पेन वेलिडेशन / वेरिफिकेशन होना जरूरी है. 

कम्पोजीशन वाले रजिस्ट्रेशन में रेगुलर दिखा रहा है : कई कम्पोजीशन वाले व्यापारियों को रजिस्ट्रेशन तो मिल गया लेकिन रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट में उसे रेगुलर व्यापारी दिखाया जा रहा है. अब व्यापारी इस टेंशन में है कि वह रेगुलर व्यापारी है या कम्पोजीशन वाला व्यापारी. यदि सरकार इस टेंशन का इलाज बताये तो कई व्यापारियों को इस फालतू की बीमारी से निजात मिल सकती है. 

किसी दिन कुछ मामलों में एक से ज्यादा चालान ही नहीं निकल रहे है : जो व्यापारी पूर्णरूप से जीएसटी में रजिस्टर्ड हो चुका है और वो चालान से टैक्स जमा कराना चाहता है तो उसे सरकारी वेबसाइट से ही चालान निकालना होता है. कई मामलों में एक दिन में एक से ज्यादा चालान ही नहीं निकल रहे है, तो ऐसे में बिना चालान कोई व्यापारी जीएसटी टैक्स केसे जमा कराये. यही नहीं एक चालान के लिए तीन-तीन / चार-चार बार प्रयास करने पर बड़ी मुश्किल से एक चालान निकलता है. ऐसी स्थिति में दिन भर में एक सीए या वकील का एक कंप्यूटर तो चालान निकालने में भी कम पड़ता है. अब सरकार बताये कि इस “जीएसटी  चालान” नामक बीमारी का इलाज अब कहा और केसे होगा. 

रजिस्ट्रेशन में एड्रेस पूरा नहीं आ रहा है : कई व्यापारियों को रजिस्ट्रेशन तो मिल गया लेकिन रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट में उसका एड्रेस अधूरा दिखाया जा रहा है जिससे बैंक उस रजिस्ट्रेशन को स्वीकार नहीं कर रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने एड्रेस में शब्दों की सीमा तय करदी जिससे रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट में अधूरा एड्रेस आ रहा है. किसी के समझ में नहीं आ रहा है कि अधूरे एड्रेस से सरकार क्या बचत करना चाह रही है या देश को इससे क्या फ़ायदा देने वाली है. 

साईट ही नहीं चलती है या Access डिनाइड : यदि व्यापारी का इन्टरनेट कनेक्शन सही चल रहा है तो किसी भी कार्य के लिए सरकार की GST वेबसाइट पर जाओ, कई बार साईट खुलती ही नहीं तो कभी आगे नहीं बढ़ती. हद तो तब हो जाती है, सब कुछ खुलने के बाद “ Access Denied ” का रेड कार्ड दिखा दिया जाता है. मतलब आप GST के मैच से बाहर. यह तो हाल तब है जब कि अभी तक GST के रेगुलर रिटर्न भरने अभी फुल स्पीड से चालू नहीं हुए है. जिस दिन  GST के रेगुलर रिटर्न (GSTR-1) फुल स्पीड से भरना चालू होगा, पता नहीं वेबसाइट की तब क्या हालत होगी. साईट के बार बार बंद होने से या काम नहीं कर देने से व्यापारी लेट हो जाएगा जिसका दण्ड व्यापारी को भुगतना होगा. व्यापारी व उसके सीए को यह टेंशन भी खाए जा रहा है. 

पहले अस्थाई जीएसटी रिटर्न GSTN-3B में करेक्शन का प्रावधान ही नहीं : शायद जब सरकार को लगा कि पहला ही GST का रेगुलर रिटर्न -GSTR-1 काफी लंबा व समय लेने वाला है तो सरकार ने बीच में ही अचानक दो महीने के लिए एक दूसरा अस्थाई जीएसटी रिटर्न GSTN-3B चालू कर दिया. वेबसाइट की तकलीफों को छोड़ दे तो यह फॉर्म अभी भरा जा रहा है लेकिन इसमे गलती रह जाने या हो जाने पर भूल सुधार की कोई व्यवस्था ही नहीं. जिससे जिन व्यापारियों के GSTN-3B में कोई गलती रह गयी है तो ऐसे व्यापारी व उनके सीए भारी टेंशन में है.

सरकार द्वारा दिए जाने वाला सबसे बड़ा टेंशन : मोदी जी की सरकार से जनता व व्यापारियों को बड़ी उम्मीद थी कि पुरानी कार्य शेली में कोई बदलाव नजर आयेगा  लेकिन ऐसा कुछ भी फर्क नजर आ रहा है. हकीकत यह है वर्तमान सरकार भी पुरानी सरकारों की तरह अनुशासन के नाम पर कोई भी डेडलाइन (तारीख) तय कर देती है. सरकार की संतुष्टि के बावजूद तारीख को अंतिम दिन तक नहीं बढाया जाता जबकि सरकार को तारीख बढानी ही  है. लेकिन सरकार अंतिम तारीख की रात तक भारत के करदाता को टेंशन में रखेगी और रात में जाकर तारीख बढ़ाएगी. ऐसे टेंशन बढाने में सरकारों या अफसरों को क्या आनंद आता है, यह देश की जनता की समझ से परे है. तारीख आगे बढाने के काम से भी राजनीतिक दरिया दिली दिखाकर राजनीतिक फ़ायदा भी उठाने का प्रयास मात्र  किया जाता है, ऐसा लगता है.

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