न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-24)
न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-24)
हमने पिछली तीन-चार कड़ियों में वायु दाब की शक्ति व उसकी कार्य प्रणाली के बारे में कई उदाहरण पर चर्चा की हैं। यह ऐसे उदाहरण हैं, जो आम जीवन में हमें देखने को मिल जाते हैं। इनकी अलग से कोई प्रमाणिकता की जरूरत नहीं हैं।
अभी एक मुख्य बिंदु पर चर्चा बाकी हैं, जिसे विज्ञान गुरुत्त्वाकर्षण से जुड़ा हुआ मानता हैं और वो बिंदु हैं, समुंदर में आने वाला ज्वार भाटा। विज्ञान के मतानुसार ज्वार भाटा पृथ्वी पर सूर्य व चन्द्रमा के गुरुत्त्वाकर्षण की वजह से आता हैं, जबकि मेरे मतानुसार यह विज्ञान का अब तक का सबसे मूर्खतापूर्ण बयान साबित होगा। ज्वार भाटे में चन्द्रमा का बहुत बड़ा रोल हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता, परन्तु गुरुत्त्वाकर्षण वाली बात बिल्कुल भी मान्य व सही नहीं हैं। ज्वार भाटे से सम्बंधित मेरी धारणा पर विचार करने के बाद आप भी गुरुत्त्वाकर्षण वाली बात को सिरे से ख़ारिज कर देंगे, यह मेरा पूर्ण विश्वास हैं।
मेरे मतानुसार कोई भी वस्तु का पृथ्वी की ओर ही आने का मुख्य कारण वायु दाब ही हैं। यही वायु दाब समुन्द्र में आने वाले ज्वार भाटे का भी मुख्य कारण हैं। ऐसा हमारे पृथ्वी पर होने वाले दिन रात की वजह से होता हैं। जब दिन में सूर्य की किरणे हमारे ग्रह के जिस हिस्से में पड़ती हैं, वहाँ का तापमान उत्तरोत्तर बढ़ने लगता हैं। इस तापमान के असर से वायु मण्डल भी उसी अनुरूप गर्म होने लगता हैं, जिससे वायु हल्की होने लगती हैं। उसका घनत्व वायु के फैलाव के साथ कम होने लगता हैं। इससे समुन्द्र के ऊपर वायु दाब कमजोर होने लगता हैं, और पानी ऊपर उठने लगता हैं। समुन्द्र के किसी हिस्से में पानी के ऊपर उठने ( यानिकी दूसरे अर्थ में पानी के नीचे की ओर ज्यादा लटकने ) से किनारे से पानी अंदर जाता हुआ नजर आएगा। ऐसी स्थिति में हमें किनारों से समुन्द्र दूर चला गया दिखाई देता हैं।
इसके विपरीत जब सूर्यास्त के बाद वातावरण में धीरे धीरे ठंडक होने लगती हैं, व चन्द्रमा की किरणों की ठंडक भी उसमें मिलती हैं, तो वायु ठण्डी होकर पुनः हमारे ग्रह पर घनीभूत होने लगती हैं। वायुदाब बढ़ने लगता हैं, जिससे ऊपर उठा हुआ ( यानिकी नीचे लटका हुआ ) पानी किनारों की तरफ दौड़ने लगता हैं। जो समुन्द्र पहले अंदर की ओर गया दिखाई दे रहा था, वो ही अब किनारों तक या काफी बाहर आया हुआ दिखाई देने लगता हैं। साधारणतया इसी प्रक्रिया को ज्वार भाटा कहा जाता हैं।
इसका असर चंद्रमा की कलाओं के साथ साथ घटता बढ़ता नजर आएगा, क्योंकि चन्द्रमा जितना दिखाई देगा, उसी अनुरूप ठंडक प्रदान करता हैं। यही कारण हैं कि पूर्णिमा की रात सबसे ठण्डी होती हैं। उस दिन चन्द्रमा पूरा दिखाई देता हैं। इस दिन समुन्द्र का पानी सबसे अधिक मात्रा में बाहर की ओर आया हुआ दिखाई देगा। इसके विपरीत अमावस्या के दिन चंद्रमा के बिल्कुल न दिखाई देने के कारण वातावरण में अपेक्षाकृत कम ही ठंडक हो पाती हैं, जिससे समुद्र का पानी उस दिन सबसे ज्यादा अंदर की ओर गया हुआ नजर आएगा।
हाँलाकि ज्वार भाटे में विज्ञान भी सूर्य और चन्द्रमा को कारक मानता हैं और मै भी मानता हूँ, पर विज्ञान जहाँ सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्त्वाकर्षण को मुख्य कारक मानता हैं, उसकी जगह मेरे मतानुसार सूर्य व चन्द्रमा से वायुदाब में होने वाला परिवर्तन मुख्य कारक हैं। आप यदि विज्ञान से सम्बंधित व्यक्ति हैं, तो कृपया मेरी बात को बिना किसी पूर्वाग्रह के जाँच करें। आप देखेंगे कि मेरा यह मत न्यूटन के गुरुत्त्वाकर्षण से कहीं ज्यादा सही व सटीक हैं।
अब आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप कोई ऐसी बात बतावें या पूछेँ, जिससे वायु दाब की जगह न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण ज्यादा सही अथवा कारगर नजर आता हो।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा