Saturday, November 23, 2019

पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-8)  

पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-8)

earthशुरू के इन तीनो तत्वों आकाश, वायु व तेज की उपस्थिति से चौथा, जल तत्व बना। जल तत्व का मुख्य गुण रस बताया गया हैं लेकिन इस मे उपरोक्त तीनो तत्वों के गुण शब्द, स्पर्श व रूप भी समाहित रहते है। रस का पहला अर्थ किसी भी वस्तु में हमारी रूचि या इच्छा बनने से हैं, तो रस का अर्थ स्वाद भी हैं। रस का अर्थ आनन्द हैं, तो फलों का रस भी इसी में आता हैं। यह सब जल तत्व की वजह से ही होता हैं। किसी खाने की चीज का मन में स्मरण होते ही मुँह में पानी आ जाता हैं, यह भी रस हैं। रस सार को कहते हैं। जहाँ फसलों व पेड़ पौधों को जीवन और विकास, सूर्य की किरणों से मिलता हैं, वहीं उनके दानों व फलों में रस, चंद्रमा की किरणों से बनता हैं। यह तो विज्ञान भी मानता हैं कि सूर्य की किरणों से पेड़-पौधे अपना आहार बनाते हैं।

जल ही जीवन हैं। यह बात भी पूर्णतया सत्य हैं क्योकि बाकी के चारों (आकाश, वायु, तेज व पृथ्वी) तत्व साधारणतया सब जगह उपलब्ध रहते है परन्तु जल तत्व सर्वत्र नहीं रहता हैं। यही कारण हैं कि बरसात के दिनों में, असंख्य जीव पैदा होने लगते हैं क्योंकि चारों तरफ जल की उपलब्धता हो जाती हैं। इससे पाँचों तत्वों का सम्मिश्रण हो जाता हैं और इन पञ्च महाभूतों के मिश्रण से ही शरीर बनता हैं। इसलिए यह कहना सत्य हैं कि  ‘जल ही जीवन हैं’।

अन्त मे पृथ्वी तत्व आता है, जिसका मुख्य गुण गन्ध बताया गया है। पृथ्वी तत्व का निर्माण, उपरोक्त चारो तत्वों के सहयोग से होता हैं इसलिए इस मे उपरोक्त सभी (आकाश, वायु, तेज व जल) तत्वो के गुण- शब्द, स्पर्श, रूप व रस का भी समावेश रहता है। इस कारण पृथ्वी तत्व में पाँचों गुण विद्यमान रहते है। गंध में सुगन्ध व दुर्गन्ध सभी का समावेश हैं। कहीं पानी अथवा हवा में भी सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध महसूस होती हैं, तो मूलतः वो पृथ्वी तत्व का हिस्सा होता हैं, जो पानी व हवा में घुल-मिल जाता हैं।

उपरोक्त वार्ता से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि पृथ्वी तत्व में पाँच, जल तत्व में चार, तेज तत्व में तीन, वायु तत्व मे दो व आकाश तत्व में केवल एक गुण की विद्यमानता रहती है।

सारा ब्रह्मांड इन पाँचो तत्वों से बना है। इन पाँचो को मानने पर ही प्रकृति का वर्तुल बनता हैं। जीवन-मरण का चक्र चलता हैं। यदि हम जीवन में घटित होने वाली घटनाओं पर नजर रखते हुए गहराई से विचार करें, तो स्वतः समझ में आ जाता हैं। किसी व्यक्ति की मृत्यु उपरांत उसका दाह संस्कार करते हैं। उसमें लाश व लकड़ी तथा अन्य सामग्री मिलाकर लगभग चार सौ किलो वजन को जला दिया जाता हैं। लेकिन बाद में कितना बचता हैं? यदि राख व अस्थियां मिलाकर कुल ही चालीस-पचास किलो भार ही बचता हैं, तो बाकि वजन कहाँ गया?

बस, इसी तरह से इस प्रकृति का खेल अनवरत चलता रहता हैं। अपने वर्तुलाकार क्रम में। आपकी नजर के सामने ठोस व वजनदार वस्तु ओझल हो जाती हैं। पुनः हर तत्व का रूपांतरण आकाश तत्व में हो जाता हैं। जहाँ लाश का दाह संस्कार न किया जाकर अन्य प्रक्रिया अपनाई जाती हैं, वहाँ इस प्रक्रिया में समय लगता हैं, क्योंकि वहाँ पर तेज तत्व का सीधा प्रयोग नहीं होता हैं जिससे रूपांतरण की प्रक्रिया में अधिक समय लग जाता हैं।

शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा 

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