न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-27)
न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-27)
किसी जिज्ञासु द्वारा यह भी पूछा गया की हमारे वायु मण्डल के बाहर की चीजे हमारे पृथ्वी ग्रह की ओर क्यों आती हैं? वहाँ तो वायु का दाब नहीं हैं। इसका मतलब अंतरिक्ष से हमारे पृथ्वी की ओर आने वाली कोई भी वस्तु गुरुत्त्व बल की वजह से ही आती हैं?
जी नहीं। कोई भी वस्तु जब गतिशील होती हैं, तो वह अपनी गति की दिशा में स्वाभाविक रूप से अग्रसर होती हैं। हमें केवल उन्हीं चीजों का भान होता हैं, जो हमारे ग्रह की ओर आती जान पड़ती हैं, परन्तु अंतरिक्ष में तो लाखों करोड़ो क्षुद्र ग्रह, उल्कापिंड आदि गति करते रहते हैं। इनमें से कौन कहाँ गिरता हैं, इसका हमें पता ही नहीं चलता। हम तो केवल उसी के बारे में जान पाते हैं जो हमारे वायु मण्डल में प्रवेश करता हैं। इसलिए वायुमण्डल के बाहर से किसी वस्तु का प्रवेश का कारण गुरुत्त्व बल नहीं हैं, बल्कि उस वस्तु की गति की दिशा इसका मुख्य कारण हैं। इसी के चलते कई बार कोई बाह्य वस्तु हमारे ग्रह की परिधि में प्रवेश कर जाती हैं। उसमें अधिकांश तो वायुमण्डल से होने वाले घर्षण के साथ ही जलकर नष्ट हो जाते हैं, और जो पूर्णतया नष्ट नहीं हो पाते हैं, उनका आकार भी इतना कम हो जाता हैं कि हमें भारी नुकसान नहीं उठाना पड़ता हैं।
मैंने अपने अनुभव आपके साथ साझा किये हैं। मैंने उन्हीं बातों को आपके समक्ष रखा हैं, जो अपने जीवन में स्वयं ने देखी अथवा की हैं। विज्ञान जिस तरह हर बात को कसोटी पर परखता हैं, वो साधन व ज्ञान मेरे पास नहीं हैं, लेकिन फिर भी यह बात मै दावे से कह सकता हूँ कि इस दुनियाँ में प्रत्येक खोज किसी जिज्ञासु व अपनी धुन के पक्के लोगो द्वारा ही की गई हैं।
मेरी बातों पर भी विचार करने पर विज्ञान को अवश्य कोई नया रास्ता जरूर मिलेगा।
इस चराचर जगत की हर वस्तु में आकर्षण अवश्य होता हैं। जहाँ विज्ञान विजातीय तत्वों अथवा चीजो में आकर्षण की बात करता हैं, वहीं हमारा पुरातन ज्ञान स्वजातीय तत्वों अथवा चीजो में स्वभावगत आकर्षण की बात करता हैं, और यही कारण हैं कि भारी वस्तुऍं पृथ्वी तत्व की ओर आकर्षित होती हैं। वायु तत्व का आकर्षण वायु तत्व की ओर ही होता हैं। जल तत्व कहीं की यात्रा करके आखिर में पुनः जल तत्व में ही जाकर यानि समुन्द्र में ही जाकर रुकता हैं। सभी चर-अचर पर यही नियम लागु होता हैं। पुरातन ज्ञान के अनुसार विपरीत लिंग में आकर्षण अवश्य होता हैं, परन्तु विजातीय तत्वों में आकर्षण की बात कहना गलत हैं।
किसी भी प्राकृतिक घटना के पीछे कम से कम पाँच कारणों याँ घटको का योग होता हैं, तब जाकर वो घटना घटित होती हैं। इन में से किसी एक में भी कुछ अंतर आ जाये तो घटना में भिन्नता नजर आती हैं, इसलिए किन्हीं निश्चित सिद्धान्तों के अंतर्गत प्रकृति को बांधकर नहीं समझा जा सकता हैं। हम समग्रता को फिर भी सिद्धान्तों के अंदर समझ सकते हैं परन्तु उसके बाद फ़ैल रहे जगत को नियमों अथवा सिद्धान्तों के अंतर्गत नहीं समझ सकते हैं, उनमें हर जगह फर्क ही दिखाई देगा।
मै अपने इस लेखमाला यानि न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं, को यहीं विराम देता हूँ। अगली कड़ी में हमारा विषय होगा- आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं अथवा विनाश।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा
Related Post
Tags: Articles,Extraordinary – असाधारण,Good News अच्छी खबरे,International अन्तराष्ट्रीय,Must Read,National राष्ट्रीय,Nature प्रकृति,Shiv Ratan Mundra,गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत,जल और पृथ्वी,ज्वार-भाटा,न्यूटन,न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त,भारतीय पुरातन विज्ञान,वायु,वायु तत्व,वायु दाब,शिव रतन मुंदड़ा