न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-20)
न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-20)
जब पानी के अंदर भँवर बनता हैं, तब भँवर के बीच में बनने वाली खाली जगह में वायु तुरन्त प्रवेश करने लगती हैं और अपने दाब के साथ वह प्रत्येक वस्तु को नीचे की ओर धकेलना शुरू कर देती हैं। यही कारण हैं क़ि भँवर के दायरे में आने वाली प्रत्येक वस्तु उसमें फंसती चली जाती हैं।
हम किसी गेंद या ट्यूब में हवा भरकर पानी में डुबाना चाहें तो वह पानी में नहीं डूबती हैं। वायु अपने को पानी के ऊपर, तुरन्त ले आती हैं। आदमी पानी के अंदर उस स्थिति में ही डूबता हैं जब श्वसन क्रिया के अंतर्गत वायु की जगह पानी शरीर के अंदर चला जाता हैं। व्यक्ति के पानी में डूबने से यदि मौत हो जाती हैं, तो शरीर के अंदर स्थित जीवाणुओं की क्रियाशीलता की वजह से शरीर में स्वतः वायु अथवा गैसों का निर्माण होने लगता हैं। इसी वजह से लाश पुनः पानी के ऊपर आकर तैरने लग जाती हैं।
वायु दाब पानी की ऊपरी सतह पर ही कार्य करता हैं, इसी कारण से पानी के अंदर से हम कोई चीज बाहर निकालते हैं तो उस वस्तु के पानी के अंदर रहने तक हमें उसका वजन नहीं लगता हैं, जबकि भूतल या भूभाग, पानी के अंदर रहने वाली वस्तु के ज्यादा नजदीक रहता हैं। ज्योही वह वस्तु पानी के बाहर आती हैं, त्योंही हमें उसके वजन का अहसास होने लगता हैं। हम कुए या टैंक से पानी निकालते हैं, तो बाल्टी का पानी के अंदर रहने तक, वजन नहीं लगने के पीछे यही कारण हैं। इससे न्यूटन के गुरुत्त्वाकर्षण सिद्धान्त का मिथ्यापन स्पष्ट होता हैं।
हमें वायु दाब की कार्य प्रणाली व उसके ताकत की वास्तविकता को समझना होगा। मैं आपका ध्यान दैनिक जीवन में काम आने वाली उन बातों की ओर खीचना चाहता हूँ, जिससे हम वायु दाब की शक्ति व उसकी कार्य प्रणाली का सहजता से अनुमान लगा सकते हैं-
1- आजकल रसोई में हम air tight डिब्बे काम में लेते हैं। डिब्बे के ढक्कन पर लगे लिवर को दबाने से डिब्बे के अंदर की हवा कुछ कम हो जाती हैं। लिवर पर दाब हटते ही वह अपने स्थान पर आ जाता हैं और डिब्बे में से निकली वायु से डिब्बे में जो थोडा सा रिक्त स्थान बनता हैं, उससे डिब्बे के चारों ओर वायु दाब उसी अनुपात में बढ़ जाता हैं, जिससे ढक्कन मजबूती से बन्द हो जाता हैं। उसे खोलने के लिए हमें पहले उसी लिवर को दबाना पड़ेगा, जिससे वायु डिब्बे के भीतर प्रवेश कर सकें वरना डिब्बा नहीं खुलेगा।
2- कई बार हमें दो कटोरी अथवा दो गिलास को (जो इकट्ठी रख दी गई हो) एक दूसरे से अलग करने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं। जब तक किसी भी रास्ते से वायु का प्रवेश, दोनों के बीच अंदर की ओर नहीं होगा, तब तक हम उन बर्तनों को एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते हैं।
3- हम कनस्तर (पीपे / डिब्बे)) से तेल को छोटे बर्तन में निकालते हैं। आपने देखा होगा की पीपे के भरे होने के बावजूद भी तेल तीव्र गति से बाहर नहीं आता हैं। न हम उसकी धार को समगति में स्थिर कर पाते हैं। तेल रुक रुक कर व उछल उछल कर निकलता हैं। जितना तेल एक बार में बाहर आता हैं, वो खाली जगह भरने, वायु पीपे में प्रवेश होती हैं, तब जाकर पुनः तेल बाहर आएगा। यह उस स्थिति में होता हैं, जब आप हवा के प्रवेश की जगह नहीं रखते हैं। आप यदि निकास की आधी जगह ही काम मे लेते हैं, तो यह परेशानी नहीं होगी, क्योंकि निकास द्वार की खाली जगह से वायु भीतर प्रवेश करती रहेगी। कई समझदार व अनुभवी लोग पीपे के निकास द्वार के विपरीत कोने में एक छोटा सा छेद कर देते हैं, उससे वायु का प्रवेश खाली हो रही जगह में सुगमता से होने लगता हैं। फिर आप एक ही लय और धार से तेल को आसानी से बाहर निकाल सकते हैं।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा
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