पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-4)
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पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-4).
कई जिज्ञासु पाठक अभी तक ‘पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान’ क भाग-1, भाग-2 व भाग-3 पढ़ चुके है. जो पढ़ने से चुक गए है, वो पीछे दिए गए लिंक पर क्लिक करके सीधा ही उन्हें पढ़ सकते है.
विज्ञान प्रमाण मांगता हैं। जब आकाश तत्व को देख नहीं सकते, छू नहीं सकते, उसका आभास भी नहीं होता। उसका कोई रंग रूप गन्ध याँ आकार भी नही, फिर कैसे मानले कि पदार्थ की कोई ऐसी अवस्था भी हैं? इसी वजह से विज्ञान अभी तक पदार्थ की इस प्रथम अवस्था को नहीं समझ पाया हैं। हमारे पुरातन ज्ञान में पदार्थ की इन पाँचों अवस्थाओं के अलग-अलग गुण बताये हुए हैं जिनसे हम पदार्थ की प्रत्येक अवस्था को समझ सकें।
आकाश का गुण शब्द हैं। वायु का गुण स्पर्श, तेज का गुण रूप, जल का गुण रस व पृथ्वी का गुण गन्ध हैं। इन्हीं गुणों की उपस्थिति, हमें सम्बंधित पदार्थ की उपस्थिति की ओर इशारा करती हैं।शब्द ही आकाश तत्व का प्रमाण हैं। आकाश तत्व के बिना शब्द की उत्पत्ति सम्भव नहीं हो सकती हैं। हमारे पास उपलब्ध इस ज्ञान के आधार पर हमारे वैज्ञानिक पदार्थ की इस प्रथम अवस्था को खोजने का प्रयास कर सकते हैं।
जब हम शांत पानी में कंकर फेंकते हैं तो पानी में वृत्ताकार लहरें बनती हैं, जो हमें दिखाई देती हैं। उसी तरह आकाश तत्व हमारे चारों ओर व्याप्त हैं। जब इसमें हलचल होती हैं तब शब्द की उत्पत्ति होती हैं। शब्द की ध्वनि हलचल की गति के अनुसार कम या ज्यादा होती हैं। सर्वत्र व्याप्त इस तत्व में प्रत्येक क्रिया से ध्वनि अवश्य पैदा होती हैं। जब वह तत्व पुनः अपनी जगह को लौटता है, तब दूसरे तत्व वायु का स्वतः निर्माण होने लगता हैं। जैसे पानी में पत्थर फेंकने पर स्वतः लहरे बनने लगती हैं, ठीक इसी तरह यह प्रक्रिया होती हैं परन्तु, यह दोनों तत्व आकाश व हवा, हमारी इन आँखों से दिखाई नहीं पड़ते हैं, जिससे हमें इनमें होने वाली इन प्रक्रियाओं का आभास नहीं हो पाता हैं।
आकाश तत्व को अभी तक हमारा विज्ञान भी नहीं समझ पाया हैं और वायु तत्व की अनुभूति मात्र स्पर्श से होती है, इसलिए इन दोनों तत्व में होने वाली क्रियाओं को हम अपनी आँखों से देखकर दर्ज करने में असमर्थ हैं। आज के युग में जो खतरनाक आयुध मानव सभ्यता द्वारा बनाये गए है, उनके उपयोग से जो उच्च विस्फोटक ध्वनि पैदा होती हैं, उसका कारण आकाश तत्व ही होता है। विस्फोट की क्षमता के अनुसार आकाश तत्व में एकदम जो शुन्य पैदा होता हैं उससे यह ध्वनि पैदा होती हैं। यह ध्वनि ही शब्द के नाम से हमारे शास्त्रों में आकाश तत्व के गुण के रूप में परिभाषित की गई हैं। आकाश तत्व के बिना ध्वनि का उत्पन्न होना सम्भव ही नहीं हैं। अब इस पुरातन ज्ञान को आधार मानकर यदि हमारा विज्ञान अपनी खोज करें, तो शायद कुछ नया कर पाने में सफलता प्राप्त हो सकती हैं। शेष अगली कड़ी में………………..
लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा
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