Tuesday, April 25, 2017

न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-19) 

न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-19)

 

जब वायु गर्म होकर गैसों के रूप में परिवर्तित होती हैं, तो ऊपर की ओर गमन करने लगती हैं। जहाँ भू भाग हैं, वहाँ हरियाली व पेड़-पौधों की नमी से उस ऊपर उठने वाली वायु को शीतलता मिलती हैं, जिससे उसका ताप कम होने लगता हैं और वायु पुनः ठण्डी होकर पृथ्वी की ओर आने लगती हैं। जहाँ पृथ्वी पर पानी का हिस्सा हैं, वहाँ हवा के साथ पानी भी गर्म होने लगता हैं। हवा पानी के सम्पर्क में आकर नम हो जाती हैं, तथा पानी भी गर्म होकर वाष्प की अवस्था में समुद्र की नम हवा में घुलकर ऊपर उठने लगता हैं। उस नमी के कारण वह वायु शीघ्र ठंडी होने लगती हैं, और बादलों का रूप धारण कर लेती हैं। वही बादल आपस में जब टकराते हैं, तो बिजली चमकती हैं। यह बिजली रूपी विद्युत प्रवाह ही बादलों के रूप में घनीभूत हुई वायु को जल में परिवर्तित कर देता हैं। जल पुनः अपने चक्र को पूरा करता हुआ महसागरों में पहुँच जाता हैं, व वायु ठण्डी होकर धरा की ओर लौट आती हैं।

हमारे पृथ्वी ग्रह के भू भाग वाले हिस्से पर बनने वाली गर्म वायु को हरियाली से जो ठंडक मिलती हैं, वो हमारे वायु मण्डल को गर्म होकर ऊपर जाने से रोकता हैं। कार्बनडाई ऑक्साइड को पेड़-पौधे आहार के रूप में भी ग्रहण करते रहते हैं तथा ऑक्सीजन के रूप में पुनः वायु का विसर्जन कर देते हैं। इस प्रकार वायु ठंडक प्राप्त होते ही पुनः हमारे ग्रह पर लौट आती हैं।

यह क्रिया-चक्र निरन्तर व निर्बाध गति से चलता रहता हैं, जिसका हमें अहसास भी नहीं होता हैं, परन्तु हमारे ग्रह पर उपस्थित इस वातावरण की वजह से ही वायु मण्डल सुदूर अंतरिक्ष में विलिन न होकर, पृथ्वी के चारों ओर लिपटा हुआ रहता हैं। यदि हमारे पृथ्वी ग्रह पर 70% जल तत्त्व नहीं होता या भूभाग पर हरियाली न होंती, तो इस वायु मण्डल को प्रकृति द्वारा पृथ्वी पर रोक पाना सम्भव नहीं होता।

ज विज्ञान जंगलो के विनाश, प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन, बढ़ते तापमान आदि की बात उठाकर मानव जाति को बार बार चेतावनी दे रहा हैं, उसके पीछे यही कारण हैं कि हम अपने वायु तत्त्व को नष्ट कर देंगे। वायु के विलिन होंते ही हमारी पृथ्वी पर मौजूद जल तत्त्व भी अंतरिक्ष में चला जायेगा, क्योंकि मेरी नजर में इन महासागरों में स्थित विशाल जलराशि को वायु ने अपने दाब से रोक रखा हैं, न कि न्यूटन के गुरुत्त्वाकर्षण ने।

हासागरों की ऊपरी सतह पर हरदम उठने वाली ऊँची लहरों के पीछे भी वायु का अनियंत्रित प्रवाह ही कार्य करता हैं, क्योंकि महासागरों के ऊपर चलने वाली हवाओं को रोकने वाला या  बाधा डालने वाला कोई अवरोधक वहा नहीं होता हैं। हमारी पृथ्वी पर अधिकांशतः हवाये पश्चिम से पूर्व की चलती हैं, उसी अनुसार सागर की लहरें भी पश्चिम से पूर्व की ओर दौड़ती नजर आती हैं। हालाँकि हवा की दिशा के साथ लहरों की दिशा में भी परिवर्तन आ सकता हैं। इस प्रकार वायु दाब व वायु की गति, दोनों मिलकर महासागरों में लहरे उत्पन्न करती हैं।

हमारे महासागरों की विशाल जलराशि को यही वायु दाब रोककर रखता हैं। यहाँ एक विशेष बात आपको और बताना चाहूँगा कि वायु पानी के अंदर प्रवेश करने में असमर्थ होती हैं। पानी का घनत्त्व वायु से बहुत ज्यादा होता हैं, इसलिए वायु पानी के अंदर प्रवेश नहीं कर पाती हैं।

शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा

                            

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