चुनावी घोषणा पत्र ईमानदार वादा है या मतदाताओं को ठगने का दस्तावेज ?
चुनावी घोषणा पत्र ईमानदार वादा है या मतदाताओं को ठगने का दस्तावेज ?
5 राज्यों में होने वाले विधान सभाओं के चुनाव के कारण पूरे देश में तथा खासतोर पर उत्तरी-भारत में चुनाव का माहोल है जिसको मोदी जी व नोट बंदी की परीक्षा के रूप में भी देखा जा रहा है. इस चुनावी माहोल में मतदाताओं को लुभाने के लिए लगभग सभी पार्टिया अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी कर रही है. लेकिन एक बड़ा प्रश्न यह है कि ये ‘घोषणा पत्र’ मतदाताओं को लुभाने के लिए ईमानदार वादे है या मतदाताओं को ठगने का एक दस्तावेज मात्र है ?
होना तो यह चाहिए कि किसी भी पार्टी की नीति, सिद्धांत व कार्यक्रम बहुत पहले से कानूनी बाध्यता के साथ जनता के सामने होने चाहिए लेकिन आजकल कई पार्टियों द्वारा चुनावी घोषणा पत्र का जनता को ठगने व बेवकूफ बनाने के लिए दुरूपयोग किया जाता है. पूरे विषय को समझने के लिए नीचे बिन्दुवार विवेचन किया जा रहा है जिससे आप पाठक अंदाज लगा सकेंगे कि ‘चुनावी घोषणा पत्र’ मतदाताओं को लुभाने के लिए नीतिगत ईमानदार चुनावी घोषणा पत्र है या मतदाताओं को ठगने का दस्तावेज मात्र है?
चुनावी घोषणा पत्र की कानूनी वैध्यता – वेसे भी देश में व खासतोर पर राजनीति में झूठ या कुछ भी बोलने की पूरी आजादी है. चुनाव के एन मोके पर घोषित किये जाने वाले ‘चुनावी घोषणा पत्र’ भी मात्र एक राजनीतिक स्टंट होते है व ओपचारिकता मात्र है जिसकी कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती. देश के किसी भी क़ानून में ‘चुनावी घोषणा पत्र’ जारी करने या नहीं करने के लिए कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं है.
चुनावी घोषणा पत्र के सम्बन्ध में चुनाव आयोग का रोल – कोई भी पार्टी सच्चे या झूठे ‘चुनावी घोषणा पत्र’ में कुछ भी लिख दे, उससे कोई भी सरकारी विभाग कोई भी सवाल पूछने वाला नहीं है. यही नहीं भारतीय चुनाव आयोग तो कुछ कर सकता है लेकिन वो भी मूकदर्शक ही बना हुआ है. भारतीय चुनाव आयोग को चुनाव सुधार के लिए झूठे घोषणा पत्रों के लिए कानूनन जबावदेही तय की जानी चाहिए तथा नियम-कायदे बनाए जाने चाहिए ताकि देश के मतदाताओं को धोखाधड़ी व ठगी से बचाया जा सके.
घोषित चुनावी घोषणा पत्र की सिविल या क्रिमिनल जबावदारी – देश में यदि कोई भी पार्टी सच्चा या झूठा ‘चुनावी घोषणा पत्र’ जारी करती है तो साधारणतया इन पार्टियों की कोई तय सिविल या क्रिमिनल जबावदारी नहीं है. यह स्थिति बड़ी विचित्र है लेकिन क़ानून विशेषज्ञो की एक राय के अनुसार झूठे ‘चुनावी घोषणा पत्र’ जारी करना व जारी करने के बाद उसको पूरा नहीं करना मतदाता के साथ खुल्ली धोखाधड़ी है, जिसके लिए झूठे ‘चुनावी घोषणा पत्र’ जारी करना व जारी करने के बाद उसको पूरा नहीं करने वाली पार्टियों व नेताओं के खिलाफ सिविल और / अथवा क्रिमिनल केस बनता है. उम्मीद करे कोई हिम्मती भारतीय पैदा होगा और झूठे ‘चुनावी घोषणा पत्र’ जारी करने वाली पार्टियों व नेताओं के खिलाफ सिविल या क्रिमिनल केस दायर करेगा एवं शीघ्र ही कोई कोर्ट भी ऐसी पार्टियों व नेताओं के लगाम लगाएगा.
‘चुनावी घोषणा पत्र’ में केसे-केसे वादे व सपने दिखाए जाते है – निम्न तरह के वादे व सपने ऐसे ‘चुनावी घोषणा पत्र’ में प्रकाशित व घोषित किये जाते है –
- ऐसी घोषणाये जिनको पूरा करना असंभव ही है. जेसे- संविधान की सीमाओं व सुप्रीमकोर्ट द्वारा घोषित कानूनी सीमाओं के बाहर घोषणाये करना.
- ऐसी घोषणाये जिनके द्वारा मतदाताओं को आर्थिक प्रोलोभन दिया जाता है. जेसे- मुफ्त टीवी , लैपटॉप, साइकिल या अन्य कोई भी सामग्री, सब्सिडी, छात्रवृति आदि वितरण की घोषणाये.
- कुछ भी सकारात्मक / साधारण घोषणाये जो हर पार्टी साधारणतया करती है जिसमे कुछ भी विशेष नहीं होता है. जेसे- विकास, भ्रष्टाचार, शिक्षा आदि आदि.
- ऐसी घोषणाये जो हर चुनावी घोषणा पत्र में बार-बार इस सोच के साथ की जाती है कि मतदाताओं के पास पिछले घोषणा पत्र की न तो कोई प्रति / नक़ल होगी और न ही अब मतदाता को कुछ भी कुछ याद होगा.
- ऐसी घोषणाये जो पार्टी की जग-जाहिर स्थाई नीति का हिस्सा होती है, फिर भी उनकी बार-बार ओपचारिक घोषणा, घोषणा पत्र में घोषणाओ की संख्या बढाने के लिए की जाती है.
- अगंभीर / कम गंभीर पार्टियों द्वारा बहुत बड़ी –बड़ी घोषणाये की जाती है क्योकि उनको मालूम है जनता उनको वोट नहीं देगी लेकिन दूसरी पार्टियों के मुकाबले में कुछ अलग दिखाने के लिए बड़ी –बड़ी घोषणाओ के माध्यम से प्रयास मात्र किया जाता है.
- एक साश्वत सत्य यह भी है कि पिछले ‘चुनावी घोषणा पत्र’ के असफल, अधूरे व झूठे वादों पर कोई भी पार्टी अपनी गलती स्वीकार नहीं करती.
- ‘चुनावी घोषणा पत्र’ बहुत ही कम संख्या में छपाए जाते है जो मात्र पत्रकारों / मीडिया को दिए जाते है तथा जनता अखबारों में पढ़ लेती है या टीवी पर देख लेती है.