सूरज की गर्मी से तपता जून, आंदोलनों की आग से झुलसेगा !
सूरज की गर्मी से तपता जून, आंदोलनों की आग से झुलसेगा !
पूरे भारत में सूरज की गर्मी चरम है और मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के हिंसात्मक आंदोलनों गर्मी का पारा और चढ़ा रखा है. लेकिन अभी पारा झुलसाने की स्थिति तक ओर चढ़ेगा क्योकि जीएसटी से चिंताग्रस्त, दुखी, परेशान व बेरोजगार वाणिज्य जगत के लोग बारी बारी से लम्बे आंदोलनों के लिए मैदान में उतरने वाले है.
15 जुलाई से कपड़ा व्यापार जगत के लोग अनिश्चित कालीन हड़ताल पर उतरने वाले है. और भी कई व्यापारिक संगठन एक के बाद हड़ताल / बंद से जुड़ते जायेंगे. व्यापारिक आन्दोलन आमतोर पर शांतिपूर्ण होते है, अत: सरकार पर कम दबाव बनाता है. इस बार व्यापारिक आंदोलनों की शुरूआत मोदीजी के राज्य गुजरात से होने वाली है. व्यापारी के वोट की कीमत वेसे भी बहुत मामूली सी है अत: उनके आंदोलनों से सरकार के कोई फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन तपिस अवश्य बढ़ेगी. ऐसे में व्यापारियों को ‘अहिंसक सद्बुद्धि यज्ञो’ से ही काम चलाना पडेगा.
लेकिन असली गर्मी चढ़ेगी ट्रांसपोर्टर व ट्रको के चक्का जाम से जो कि काफी हिंसात्मक भी हो सकता है जिसके सामने सरकार हमेशा की तरह झुकेगी भी. वेसे भी देश में शांतिपूर्ण आंदोलनों सरकारो पर कोई असर ही नहीं होता. पश्चिमी बंगाल सहित कई राज्य सरकारे भी आन्दोलनकारियों को समर्थन देगी, जिससे जीएसटी विरोधी आंदोलन लम्बे चल सकते है.
वेसे भी होल-सेल व्यापार लगभग रूक सा गया जिसका प्रभाव खुदरा व्यापार पर भी दिखने लगा है. कई आइटम्स में भारी मंदी व भावो में गिरावट सामने दिखने लग गयी है. ‘जीएसटी’ आने से पहले ही ‘नोटबंदी’ से पैदा हुई खाज में कोढ़ का काम कर रही है. लेकिन देश के नवोदित अर्थशास्त्री मोदीजी व जेटलीजी को सिर्फ और सिर्फ अपने संख्याबल – बहुमत वाले अर्थशास्त्र के भरोसे किसी भी कीमत पर अपनी बात मनवानी है क्योकि ‘जीएसटी’ से ही देश में विकास होगा, सीमाए सुरक्षित होगी, कालाधन समाप्त होगा तथा पाकिस्तान को मुह तोड़ जबाव मिलेगा -सीए के.सी.मूंदड़ा (कैलाश चंद्रा)