Sunday, September 10, 2017

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-29)  

आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-29)

 

हिन्दु  संस्कृति के मतानुसार वसुदेव कुटुम्बकम् की अवधारणा का पालन करते हुए संयुक्त परिवार में रहकर सभी आनन्द का अनुभव करते थे। जैसे आज भी सब जगह, चाहे कार्यालय हो, चाहे सरकारी ऑफिस हो, चाहे बैंक हो, चाहे पुलिस थाना हो, चाहे खुद सरकार हो, सभी जगह कोई न कोई मुखिया होता हैं, उसी तरह संयुक्त परिवार का भी मुखिया होता था, जिसकी बात के अनुसार चलना अपना कर्तव्य समझा जाता था।

म छोटे से गाँव में रहते थे जहाँ की आबादी लगभग ढाई से तीन हजार की थी। वैसे भी हिंदुस्तान की अधिकांश आबादी लगभग 80 प्रतिशत उस समय  गावों में ही रहती थी। आने जाने के साधन के रूप में पैदल अथवा बैलगाड़ी, घोड़ा व ऊँट आदि जानवरों का उपयोग होता था। शादी-विवाह, जन्म-मरण, तीज-त्योंहार, कथा-सत्संग, भजन-कीर्तन, आदि सभी कार्य व सामूहिक आयोजन गावों में भी उस समय होते देखे हैं, जिन्हें बहुत ही हर्षोल्लास से सब लोग मिलजुलकर सम्पन्न करते अथवा मनाते थे।

चपन में खेल के रूप में कबड्डी, सितोलिया, झुड़नी, मालदड़ी, गिल्ली डंडा, चकरी चलाना, दौड़ लगाना, ऊँची कूद, लम्बी कूद, छाया-रौशनी, लुक्का छिपी, गिरतोरनी, अलि-गली, भर-चर, चौपड़पासा, घट्टे, चिर्मियां, मिमिये, कील रोपना, पत्थर निशाना, आँख-मिचौनी, लंगड़ी टांग, कुश्ती, पेड़ के पत्तों की फिरकनी बनाकर हवा में घुमाना, गोपण चलाना, अंताक्षरी, दोहे, प्रश्नोत्तरी, नाटक मंचन, एकाभिनय, स्वांग रचना, तालाब या  बावड़ी में तैराकी, घरोंदे बनाना व तोडना, खो-खो, पकड़ा-पकड़ी, लूण क्यारी, रुमाल झपट्टा आदि अनेकोनेक मनोरंजक खेल खेले जाते थे। किसी भी खेल को कहीं से खरीद कर लाना नहीं पड़ता था। सारे खेल शारीरिक कौशल और विकास से सम्बंधित होते थे।

बुजुर्ग, महिलाएं, युवा सभी अपने अपने कार्यों में लगे रहते थे और शाम को पूरा परिवार वापस घर पर इकट्ठा हो जाता था। कोई आस पास बाहर गया हुआ होता तो भी देर-सवेर या  अगले दिन लौट आता था। चारों तरफ खुशहाली व अपनत्व का माहौल रहता था। स्वार्थ या राग-द्वेष की बात कम ही नजर आती थी। खेती व पशुपालन का कार्य लगभग सभी घरों में रहता था। घरों में खाने की शुद्ध चीजे ही मिलती थी। दूध, दही, छाछ आदि की कोई कमी नहीं थी। छाछ तो कोई किसी के यहाँ से मांगकर ले आता था और बच जाती तो आवाज देकर बुलाते थे कि छाछ ले जाओ। नहीं ले जाने पर उलाहना तक दे देते थे। खेत की ताजी सब्जियाँ खेतिहर औरते छबड़ियों में बेचने हेतु लाती थी, जिन्हें पैसे या अनाज के बदले में खरीद लिया जाता था। किसी के पास कोई चीज की कमी रहती तो ध्यान पड़ते ही दूसरों द्वारा उसकी पूर्ति कर दी जाती थी।

प्राइमरी तक शिक्षा थी। सरकारी स्कुल था। मास्टरजी को गाँवों में बड़ी आदर की नजर से देखा जाता था। बच्चे भी अध्यापको का पुरा आदर करते थे। पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, गणेश चतुर्थी आदि स्कुल प्रांगण में, सभी गणमान्य नागरिको की उपस्थिति में बड़े ही शानदार तरीके से मनाये जाते थे। स्कुल में पढ़ाई का स्तर अच्छा था। सुबह प्रार्थना व ड्रिल अनिवार्य रूप से होती थी। शाम को कोई एक गेम कबड्डी, फुटबॉल या अन्य जरूर खिलाया जाता था।

कोई विशेष घटना या  बात की जानकारी पुरे गांव को देनी होती, तो गाँव का चौकीदार या इस कार्य हेतु नियुक्त व्यक्ति गढ़ की ऊँची दीवार पर चढ़कर जोर से आवाज लगाता था, जो रात के सन्नाटे में पुरे गांव में आराम से सुनाई दे जाती थी। आवाज तीन चार बार थोड़े थोड़े अंतराल में लगाई जाती थी, जिससे हर व्यक्ति सजग होकर सुन सकें। जमीनें आज की तरह महंगी नहीं थी। इंच इंच जमीन के लिए झगड़े नहीं होते थे। दस दस टुकड़े हो जाने के बावजूद भी जमीनों की बुवाई लोग साथ में ही कर लिया करते थे।

शेष अगली कड़ी में—

Related Post

Add a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अब भरने पड़ेंगे 43 जीएसटी रिटर्न – जीएसटी में सरलीकरण के लिए व्यापारियों को शुभकामनाये ?

अब भरने पड़ेंगे 43 जीएसटी रिटर्न – जीएसटी में सरलीकरण के लिए व्यापारि...

अब भरने पड़ेंगे 43 जीएसटी रिटर्न – जीएसटी में सरलीकरण के लिए व्यापारियों को शुभकामनाये ? कल दिनांक 09.09.2017 को हुई जीएसटी कौंसिल की ...

SiteLock