न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-26)
न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-26)
पृथ्वी के अंदर का कोई हिस्सा रिक्त हैं, खोखला हैं, जहाँ वायु प्रवेश करना चाहती हैं, और इसी कारण हमारा वायु मण्डल हमारे इस ग्रह के चारों ओर लिपटा हुआ हैं।
हम में से कोई यह भी सोच सकता हैं की यदि वायु रिक्त स्थान की ओर गमन करती हैं, तो सुदूर अंतरिक्ष में हमारा वायुमण्डल विलिन क्यों नहीं हो जाता? इसके पीछे भी मुख्य कारण हमारे ग्रह का जलवायु हैं, जिससे हमारा वायुमण्डल अभी तक संरक्षित हैं। जब वायु गर्म होकर फैलती हैं या ऊपर की ओर जाने लगती हैं, तो ऊपर के वातावरण, जो की अपेक्षाकृत ठण्डा रहता हैं, के कारण वायु पुनः सघन होकर नीचे यानि हमारे ग्रह की ओर लौटने लगती हैं।
गर्मियों में जब तेज धुप पड़ती हैं, तब हवा गर्म होकर ऊपर उठने लगती हैं। हमारे यहां पर मरुस्थल की रेत गर्म भट्टी की तरह दहकने लगती हैं, इससे वायु हल्की होकर ऊपर की ओर गमन करने लगती हैं।उस जगह को भरने हेतु दूसरी वायु उस खाली जगह की तरफ दौड़ने लगती हैं। यह सारा खेल निरन्तर गतिशील होने लगता हैं, तब रेगिस्तान की रेत को वायु अपने वेग के साथ ऊपर उठाने लगती हैं। इस प्रकार आँधी आने लगती हैं। रेत बहुत जल्दी गर्म होती हैं। यही कारण हैं कि रेतीले इलाकों में गर्मी के दिनों में अक्सर अंधड़ व आँधिया चलती रहती हैं।
दूसरी तरफ जहाँ भूभाग पर जल यानि समुद्र हैं, वहाँ भी हवा गर्म होकर वेग से चलने लगती हैं, परन्तु जल को वायु अपने साथ नही उठा सकती हैं, क्योंकि रेत की अपेक्षा जल के अणु सूक्ष्म व सघन होते हैं जिसके कारण जल के अणु एक दूसरे से चिपके हुए रहते हैं, जबकि रेत के कण अलग अलग होते हैं। पर तेज गर्मी से जल भाप बनकर ऊपर उठने लगती हैं और यही भाप ऊपर जाकर बादलों का रूप धारण कर लेती हैं।
हमारे भूभाग पर तीसरा रूप ऊँचे पर्वतों का आता हैं जहाँ गर्मियों में भी अपेक्षाकृत मौसम ठण्डा रहता हैं जबकि पर्वत की चोटियाँ सूर्य के ज्यादा नजदीक रहती हैं। कई ऊँची चोटियों पर हमेशा बर्फ जमी रहती हैं।
इन तीनो अवस्थाओं के पीछे विशेष कारण हैं। जहाँ रेत सबसे तीव्र गति से गर्म होती हैं, वहीं ठंडी भी शीघ्र हो जाती हैं। इसीलिए मरुप्रदेश की रातें गर्मी में भी ठण्डी रहती हैं। जल के गर्म होने की गति रेत की अपेक्षा धीमी होती हैं, तो जल को ठण्डा होने में भी समय लगता हैं। जिससे गर्मियों में समुद्र के पास के हिस्सों का वातावरण आधी रात गुजरने के बाद ही ठण्डा हो पाता हैं तथा दिन में लगभग दस ग्यारह बजे तक तेज गर्मी का अहसास नहीं होता हैं, क्योंकि जल शीघ्रता से गर्म नहीं होता, जबकि पहाड़ो की चोटियाँ इन दोनों यानि रेत व जल से दूर होने से नीचे की गर्मी से बच जाती हैं। यही कारण हैं कि ऊपर का तापमान अपेक्षाकृत ठण्डा रहता हैं। इसी बात को हम सर्दियों के दिनों में देखे तो ठंड से हवा घनीभूत होकर कोहरे का रूप धारण कर लेती हैं। ऐसा लगता हैं कि बादल जैसे धरती पर आ गए हों। यह जल और वायु का खेल ही जलवायु कहलाता हैं।
आज विज्ञान बढ़ते हुए तापमान पर अपनी चिंता प्रकट कर रहा हैं, तो गलत नहीं हैं। हमें अपने ग्रह का उचित तापमान बनाये रखने हेतु पूर्णतया सजग व प्रयासरत रहना होगा।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा
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