मोदी राज में भी आयकर विभाग में उत्पीडन (Harassment) में कोई कमी नहीं.
मोदी राज में भी आयकर विभाग में उत्पीडन (Harassment) में कोई कमी नहीं.
मोदी राज में ऊपर चाहे कितनी ही बड़ी-बड़ी बाते होती हो या बड़े–बड़े नारे लगाए जाते हो लेकिन धरातल पर मोदीराज में भी कोई भी परिवर्तन नजर नहीं आता है. वही ढर्रा चल रहा है जो कांग्रेस राज में चल रहा था. यही हाल आयकर विभाग का है जिसमें में भी करदाताओ के उत्पीडन व लाल-फीताशाही में कोई कमी नहीं हुई है.
एक मामले में एक कर-दाता कंपनी के निदेशक द्वारा कंपनी से सम्बंधित प्रधान आयकर आयुक्त, अजमेर के समक्ष क्षेत्राधिकार से सम्बंधित आयकर अधिनियम,1961 की धारा 120 व 127 के तहत जारी सभी आदेशो की सत्यापित नकले माँगी जो कि सार्वजनिक दस्तावेज है लेकिन कर-दाता का उत्पीडन करने व किसी षड्यंत्र की नियत से नकले टालने के लिए एक हास्यास्पद बहाना बनाया जो कि आयकर विभाग के बड़े अफसरों की मानसिकता को भी दर्शाता है.
किसी भी निष्कर्ष में पहुचने से पहले, मै जनता के सामने पूरे घटनाक्रम की प्रत्येक तारीख के अनुसार गतिविधियों का चार्ट नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ –
क्रम सं. | तारीख | गतिविधि | टिप्पणी |
1. | 20.09.2016 | कर-दाता की ओर से कॉपी के लिए डाक द्वारा आवेदन किया गया जिसमी निवेदन किया गया कि वांछित नकले डाक द्वारा भेजे. . | साथ में कोपिंग फीस का 100 रू.चालान व 60 रू. के डाक टिकट भी भेजे . |
2. | 23.09.2016 | अधिकतम 23.09.2016 तक कर-दाता का आवेदन प्रधान आयकर आयुक्त, अजमेर के कार्यालय में पहुचा. | – |
3.
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06.10.2016 | कर-दाता का सीए स्वयं पूछताछ व निवेदन करने के लिए उपस्थित हुआ. | आश्वासन मिला. |
4.
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18.10. 2016 | कर-दाता का सीए स्वयं पूछताछ व निवेदन करने के लिए दूसरी बार उपस्थित हुआ. | पुन: आश्वासन मिला. |
5. | 19.11.2016 | प्रधान आयकर आयुक्त, अजमेर के आयकर अधिकारी (तक.) के एक पत्र दिनांकित 15.11.2016 के द्वारा पत्र भेजकर नकले पाने वाले की अथॉरिटी भेजने के बहाने एक तरह से नकले भेजने से मना कर दिया. | लगभग 55 दिन बाद नकलों की जगह एक शर्त लगाकर कर-दाता को पत्र भेज दिया गया |
6. | 30.11.2016 | आयकर ट्रिब्यूनल में सुनवाई होनी है, जहा ये नकले प्रस्तुत होनी है. | – |
उपरोक्त चार्ट से यह तो स्पष्ट है कि या तो लाल-फीताशाही व अकर्मण्यता के चलते 55 दिन तक हाथ पर हाथ धरे बेठे रहे या फिर किसी फर्जीवाड़े का षड्यंत्र करते रहे और अचानक अंतिम क्षणों में पत्र भेज कर एक हास्यास्पद मांग रख दी गयी. मेरे 36 साल के अनुभव में ऐसा पत्र / शर्त पहली बार देखी है. मजे की बात है कि इस रिपोर्ट के साथ संलग्न पत्र को भेजने के लिए तथा इससे पूर्व बीसियों नोटिस / आदेश आदि उसी पत्ते पर भेजे गए लेकिन पाने वाला का कभी नाम या अथॉरिटी नहीं पूछी गयी. इस केस में तो स्वयं निदेशक ही आवेदक है तो वह कहा से अथॉरिटी लाएगा तथा एक अथॉरिटी देने वाले को कोन अथॉरिटी देगा ?
इससे पूर्व भी इसी करदाता ने आयकर विभाग अजमेर व किशनगढ़ से कई बार नकलो के लिए आवेदन किया लेकिन पाने वाला का नाम या अथॉरिटी कभी नहीं पूछी गयी. न ही ऐसी कोई शर्त आयकर की धारा 282 में है. जब यह अधिकारी नकले भेजने के लिए यह पत्र बिना पाने वाला का नाम या अथॉरिटी कंपनी को भेज सकता है तो नकले भेजने से उनको कौन रोक रहा था. लेकिन जब अधिकारी की नियत ही खराब हो तो वो दूसरा पत्र तो भेजता है लेकिन डाक टिकट उपलब्ध होने के बावजूद नकले नहीं भेजता है.
इससे स्पष्ट है कि न केवल कर-दाता को परेशान करने व उसको उसके अधिकार से वंचित करने की नियत से नकले नहीं दी जा रही है बल्कि इसके पीछे कूट-रचना करने का बड़ा षड्यंत्र भी हो सकता है. इससे यह भी स्पष्ट होगा कि धरातल पर नौकरशाही आज भी उत्पीडन व अत्याचार कर रही है लेकिन ऐसा उत्पीडन, अत्याचार व लाल-फीताशाही तो कांग्रेस राज में भी नहीं देखी गई.
सीए के. सी. मूंदडा