आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-38)
आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-38)
आज विज्ञान ने हमें परिवहन व यातायात की भारी सुविधा उपलब्ध करा दी हैं। पहाड़ पठार मैदान रेगिस्तान समुद्र अथवा वायु मार्ग, सभी जगह आदमी को यात्रा की सुविधा उपलब्ध हैं। अब तो अंतरिक्ष यात्रा हेतु भी बुकिंग शुरू हो चुकी हैं। पहले जहां व्यक्ति जीवन भर में मुश्किल से हजारो किलोमीटर तक की यात्रा कर पाता था, वो अब लाखों किलोमीटर की यात्रा अपने जीवन में करने लगा हैं। कई लोग करोड़ो किलोमीटर की संख्याँ को भी पार कर चुके हो तो कोई बड़ी बात नहीं हैं। पहले यह सब मुमकिन नहीं था। इसी कारण हमारे देश में हर तीस से पचास किलोमीटर की दुरी पर भाषा व संस्कृति में बदलाव देखने को मिल जाता था। पुरानी पीढ़ी में यह अंतर आज भी महसूस किया जा सकता हैं।
आज विज्ञान ने दूरियाँ घटा दी। इसके लिए दूसरी बाधा भाषा को मानते हुए फिर शिक्षा का राष्ट्रीय करण किया गया। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषायी समानता लाने हेतु विशेष भाषाओँ को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर मान्यतायें प्रदान की गई। इससे भाषायी ज्ञान में समानता आने से व्यक्ति सुविधा पूर्वक विश्व भ्रमण कर सकें। इन सब सुविधाओं से आज पूरा विश्व एक परिवार की तरह छोटा हो चूका हैं। यह वसुधैव कुटुम्बकम् वाली बात चरितार्थ होने जैसा समय लग रहा हैं।
यह अलग बात हैं क़ि इसका परिणाम उपरोक्त धारणा के अनुसार नहीं निकला, बल्कि हमें इसके दुष्परिणाम भोगने पड़ रहे हैं। हम दुनियाँ में जहाँ भी पहुँचे, वहाँ से लोगो की कमजोरियाँ व बुराइयाँ इकट्ठी करके ले आये। हमने बिना सोचे समझे उन बातों व उन संस्कारों को आत्मसात किया, जिनका हमारी सामाजिक संरचना, संस्कृति व स्थानीय पर्यावरण से कोई सम्बन्ध नहीं हैं, और न ही हमें उसका कोई फायदा हैं। फिर भी शारीरिक वासना की तृप्ति व भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु हमने दूसरों की संस्कृति व क्रियाकलापों को अपनाना शुरू कर दिया।
हमारी सांस्कृतिक धरोहर खत्म हो गई। हम पाश्चात्य संस्कृति में समा गए। हमने कभी यह नहीं सोचा कि वहां का वातावरण कैसा हैं? वहाँ का सामाजिक ताना-बाना कैसा हैं? वहां के ठंडे वातावरण में बियर, रम, व्हिस्की आदि पीना शायद जरूरी हो सकता हैं। हमने यह नहीं सोचा की वहां की जलवायु में व्यक्ति की कामवासना नहीं उठती, इसलिए पोर्न व न्यूड फ़िल्में बनाई व देखी जाती हैं।
पर भला यह सब चीजों की हमें कहाँ जरूरत हैं। हमारे लिए यह किस काम की, जहां बारह से सोलह वर्ष तक का लड़का याँ लड़की यहां की जलवायु से ही कामातुर हो जाय। ऐसे गर्म जलवायु में शराब बीड़ी सिगरेट तम्बाकु चाय कॉंफी आदि गर्मी पैदा करने वाली चीजों के सेवन का क्या काम अथवा फायदा हैं? हमारे देश में पोर्न अथवा सैक्सी फिल्मों की क्या जरुरत हैं? विज्ञान के अविष्कारों की मदद से आज सबसे ज्यादा पोर्न साइटे भारत में देखी जा रही हैं। यह बात तीन दिन पहले ही अख़बार में छपी हैं। आश्चर्य तो इस बात का हैं कि हमारे यहाँ शराब का कार्य तो जनहित के लिए चुनी गई हमारी सरकार, स्वयं करती हैं।
संसार ने अथवा यह कह लें कि विज्ञान ने इन दूरियों को घटाकर क्या हासिल किया?
कौनसा तीर मारा?
किस क्षेत्र में फायदा हुआ?
यही हैं कि आज के विज्ञान से हम विकास की ओर नही बल्कि विनाश की ओर ही बढ रहे हैं। आप खुद सोचकर बतावें। हो सकता हैं कि मेरी सोच नकारात्मक हो अथवा गलत हों, तो आप अपनी बात बतावें, ताकि मै आपकी बात को तथ्यों व साक्ष्यों सहित स्पष्ट कर सकूँ।
शेष अगली कड़ी में—