पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं (विज्ञान पड़ाव हैं, मंजिल नहीं) – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-5)
पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं (विज्ञान पड़ाव हैं, मंजिल नहीं) – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-5)
ज्ञान सत्य को कहते हैं। ज्ञान में कभी परिवर्तन नहीं हो सकता हैं, जबकि विज्ञान में सदैव परिवर्तन होता रहता है। विज्ञान पड़ाव हैं, मंजिल नहीं। आज कही गई बात कल विज्ञान खुद ही झुठला देगा। पहले अणु को पदार्थ की सबसे छोटी इकाई के रूप में बताया गया। फिर परमाणु को, फिर इलेक्ट्रोन प्रोटोन न्यूट्रोन आदि आते गए, जबकि ज्ञान में ऐसा नहीं होता हैं।जो अंतिम सत्य हैं, वो ही ज्ञान होता हैं।
दूसरा विज्ञान को विशेष ज्ञान के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता हैं क्योंकि विज्ञान पदार्थ के हर घटक को अलग-अलग कर देखता है।विज्ञान किसी भी वस्तु या पदार्थ में उपस्थित हर घटक को अलग-अलग कर उसकी व्याख्या करता हैं। यह कार्य पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता हैं ताकि उसमें विशेषज्ञता हासिल की जा सके परन्तु मैं इसे विपरीत ज्ञान की संज्ञा देता हूँ क्योंकि पदार्थ या वस्तु के सारे घटक प्राप्त कर लेने के बाद भी पुनः उस पदार्थ या वस्तु को नहीं बनाया जा सकता हैं। प्रकृति की प्रत्येक क्रिया में सत्व, रज और तम का समान समावेश होता हैं, जिसे त्रिपुटी कहा जाता हैं।
हमारे द्वारा भी जो कार्य किया जाता हैं वो बिना त्रिपुटी के सम्भव नहीं। इस त्रिपुटी में प्रकृति के तीनो गुण सत्व, रज और तम का समावेश होता हैं। जिसे शास्त्र में अध्यात्म, अधिदेव व अधिभूत के नाम से दर्शाया गया हैं। इसमें जो सत्व गुण हैं वो दिखाई नहीं देता हैं और न ही उसे घटक के रूप में अलग से प्राप्त किया जा सकता हैं। यही कारण हैं कि जब विज्ञान पदार्थ के अलग-अलग घटक कर देता हैं तब पुनः उन घटकों को मिलाकर पदार्थ का मूल रूप प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं। विज्ञान में हमने पढ़ा कि पानी का फार्मूला हैं- H2O यानि दो मात्रा हाइड्रोजन व एक मात्रा ऑक्सीजन। क्या इन दोनों गैसो को उपरोक्त मात्रा में आपको दे दें, तो इनको मिलाकर आप पानी बना देंगे?
इसी तरह वस्तु के अंदर भी मौजूद प्रत्येक घटक को अलग-अलग कर समझा जा सकता हैं परन्तु उन सभी घटकों को मिलाकर उस वस्तु को पुनः नहीं बनाया जा सकता हैं। वस्तु को बनाने का जो तरीका होता हैं, जो प्रोसेस होता हैं, वो तो उसी से ही बन पायेगी जबकि वस्तु के प्रोसेस को किसी घटक के रूप में प्राप्त करना सम्भव नहीं होता।
विज्ञान द्वारा इस तरह से प्राप्त की जाने वाली विशेषज्ञता के कारण ही आज हम हर तरफ से विनाश की ओर बढ़ रहे हैं और इसीलिए मैंने ‘विज्ञान’ शब्द को ‘विपरीत ज्ञान’ से सम्बोधित किया हैं।
पहले नाडी-वेध्य होते थे जो नाड़ी की गति को देखकर बीमारी पकड़ लेते थे व उपचार कर देते थे क्योंकि वो पुरे शरीर की जानकारी एक इकाई के रूप में प्राप्त करते थे जिससे उनके द्वारा दी गई औषधि का कोई साईड इफेक्ट नहीं होता था। अब हालात यह हैं क़ि किसी भी डॉक्टर के पास चले जाओ, आपको ही अपनी बीमारी उसे बतानी पड़ेगी, फिर वो सारे टेस्ट करायेगा, फिर दवाई देगा। आपकी वो बीमारी ठीक भी हो जायेगी परन्तु आप यह निश्चित मान लें कि दूसरी बीमारी आप अपने साथ लेकर आ रहे हैं। उन्हें शरीर के किसी एक अंग में महारत हासिल कर ली लेकिन दूसरे अंगों का ज्ञान न होने से दी जा रही दवाई के अन्य दुष्प्रभाव पर उनका ध्यान नहीं जाता।
आज के युग में इसका खामियाजा पूरी मानव जाति भुगत रही हैं और यह सब आज के विज्ञान की ही देन हैं। यह बात आप को विषय से हटकर लग रही होगी पर यहाँ इसलिए लिखना पड़ रहा है जिससे हम विज्ञान की कार्य प्रणाली को समझ सकें। जब विज्ञान ने पानी के घटक अलग-अलग कर लिए तो एक फार्मूला तैयार हो गया परन्तु जब फार्मूले के अनुसार सभी घटको को दी गई मात्रा में मिलाया तो पानी तो बना ही नहीं फिर H2O का मतलब ही क्या हुआ?
विज्ञान को भी इन घटको को मिलाकर प्रोसेस करना पड़ा। उस मिश्रण में विद्धयुत प्रवाह करना पड़ा तब वह मिश्रण पानी बना। हमें यह विद्धयुत प्रवाह घटक के रूप में कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता। यह अपना कार्य कर वहा से हट गया। सत्व गुण हमें दृष्टिगोचर नहीं हो सकता हैं। प्रकृति में तीनो गुण सत्व, रज और तम समान मात्रा में रहते हैं परन्तु सत्व गुण अपना कार्य कर के हट जाता हैं, उसकी किसी भी पदार्थ में संलिप्तता नहीं रहती हैं।
विज्ञान को प्रकृति के रहस्यों को समझने के लिए इस भारतीय पुरातन ज्ञान को आधार बनाना चाहिए। कम से कम हमारे वैज्ञानिक तो यह कर ही सकते हैं।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा