न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-17)
न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-17)
भारतीय पुरातन ज्ञान के अनुसार समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण पञ्च महाभूतों से हुआ हैं। ये पञ्च महाभूत आकाश, वायु, तेज, जल व पृथ्वी हैं। इन पाँचों के गुण क्रमशः शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गन्ध हैं। ये सारी बातें पहले प्रसारित 10 कड़ियों ( पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं, बल्कि पाँच होती हैं।) में आ चुकी हैं। प्रसंगवश यहाँ इनका उल्लेख फिर से किया गया हैं।
हमारे पुरातन ज्ञान में गुणों के साथ गुण धर्म का भी उल्लेख बताया गया हैं। आकाश का गुण शब्द हैं, और गुण धर्म बताया गया हैं – फैलाव। इसी कारण से ब्रह्माण्ड को अंतहीन बताया जाता हैं। विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता हैं कि हम ब्रह्माण्ड के दूसरे छोर तक नहीं पहुँच सकते क्योंकि यह अनवरत फैलता जा रहा हैं।
इसी तरह वायु का गुण स्पर्श हैं और गुण धर्म हैं – किसी जगह को खाली यानि रिक्त नहीं छोड़ना। वायु का यही गुण धर्म हमारी इस पृथ्वी को सुरक्षित रखे हुए हैं। हमारी पृथ्वी के चारों ओर घनी और मोटी वायुमण्डलीय परत व्याप्त हैं और हमारी पृथ्वी अंदर से खोखली हैं। यह खोखलापन कितने व्यास का हैं अथवा किस हिस्से में हैं यह जानकारी मुझे नहीं हैं परन्तु वायुमण्डल का पृथ्वी पर बने रहना ही इस बात को प्रमाणित करता हैं। पृथ्वी के अंदर के उस रिक्त स्थान में वायु के न होने के कारण, सारा वायुमण्डल पृथ्वी पर लिपटा हुआ हैं और उस रिक्त स्थान में प्रवेश पाने के लिए पृथ्वी पर अपना दबाब बनाये हुए हैं।
यही कारण हैं कि पृथ्वी पर प्रत्येक वस्तु ऊपर से नीचे की ओर आती हैं। यहाँ पर एक बात आपकी जानकारी में और लाना चाहूँगा की आप ग्लोब को देखे। उस पर गौर करें। अधिकांश भू भाग ग्लोब के बीच में स्थित हैं। चाइना रूस कनाडा ग्रीनलैंड के कुछ हिस्से ऊपर की ओर व आस्ट्रेलिया, अफ्रीका व दक्षिणी अमेरिका के भूभाग नीचे की ओर स्थित हैं। हम जहाँ भी हैं, वहाँ अपने आप को सीधा महसूस करते हैं। हमारा मकान भी सीधा लगता हैं। मकान का सामान भी यथा स्थान रखा नजर आता हैं, परन्तु क्या वास्तव में यह सही हैं? हमारे ठीक नीचे अमेरिका स्थित हैं। यदि भारत से हम पृथ्वी के आर पार छेद कर दें, तो वो छेद अमेरिका के किसी इलाके में ही निकलेगा। यह अभी सम्भव नहीं हैं, तो दूसरा उपाय यह हैं कि आप जिस ग्लोब को देख रहे हैं, उसी में स्थित भारत के नक्शे में सीधे रूप से एक सुई को, ग्लोब के आरपार निकाल दें। आप देखें कि सुई का दूसरा हिस्सा कहाँ पर निकला हैं?
हमारी पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा उत्तरी ध्रुव को माना जाता हैं क्योंकि सूर्य हमारे ऊपर स्थित हैं। सूर्य पूर्व से पश्चिम की और हमें यात्रा करता दिखाई देता हैं, जबकि यात्रा तो अपनी धुरी पर हमारी पृथ्वी कर रही हैं। उस ग्लोब में स्थित हमारे देश के नक्शे में एक आदमी खड़ा करें। इसके लिए आदमी की जरूरत नहीं हैं बल्कि शतरंज के खेल का एक सिपाही खड़ा करें। ऐसा भी सम्भव न हों तो उसे वहाँ चिपका दें। अब देखें कि वो किस अवस्था में हैं। हम और हमारे मकान व सामान सभी इसी अवस्था में हैं। हमें यह आभास कभी नहीं होता हैं कि हमारी वास्तविक स्थिति क्या हैं? हमें तो मात्र यह आभास होता हैं कि हम इस धरा पर टिके हुए हैं। सारे चराचर जगत को यही आभास होता हैं, परन्तु क्या यह सच हैं?
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा