‘न्यूटन’ का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं ? – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-13)
‘न्यूटन’ का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं ? – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-13)
दैनिक जीवन में ऐसी बहुत सी बातें हमारे सामने आती रहती हैं जिस पर आम आदमी कभी भी ध्यान नहीं देता हैं, लेकिन विज्ञान से यह उम्मीद नहीं की जा सकती हैं। विज्ञान के समक्ष कई प्रमाण मौजूद हैं, जिससे स्पष्ट हो सकता हैं कि वास्तव में न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धांत गलत हैं।
आप यदि पिछली दो कड़ियों में अंकित बिंदुओं पर चिंतन मनन करेंगें, तो आपको भी गुरूत्त्वाकर्षण के सिद्धांत के मिथ्यापन का भान होने लगेगा। शायद विज्ञान को भी इसके मिथ्यापन का भान हैं, परन्तु वर्षों से बताई व सिखाई जा रही अपनी ही बात को, विज्ञान सिरे से ख़ारिज नहीं कर पा रहा हैं, बल्कि अन्य बातों जैसे पानी का उत्प्लावन बल, वायु दाब आदि को साथ लेकर अभी भी गुरुत्त्वाकर्षण के सिद्धांत को जिन्दा रखे हुए हैं।
यह बात विज्ञान भी मानता हैं कि पूरी पृथ्वी पर गुरुत्त्व बल समान नहीं हैं। हमारे इस ग्रह के दोनों ध्रुवों (दक्षिण व उत्तरी) पर गुरुत्त्व बल सबसे ज्यादा रहता है। विषवत् रेखा पर गुरुत्त्व बल अपेक्षाकृत कम रहता हैं। जब गुरुत्त्व बल केंद्र की ओर कार्य करता हैं, तो यह अंतर क्यों आ रहा हैं, जबकि हमारे ग्रह के अंडाकार आकार को देखते हुए ध्रुवों पर गुरुत्त्व बल कम होना चाहिए, क्योंकि वहाँ से केंद्र की दूरी अन्य जगहों से ज्यादा ही रहती हैं।
हमारे सारे महासागर दक्षिण यानि नीचे की ओर स्थित है। विशाल जलराशि इनमे समाहित हैं जो नीचे की ओर खुले अंतरिक्ष में नहीं गिरती है। पानी के अंदर पड़ी किसी भारी वस्तु को हम बाहर निकालना शुरू करें तो वस्तु जब तक पानी के अंदर ही रहती हैं, तब तक हमें उसे खींचने में कोई विशेष जोर नहीं लगाना पड़ता हैं। इससे एक बात तो प्रमाणित हो ही रही हैं कि पानी के अंदर पड़ी उस वस्तु पर गुरुत्त्व बल काम नहीं कर रहा हैं अथवा बहुत ही कम काम कर रहा हैं, फिर महासागरों का पानी किस कारण या बल से हमारी पृथ्वी पर रुका हुआ हैं? निश्चित ही इसके पीछे कोई अन्य कारण है, जो हमारी इस चर्चा में आगे स्पष्ट हो जायेगा।
हम यदि अपना वजन भूतल पर करते हैं, किसी कमरे में करते है या सौं वी मंजिल की छत पर जाकर करते हैं, तो भी कोई अंतर नहीं आएगा, जबकि गुरुत्त्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार भूतल पर वजन अपेक्षाकृत ज्यादा आना चाहिए, क्योंकि हम भूतल पर केंद्र के ज्यादा नजदीक होते हैं। सौं वी मंजिल पर हम अपेक्षाकृत केंद्र से काफी दूर हो जाते हैं। इससे भी इस सिद्धांत की प्रमाणिकता पर सन्देह होने लगता हैं।
हम रोज ही पैदल चलते हैं। समतल जगह पर आसानी से चलते हैं परन्तु चढ़ाई पर जोर लगने लगता हैं, जबकि चढ़ाई के साथ-साथ हमारी केंद्र से दूरी बढ़ने लगती हैं। कई लोग कह सकते हैं कि चढ़ाई में हमारे घुटने ज्यादा मुड़ते हैं जिससे हमें ज्यादा जोर लगाना पड़ता हैं जबकि समतल पर चलने से हमारे घुटनो पर जोर नहीं पड़ता हैं। इसी कारण मैंने अगले बिंदु में साईकिल चलाने का उदाहरण दिया, जिसमें हमारे घुटने समतल याँ चढ़ाई में समान रूप से कार्य करते हैं।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा