आज की दिवाली का मतलब ………………..
त्यौहारों पर हालाँकि सकारात्मक बातें करनी चाहिए, किन्तु कभी-कभी ऐसे कटु अनुभव हो जाते हैं कि परदे के पीछे आपकी आँखें चली ही जाती हैं. सोशियन साईडस पर हालाँकि ऐसी कई तस्वीरें आपको दिख जाएगी, किन्तु एक तस्वीर की चर्चा विशेष तौर पर करना चाहूंगा. इसमें दीपावली पर मिले बोनस की चर्चा करते हुए एक महानुभाव महोदय ने फेसबुक पर विवरण दिया कि कई हजार कैश, कई सोने के पैंडल और… और कई दारू की बोतलें… !! बाद में उन्हें दिवाली भी याद आ गयी और उन्होंने ‘हैप्पी दिवाली’ भी विश भी लिखी.
इस मुद्दे पर मेरी रुचि बढ़ी तो दिवाली के पहले, तीन-चार दिन मैंने अपनी रिसर्च बढ़ा दी. मेरे तीन-चार जानकार और अच्छी कंपनियों में अच्छी पोस्ट पर कार्य करने वाले परिचित इन दिनों बड़े खींचे-खींचे नज़र आये तो मैंने उन्हें टटोलना शुरू किया. पता चला कि उन्हें मन-माफिक ‘उपहार’ नहीं मिले थे. कुछ सरकारी विभागों का जायजा लेने की कोशिश की तो समझ गया कि एक मोदी नहीं, बल्कि ‘सैकड़ों मोदी’ इन विभागों का भ्रष्टाचार दूर नहीं कर सकते! दिवाली के इस मौके पर सोने, चांदी के सिक्कों सहित तमाम महंगे उपहार लिए ‘दलाल’ हर जगह घूम रहे हैं… हर सरकारी विभाग और उसमें 99 फीसदी लोगों की यही दास्तान है…. !! नाम है दिवाली उपहार का, लेकिन अफसरों को गले तक ख़ुशी धकेली जा रही है, ताकि कार्यों की रफ़्तार बढ़े, गलत कार्यों की रूकावटें दूर हों.. !! मुझे भी जब मेरे कई क्लायन्टों ने उपहार देना चाहा तो मैंने विनम्रता से इंकार कर दिया. उनमें से कई तो यह कहते हुए नाराज हो गए कि मैं ‘लक्ष्मी’ का अपमान कर रहा हूँ! खैर, उनकी बात अपनी जगह है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि बदलते समय में त्यौहारों का बाहरी स्वरूप भी बदलता ही रहता है, लेकिन अगर त्यौहार अपने मकसद से ही भटक जाएँ तो फिर चिंतन, चिंता में बदल ही जाता है. आप किसी भी बाजार में चले जाएँ, दुकान, शॉपिंग माल इत्यादि जगहों की चकाचौंध आपको सोचने को मजबूर कर देगी कि क्या यह वही देश है, जहाँ आज भी 20 करोड़ से ज्यादा जनता भूखी सोने को मजबूर है.
एक और अनुभव आपसे साझा करना चाहूंगा, जब तमाम कोशिशों के बावजूद मन में टीस रह ही गयी. ‘दिया’ बेचने वाला जब मेरे घर के सामने आया तो उसका ‘रेट’ सुनकर मन कचोट गया. मात्र 10 रूपये का 20 ‘दिया’, मेरी पत्नी ने अपनी समझ से 10 रूपये का और दिया ले लिया. मुझे जब उसने बताया तो मैंने कहा कि उससे और ज्यादे का सामान ले लेती, तो उसने कहा कि ‘जीतनी जरूरत थी उतने ले लिए’, सवाल उठता है कि देशी उद्योग का यह क्षेत्र इतना ‘बिचारा’ क्यों? सोचने पर समझ आती है कि यह क्षेत्र समाज के द्वारा इतना अनदेखा किया गया है कि इनमें ‘हीन भावना’ सी आ गयी है.
आइये इस दीपावली पर समाज के इन अँधेरे कोनों को रौशन करने का फैसला करें, क्योंकि आपकी जलाई गयी मेड-इन-चाइनीज मोमबत्तियां (दिया से 20 गुणा ज्यादा कीमत) तो कुछ मिनटों या घंटों में बुझ जाएँगी, लेकिन शिक्षा और गरीबी के लिए आपके द्वारा शुरू किया गया एक छोटा प्रयास और कुछ करे न करे, किन्तु उन लोगों को धीरे-धीरे अपनी क्षमताओं का अहसास ज़रूर करा सकता है. निश्चित रूप से किसी व्यक्ति का विकास उसके खुद के प्रयासों से ही हो सकता है, किन्तु आपके प्रयासों से उसे ऐसा करने की प्रेरणा जरूर मिल सकती है, वह नींद से जरूर जाग सकता है! कुछ और नयी पुरानी बातों का ज़िक्र जरूरी हो जाता है, जिसमें जुए और नशाखोरी से दूरी प्रमुखता से शामिल हैं. अगर इन छोटी बातों को ध्यान दें तो आज के समय भी दिवाली की असल अहमियत को हम बनाये रख सकेंगे! कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है और ठण्ड का मौसम भी इसी समय से शुरू होता है. गाँव तो गाँव, शहरों में हर साल ठण्ड से लोगों के मरने की खबर पढ़ने को जरूर मिल जाती होगी. तो क्या उनके लिए कुछ ‘कम्बल’ वितरित करने की मानसिकता हम विकसित कर सकते हैं, जो हमारी प्रत्येक दिवाली का एक अहम उद्देश्य बन सकता है.
अगर हम इन अमृत-घड़ों से कुछ बूंदों को आत्मसात करने का साहस कर लें तो हमारी दीपावली आधुनिक समय में अपने पूर्ण स्वरुप में सार्थक होगी. याद रखिये, समय बदला है, सन्देश नहीं और दीपावली का एक ही सन्देश है ‘प्रकाश को फैलाना’! अब यह हमारी बुद्धि पर है कि अंधकार हमारे मन में, पड़ोस में, परिवार में, समाज में कहाँ-कहाँ है … और हमारी सामर्थ्य कहाँ-कहाँ दीप जला सकती है. ‘शुभ दीपावली’!
नरेश मालवीय जर्नलिस्ट
नरेश मालवीय | Naresh Malviya | सुमेरपुर | sumerpur | राजस्थान | Rajasthan.