न्यायाधीश द्वारा कोर्ट में रोज ही झूठ का सहारा लिया जाये, तो न्याय केसा होगा ?
न्यायाधीश द्वारा कोर्ट में रोज ही झूठ का सहारा लिया जाये, तो न्याय केसा होगा ?
स्वाधीनता दिवस पर न्यूज़ क्लब के पाठको सहित सभी देशवासियों को बहुत-बहुत शुभ-कामनाये !!
आज का दिन, 15 अगस्त (15 August) यानिकी स्वाधीनता दिवस (Independence Day) को मैंने विशेष रूप से चुना है ताकि स्वाधीन भारत (Independent India) के एक आजाद स्तम्भ ‘न्यायपालिका’ (Judiciary) की तरफ भी आजाद भारत के आजाद नागरिको का ध्यान दिलाये जाए कि किस तरह से कुछ् कोर्ट (Courts) / न्यायाधीश (Judges) भारत की जनता (Public Of India) को न्याय (Justice) देते होंगे तथा देंगे.
मुझे इस बात का भी अहसास है कि मेरे इस लेख के प्रकाशन के बाद शायद मेरा वकील (Advocate) भी मेरा साथ छोड़ दे या / तथा मुझे भी कोर्ट / न्यायाधीश के कोपभाजन (Annoyance Court) का भी शिकार होना पड़े और मै न्याय के लिए तरसता ही रहू, लेकिन किसी को तो इस आजाद भारत में आजादी से आम जन की बात कहनी पड़ेगी, अत: मेने स्वयं ने बीड़ा उठाया है कि मै देश की ताकतवर न्यायापालिका (Powerful Judiciary) में कुछ चल रही / प्रचलित तोर-तरीको की कुछ सच्चाइया इस आजाद देश के सामने रखू ताकि सभी पाठक स्वयं निर्णय कर सके कि न्यायपालिका स्वयं कितनी आजाद है और कोर्ट की शरण में आया न्याय-भिक्षुक कितना आजाद है.
पिछले लगभग दो साल से भी ज्यादा समय में तीन प्राइवेट परिवादो (Private Complaints) के केस में, मुझे दो कोर्ट (जिनका नाम मै जानबूझकर शिष्टाचारवश नहीं लिख रहा हूँ) के 5 मजिस्ट्रेट (Magistrates) के सामने न्याय पाने के लिए बीसियों बार उपस्थित होने का सौभाग्य मिला. इत्फाक से तीनो मामलों में मुख्य आरोपीगण, क्षेत्र के ही बल्कि भारत देश के कुछ पावरफुल लोग (Some Powerful Persons of India) है.
हकीकत में, मै स्वयं तो भुक्त भोगी (Sufferer) हूँ लेकिन मेरे जेसे कोर्ट में आने वाले और भी कई परिवादी या आरोपी सभी के साथ भी कुछ वेसा ही होता रहा है. मै कुछ प्रचलित तोर-तरीको का जिक्र नीचे कर रहा हूँ, जिन्हें मै कानूनन गलत या झूठा मानता हूँ लेकिन हो सकता है, इनके पीछे कोर्ट / न्यायाधीश की कोई औचित्यपूर्ण मजबूरी या कारण भी हो –
- केस फाइल की खाली आर्डर-शीट(Singnature on Blank Order-sheet) पर हस्ताक्षर लेना : मेने पिछले दो वर्ष से भी ज्यादा समय में दो कोर्ट में बीसियों उपस्थिति के दोरान सभी पांचो मजिस्ट्रेट की कोर्ट में मुझ से हमेशा ही खाली आर्डर-शीट पर ही हस्ताक्षर करवाए गए. जेसा कि मेने देखा, मुझ से ही नहीं बल्कि प्रचलित व्यवहार के अनुसार और भी कई हाजरियो से खाली आर्डर-शीट पर ही हस्ताक्षर करवाए जाते रहे है.
- पेशी स्थगन का गलत या झूठा कारण / आधार लिखना (Write Wrong or False Reason for Adjournment) : संभव है, समय बचाने के लिए या उत्पादकता बढाने के लिए खाली आर्डर-शीट पर ही हस्ताक्षर करवाए जाते है लेकिन खाली आर्डर-शीट पर सुविधा अनुसार बाद में लिख लिया जाता है. मेरे तीनो मामलों में, मेरे द्वारा कभी भी स्थगन (Adjournment) नहीं माँगा गया तथा 90% तक पेशियों में तो मै स्वयं उपस्थित रहा लेकिन आर्डर-शीट पर अधिकांशत: गलत या झूठा लिखा गया कि परिवादी (Complainant) या परिवादी के वकील (Advocate of Complainant) द्वारा समय चाहा या स्थगन माँगा आदि आदि. हकीकत में, हमें हमेशा ही कोर्ट द्वारा आगे की तारीख नोट करवाई जाती और खाली आर्डर-शीट पर हस्ताक्षर ही लिए जाते. इस तरह से आर्डर-शीट पर पेशी स्थगन का गलत या झूठा कारण / आधार लिखा जाता रहा है.
- सुबह से शाम तक इंतज़ार कराने के बाद पेशी स्थगित करना (Adjournment Only After Whole day’s Waiting) : वर्तमान में तो ऐसा नहीं हो रहा है लेकिन पूर्व के एक मजिस्ट्रेट साहब तो लंच से पहले हाजिर होने पर लंच के बाद में सुनवाई के लिए कहते और लंच के बाद स्थगन दे देते. यानिकी सुबह से शाम तक इंतज़ार करवाते और शाम को स्थगन.
- बहस सुन लेने के बावजूद आर्डर-शीट पर इस सच्चाई को नहीं लिखना (Not to Write Truth on Order-sheet) : कुछ दिनों पहले मेरे एक परिवाद में हमने न्यायाधीश महोदय (Honorable Magistrate) से निवेदन किया कि महीनो पहले हमने लिखत बहस (Written Arguments) दे दी थी, अत: हमारी लिखत बहस के आधार पर आदेश फरमावे. उसके बाद लगभग आधे घंटे तक हमारी मोखिक बहस (Oral Arguments) सुनी गयी लेकिन इस सच्चाई को आर्डर-शीट पर नहीं लिखा गया तथा खाली आर्डर-शीट पर हस्ताक्षर लिए गए. लेकिन हमेशा की तरह फिर वही स्थगन की बात आर्डर-शीट पर लिखी गयी.
- कोर्ट के आदेश के बावजूद जांच अधिकारी (Investigation Officer) की कोर्ट में अनुपस्थिति पर कोर्ट द्वारा कोई कार्यवाही नहीं करना : इसी कोर्ट में इसी मामले में एक पूर्व मजिस्ट्रेट साहब के सामने जांच अधिकारी (सम्बंधित थानाधिकारी – Relevant In-charge Of Police Station) द्वारा जांच में शिथिलता का आरोप लगाने पर मजिस्ट्रेट साहब ने जांच अधिकारी (सम्बंधित थानाधिकारी) स्वयं को कोर्ट में उपस्थित होने के आदेश दिया लेकिन जांच अधिकारी (सम्बंधित थानाधिकारी) कोर्ट के आदेश के बावजूद कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए लेकिन कोर्ट द्वारा किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की. शायद इससे प्रोत्साहित होकर जांच अधिकारी ने व्हात्सप्प पर आरोपी को परिवाद भेजा और परिवादी ने लिखित जबाव भेजा और जांच अधिकारी ने लगभग हुबहू लिखित जबाव की नक़ल करके अपनी रिपोर्ट बना कर कोर्ट में पेश कर दी. बहस पर आदेश या पुन: बहस का इन्तजार कर रहा हूँ.