पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग -6)
पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग -6) / भाग – 5 से क्रमश:
प्रथम पायदान पर ‘आकाश तत्व’ को माना गया है जिसका गुण शब्द बताया गया हैं। इसके अतिरिक्त ‘आकाश तत्व’ में अन्य कोई भी गुण विद्यमान नही रहता है। आकाश के बाद दूसरा तत्व ‘वायु’ बताया गया है, जिसका गुण ‘स्पर्श’ बताया गया है। ‘स्पर्श’ वायु का मुख्य गुण है लेकिन ‘आकाश तत्व’ की उपस्थिति से हमे ‘वायु तत्व’ प्राप्त होता है इसलिए’वायु तत्व’ मे ‘आकाश तत्व’ का गुण शब्द भी समाहित रहता है। इस प्रकार वायु तत्व मे शब्द और स्पर्श दोनो गुण पाये जाते है। हमें जो स्पर्श का अनुभव होता हैं यह वायु तत्व की देन है। हमारी त्वचा वायु तत्व से निर्मित है और त्वचा से ही हमे स्पर्श का ज्ञान होता हैं।
‘वायु तत्व’ के बाद ‘तेज तत्व’ की उत्पत्ति को माना गया है जिसका गुण ‘रूप’ कोे बताया गया है जो इस का मुख्य गुण है, लेकिन तेज तत्व की उत्पत्ति आकाश व वायु तत्वो के सम्मिश्रण से हुई इसलिये ‘तेज तत्व’ में उपरोक्त दोनो तत्वो के गुण ‘शब्द और स्पर्श’ भी समाहित रहते है। इस प्रकार ‘तेज तत्व’ में शब्द, स्पर्श व रूप, इन तीनो गुणों की उपस्थिति मिलेगी। तेज तत्व के गुण रूप से मतलब यहाँ सौंदर्य ना समझे बल्कि रूप का पहला अर्थ यहाँ दृश्य से है। हमें जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो तेज तत्व का गुण है। तेज तत्व की उपस्थिति के बिना यह संसार हमें दृष्टिगोचर नहीं हो सकता हैं। यहाॅ ‘रूप’ शब्द का दूसरा अर्थ आकार भी इसमे समाहित है। वस्तुतः हमे वो ही चीज दिखाई देती है जिसका कोई आकार होता हो। बिना आकार की कोई भी वस्तु हमे वैसे भी दृष्टिगोचर नहीं हो सकती है। इस प्रकार ‘रूप’ शब्द के दोनो अर्थ दृश्य व आकार एक ही भावार्थ लिए हुए है।
हमारे विज्ञान ने ‘तेज तत्व’ को केवल उर्जा के नाम से ही परिभाषित किया है। विज्ञान अब उर्जा को, पदार्थ की चौथी अवस्था के रूप में स्वीकार करने लगा है परन्तु तेज व उर्जा शब्द के अर्थ में बहुत भिन्नता है। उर्जा शब्द केवल शक्ति ( power/energy ) की ओर इशारा करता हैं जबकि’ तेज शब्द’, शक्ति के अलावा गति, तीव्रता, चमक, प्रकाश, श्रेष्ठता, तपन, ओज, कान्ति आदि के अर्थ को भी अपने मे समेटे हुए है। ‘तेज’ शब्द इन सभी अर्थो की ओर भी इशारा करता हैं इसीलिए पूर्व में यह बात स्पष्ट कर दी गई थी कि ‘तेज तत्व’ को कई लोग मात्र सूर्य या अग्नि कह देते है, वो कतई उचित नही है। इस तत्व को ‘तेज’ नाम से ही बोला जाना चाहिए। अभी हमारा विज्ञान ‘तेज तत्व’ को पूर्णतया नहीं समझ पाया है।
विज्ञान ने पदार्थ का चौथा रूप तो स्वीकार कर लिया पर उसे ‘उर्जा’ नाम देकर उसको संकुचित अर्थ मे ही लिया है। ऐसा कर उसने ‘तेज तत्व’ के बारे मे अपनी अज्ञानता को ही दर्शाया है। विज्ञान अभी भी तेज तत्व को पूरा नही समझ पाया है। तेज तत्व को पूर्णतया समझना है तो इस में वो सारे शब्दार्थ समाहित करने होंगे जो उपर दर्शाये गए है, तब जाकर विज्ञान पदार्थ की इस तीसरी अवस्था को पूर्णतया समझ पायेगा।
इस के आगे की चर्चा करने से पहले एक तथ्य स्पष्ट करना चाहूँगा कि ‘आकाश तत्व’ के कारण ही ‘वायु तत्व’ की उत्पत्ति हुई तथा आकाश व वायु तत्वो के सम्मिश्रण से तेज तत्व की उत्पत्ति हुई। इस बात को रोजमर्रा की कई बातो से ही समझा जा सकता हैं।
- जब आसमान मे कोई तारा गिरता हुआ दिखाई देता है तो उसके पीछे एक लम्बी चमकती रेखा बनने लगती है। यह रेखा क्यों बनती है?
- पहले जब विज्ञान आज के रूप में नही था तब भी आदमी अग्नि उत्पन्न करता था, लेकिन कैसे?
- पुरातन समय मे यज्ञ अनुष्ठान किये जाते थे तो उसमे अग्नि कैसे प्रज्ज्वलित की जाती थी?
इन सभी मे आकाश व वायु तत्वो का सम्मिश्रण ही कारक है। विज्ञान इस धरा पर आक्सीजन व सुर्य पर हाइड्रोजन को अग्नि का मुख्य स्रोत मानता है तो यह दोनो गैसे वायु तत्व का ही हिस्सा है। इस से यह तो सिद्ध हो रहा है कि आकाश व वायु तत्वो के संयोग से ही तेज तत्व की उत्पत्ति हुई।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा