क्या अब झूठे चुनावी घोषणा पत्र के लिए फोजदारी केस दर्ज किया जा सकेगा है ?
क्या अब झूठे चुनावी घोषणा पत्र के लिए फोजदारी केस दर्ज किया जा सकेगा है ?
शनिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने शनिवार को कहा था कि चुनावी वादे आम तोर पर पूरे नहीं किये जाते है और चुनावी घोषणा पत्र सिर्फ कागज़ का एक टुकड़ा बन कर रह जाता है. जिसके लिए राजनीतिक दलो को जबावदेह बनाया जाना चाहिए. लेकिन राजनीतिक दलो को जबावदेह बनाएगा कौन ? कोई भी राजनीतिक दल इस मामले में जबावदेही से बचने का ही प्रयास करेगा.
पता नहीं कभी भी ऐसा क़ानून हिन्दुस्तान में बन पायेगा ? लेकिन अब तय है कि आने वाले कुछ वर्षो में कोई भी मतदाता राजनीतिक पार्टी तथा / अथवा चुनावी प्रत्याशी को न केवल जबावदार ठहरा पायेगा बल्कि उनके खिलाफ फोजदारी मुकदमा भी कर सकेगा. क्योकि वादा खिलाफी से सीधे तोर पर धोखाधड़ी का मामला बनता है.
क्या चुनावी वादा खिलाफी सिर्फ मिथ्या कथन है या धोखाधड़ी : चुनाव के दोरान चुनावी प्रत्यासियो द्वारा मिथ्या कथन (झूठ) बोलना भारतीय दंड संहिता की धारा 171G के तहत दंडनीय अपराध है लेकिन दण्ड के रूप में मात्र आर्थिक दण्ड होने से चुनाव में मिथ्या कथन (झूठ) बोलना एक नगण्य / नाम मात्र का अपराध है. अन्यथा भी मिथ्या कथन (झूठ) बोलना व झूठा चुनावी वादा करना अलग-अलग तरह के क्रिमिनल कृत्य है. अत: झूठा चुनावी वादा करना मिथ्या कथन की श्रेणी में नहीं आने से इसे धोखाधड़ी नहीं कहा जा सकता है. लेकिन झूठा चुनावी वादा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 415 के तहत स्पष्टत: खुली धोखाधड़ी है जिसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 417 में एक वर्ष तक की सजा व आर्थिक दण्ड का प्रावधान है.
झूठा चुनावी वादा करने या झूठा चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के लिए मुकदमे क्यों नहीं कर पाते है : धोखाधड़ी के लिए सफलतापूर्वक मुकदमा करने के लिए किसी भी मतदाता को कम से कम दो शर्ते पूरी करनी होती है –
- शिकायतकर्ता मतदाता के पास झूठा चुनावी वादा करने या झूठा चुनावी घोषणा पत्र जारी करने का पर्याप्त साक्ष्य / सबूत होने चाहिए जो कि आराम से संभव भी है.
- झूठे चुनावी वादे या झूठे चुनावी घोषणा पत्र से उत्प्रेरित होकर शिकायतकर्ता-मतदाता ने उस पार्टी / उम्मीदवार को वोट दिया हो तथा उसके पास ऐसे दिए गए वोट का प्रमाण / साक्ष्य होना चाहिए (जो कि अभी तक संभव ही नहीं है).
क्या अब झूठे चुनावी वादा करने या झूठे चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के लिए मुकदमा दर्ज किया जा सकता है : नहीं, अब भी ऐसा संभव नहीं हो सकेगा क्योकि अब नई ‘वी वी पेट मशीन’ के बावजूद मतदाता ‘ वीवी पेट मशीन’ से जनित स्लिप अपने साथ नहीं ले जा सकेगा. परिणाम स्वरुप मतदाता के पास इस तथ्य का कोई साक्ष्य नहीं हो सकता कि उसने किस को वोट दिया है. यह स्लिप मात्र 7 सेकंड के लिए मतदाता को दिख सकेगी. इस मशीन का उपयोग कल हुए धोलपुर (राजस्थान) सहित कई उप-चुनावों में किया गया है.
क्या आर.टी.आई से कोई रास्ता मिलता है : हां, अब रास्ता बचता है सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का. मेरी मान्यता है व मेरा विश्वास है कि ‘वीवी पेट मशीन’ से जनित स्लिप की प्रति आर.टी.आई के माध्यम से ली जा सकेगी. यानिकी आर.टी.आई क़ानून अथवा अन्य किसी कानूनी माध्यम से यदि मतदाता अपने दिए गए वोट का साक्ष्य लेने में सफल हो जाए तो वह झूठा चुनावी वादा करने या झूठा चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के लिए ऐसे झूठे उम्मीदवार / पार्टी के विरूद्ध फोजदारी मुकदमा दर्ज कर सकता है .
- CA. K.C.Moondra / Kailash Chandra B.Com, LL.B. FCA.