आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-50)
आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं या विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-50)
द्वापर काल में ऋषि किंदम के द्वारा राजा पाण्डु को श्राप दे दिया गया, जिससे राजा पाण्डु सन्तान उत्पत्ति में अक्षम हो गए। उल्लेख हैं कि ऋषि किंदम ने अपनी पत्नी की सन्तान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने हेतु, मृग का रूप धारण कर लिया व अपनी पत्नी को मृगिणी का रूप दे दिया। दोनों अपने इस नये रूप में रति क्रीड़ा कर रहे थे, तभी शिकार पर आये राजा पाण्डु ने उन पर, जानवर समझते हुए तीर से निशाना साधा। तीर से घायल होते ही मृग रूप धारण किये ऋषि दम्पति पुनः मानव रूप में आ गए। मरणासन्न स्थिति में पहुंचे ऋषि किंदम ने राजा पाण्डु को यह श्राप दिया कि, वो भी यदि अपनी पत्नी के पास रति का विचार लेकर जायेगा, तो उसकी मृत्यु हो जायेगी। इस कथानक से यह पत्ता चलता हैं कि, उस समय मानव के पास देह परिवर्तन जैसी अद्भुत क्षमता थी।
महाभारत युद्ध में कई योद्धाओं के पास देवताओं से प्राप्त असीमित शक्तियाँ थी। जिन्हें समाप्त करने हेतु स्वयं भगवान श्री कृष्ण को अर्जुन का सारथि बनकर युद्ध क्षेत्र में उपस्थित रहना पड़ा था। यह सभी को मालूम हैं कि हर योद्धा की मृत्यु के पीछे मूल योजना भगवान श्री कृष्ण की ही काम कर रही थी। कर्ण, अर्जुन, भीम, भीष्म पितामह, दुर्योधन, अश्वथामा, द्रोणाचार्य, घटोत्कच, अभिमन्यु, बबरीक आदि अनेकों वीर, अदम्य साहस व अपार शक्तियों के स्वामी थे। आज की तरह सारे अस्त्र शस्त्र साथ में रखने की जरूरत नहीं थी, बल्कि मन्त्र शक्ति से उन्हें युद्ध के मैदान में ही प्रकट कर लिया जाता था। जिन्हें आज हम अणु बम हाइड्रोजन बम आदि कहते है, उससे भी हजारों लाखो गुणा ज्यादा विनाशकारी आयुध उस समय थे, लेकिन वो सभी प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले नहीं थे। उनसे भयंकर विनाश किया जा सकता था, लेकिन साइड इफेक्ट नहीं था, क्योंकि सारे आयुध प्राकृतिक सिद्धान्तों पर ही बनाये हुए थे, जिन्हें सम्बंधित देवताओं से ही प्राप्त किया जाता था।
महाभारत के युद्ध में ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र, नागपाश, वास्विशक्ति, वरुणास्त्र, गरुड़ास्त्र, सूर्यास्त्र, वज्रास्त्र, नारायणास्त्र, सुदर्शन चक्र, पशुपतास्त्र आदि नाम वाले अनेकों घातक हथियारों का प्रयोग हुआ था, जिन्हें धनुष की प्रत्यञ्चा पर चढ़ाने मात्र से हाहाकार मच जाता था। युद्ध के अंत समय में द्रोण पुत्र अश्वथामा द्वारा हताशा और बदले की भावना से ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया गया था, जिससे कुपित होकर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया, लेकिन भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने अपने इस विनाशकारी अस्त्र को तुरन्त नियन्त्रित कर लिया।
क्या आज यह सम्भव हैं? अभी तक तो नहीं हैं। एक बटन दबते ही, चाहे गलती से ही दब जाय, पूरा संसार आणविक युद्ध की आग में धधकने लग जायेगा। किसी हथियार को लक्ष्य की तरफ छोड़ देने के बाद, उसे वापस रोकने याँ नियन्त्रित करने का हमारे पास कोई उपाय नहीं हैं। ऐसा पहले नहीं था। आज के हथियारों में जो तकनीक काम में ली जा रही हैं, उनका विनाशकारी असर कई दशको तक रहता हैं, और पूरी प्रकृति को उसका नुकसान उठाना पड़ता हैं, जबकि प्राचीन समय के हथियारों से लक्ष्य को ही नुकसान पहुँचता था। प्रकृति की अन्य चीजों को इनसे कोई नुकसान नहीं होता था।
जिस तरह आज हम प्राकृतिक कारणों जैसे- बाढ़, दावानल, चक्रवात, भूकम्प, ज्वालामुखी, तूफान, सुखा, भुश्रंखलन, सुनामी, आकाशीय बिजली, तेज गर्मी याँ सर्दी आदि से पीड़ित होकर नुकसान उठाते हैं, ठीक इसी तरह से प्राचीन हथियारों की शक्तियाँ कार्य करती थी। उनके प्रयोगो से होने वाला नुकसान, आज के हथियारों से कई गुणा ज्यादा था, परन्तु यह विनाश ठीक उसी तरह का था, जिस तरह का आज हम, प्राकृतिक प्रकोप के रूप में कई बार देखते हैं। प्रकृति के शांत होते ही विनाश के बादल छंट जाते हैं, और मानव पुनः उन्हें ठीक करने मे लग जाता हैं, परन्तु आज के हथियारों से होने वाला विनाश अजन्मी पीढ़ियों तक के लिए अभिशाप के रूप में उपस्थित रहता हैं। वैसे भी विज्ञान का कोई भी अविष्कार ऐसा नहीं हैं, जिसमें कोई साइड इफेक्ट ना हों।
प्राचीन समय की जीवनशैली, वास्तुकला, चिकित्सा पद्धति, शिक्षा, साधन, ज्ञान-विज्ञान, युद्ध व हथियार आदि की चर्चा इस लेख माला में इसलिए की गई, जिससे हम पुरातन व वर्तमान जीवन व उसके विकास का तुलनात्मक अध्ययन कर सकें।
शेष अगली कड़ी में—-
लेखक : शिव रतन मुंदड़ा