लातो के भूत (पाकिस्तान) बातों से नहीं मानते
‘लातो के भूत बातों से नहीं मानते’ , एक बहुत पुरानी लेकिन सटीक कहावत है जो पाकिस्तान (Pakistan) पर एकदम फिट बैठती है लेकिन पता नहीं हमारी सरकार कब तक सिर्फ बातों से ही काम चलायेगी.
यह तो माना जाना चाहिए कि सत्ता की जवाबदारी संभालने बाद देश के प्रतिनिधियों को दाए-बाये कई बातों व मजबूरियों के बारे में सोचना पड़ता है . यह भी सत्य है झगड़े में दोनों पक्षों का नुकसान होता है लेकिन नुक्सान सहन करने की कही तो सीमा आनी चाहिए. नुकसान के डर से हम कब तक कायर बने रहेंगे. पहले ही काफी देरी हो चुकी है और अब तो समय आ गया है पाकिस्तान रूपी भूत को बातो से नहीं लातो से समझाना पडेगा. कारगिल के समय में भी , हमारी देरी की वजह से हमने बहुत नुकसान उठाया फिर भी हम कारगिल जीत की बात दोहराकर मंत्रमुग्ध हो रहे है.
समय आ गया है, अब ईट का जवाब पत्थर से देना होगा. जो बात देश की आम जनता समझ रही है, उसका अहसास देश के कर्णधारों को भी होगा, अत: अब और समय ख़राब कर देश को बहुत बड़ा नुकसान ही हासिल होगा और उसके लिए भावी पीढ़िय कभी माफ़ नहीं करेगी. हाफीज सईद को छोड़ने की गलती आज दिन तक भुगत रहे है. मात्र बलुचिस्तान राग को चेनलो पर दोहराकर पीठ धपधपाने से कुछ भी हासिल तब तक नहीं होगा जब तक उसके लिए यानिकी पाकिस्तान के विरुध्द कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जायेगी. वर्तमान में तो हम से हमारा घर ही नहीं संभल रहा है, हम क्या बलूचिस्तान की मदद करेंगे? सरकार तो अभी भी ताजा ऊरी (Uri Terrorist Attack by Pakistan) हमले को भी आतंकी घटना बता कर पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाने से बचने का प्रयास कर रही है जो कि कूटनीति के नाम पर हमारी बहुत बड़ी गलती है. अत: माननीय प्रधान मंत्री जी यदि सिर्फ बातों से ही काम लेंगे तो फिर एक और गलती करेंगे.