आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-47)
आधुनिक विज्ञान से विकास हो रहा हैं याँ विनाश- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-47)
आध्यात्म ज्ञान के अनुसार सूक्ष्म शरीर के अंदर एक और तीसरा शरीर हैं, जिसे कारण शरीर कहा गया हैं। यह बीज रूप कारण शरीर भी अन्तःकरण में ही अवस्थित रहता हैं। इसके बाद आत्म तत्त्व यानि आत्मा का स्थान होता हैं, जो मूल रूप से हम होते हैं।
यह आत्म तत्त्व सभी जीवों में समान ही होता हैं। इसमें कोई अंतर नहीं होता हैं। अंतर सब बाहरी हैं। शरीर के रंग व आकार प्रकार का होता हैं। चूँकि आत्म तत्त्व सबमें एक ही हैं, इस लिए उसका नाम भी एक ही हैं। वह नाम हैं- मैं। दुनियां का हर व्यक्ति स्वयं को, मैं नाम से ही पुकारता हैं। जिस प्रकार एक छोटे से बीज को उपयुक्त वातावरण मिलता हैं, तो वह इसी आत्म तत्त्व का, जो सर्वत्र व्याप्त हैं, का सहारा पाकर अंकुरित हो जाता हैं, और धीरे धीरे विशाल बरगद का पेड़ बन जाता हैं, वैसी ही जीवन प्रक्रिया हमारी हैं। जिस बीज के अंकुरित होने से विशाल बरगद का पेड़ बना, उस बीज को आप कहाँ तलाश करेंगें?
क्या वो बीज आपको मिल जायेगा? नहीं मिलेगा। वह भी उस की विशालता में समा गया। उस बीज का अस्तित्त्व था। उसी से यह विशाल बरगद बना, पर वह बीज अब दिखाई नहीं दे रहा हैं। ठीक यही बात हमारे जीवन के साथ हैं। कारण शरीर का विलय सूक्ष्म शरीर में हो जाता हैं। यह प्रक्रिया आत्म तत्त्व के कारण याँ उसके सहयोग से सम्पादित होती हैं। इस प्रकार आत्म तत्त्व की भी इन दोनों में उपस्थिति अनिवार्य रूप से होती हैं। इसके बिना चेतना याँ सजीवता सम्भव नहीं। बीज में अंकुर फूटना, याँ मानव का गर्भ में आना, दोनों बातें आत्मा की उपस्थिति को दर्शाते हैं। इसके बाद हमारा स्थूल शरीर बनता हैं। यह बाहरी शरीर, जो दिखाई दे रहा हैं, यह स्थूल शरीर हैं।
संक्षेप में पुनः दोहराता हूँ- हमारा बाहरी दृश्यगत यह स्थूल शरीर यानि देह हमारा घर हैं, न कि हम हैं। इसके अंदर जीव रूप सूक्ष्म शरीर हैं, जिसे हम अन्तःकरण कहते हैं। इसके अंदर बीज रूप कारण शरीर हैं। कारण से ही कार्य की उत्पत्ति होती हैं। हमारे जन्म के पीछे भी कोई न कोई कारण अवश्य होता हैं। इसीलिए इसे कारण शरीर कहा गया हैं। अध्यात्म में कारण शरीर को अज्ञान का नाम दिया गया हैं। हम यह भी कह सकते हैं क़ि अज्ञान से हमारा जन्म होता हैं।
आत्मा पर बने इन तीनो शरीर रूपी आवरणों का भेदन करने के बाद ही हम उस आत्म तत्त्व को यानि स्वयं को पा सकते हैं। स्वयं को पहचान सकते हैं, जान सकते हैं। विज्ञान के पास यह ज्ञान कहाँ? विज्ञान हमारे घर रूपी उस बाहरी शरीर को ही मुख्य मानकर सारे सुख साधन बना रहा हैं, जबकि हमारे पुरातन ज्ञान के अनुसार यह देह रूपी बाहरी स्थूल शरीर तो सदैव मृत ही रहता हैं। यही कारण हैं कि आधुनिक विज्ञान की खोजो से हमें वास्तविक सुख, शांति याँ शुकुन कभी प्राप्त नहीं हुआ।
भगवान श्री राम युवराज थे। राज्य के उत्तराधिकारी थे, परन्तु अपने पिता के वचनों की रक्षा हेतु तुरन्त वन की ओर प्रस्थान कर गए। शरीर तो उस समय भी ऐसा ही था। परन्तु उस समय स्व की पहचान थी। ऐसा भी नहीं था कि पहले विज्ञान नहीं था। आज से भी बढ़कर था। रामायण में ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगें, जिसकी कल्पना तक भी आज का विज्ञान नहीं कर सकता।
हनुमान जी द्वारा सौ योजन लम्बा समुद्र पार करना।
लंका से निकलकर हिमालय पर्वत से द्रोणागिरी पर्वत को साथ लेकर वापस सूर्योदय से पूर्व लंका पहुँच जाना।
संजीवनी बूंटी से लक्ष्मण के प्राण बचाना।
वानर राजा बाली के अंदर सामने वाले की आधी शक्ति का स्वतः आ जाना।
राजा दशरथ द्वारा यज्ञ करके सन्तान प्राप्ति करना।
मारीच द्वारा मृग का रूप धारण करना।
समुद्र के रास्ता न देने पर, श्री राम द्वारा आग्नेय बाण के प्रयोग की धमकी दी जाना।
हनुमानजी के पास अपने शरीर को लघु व विशालकाय कर लेने की कला थी।
शूर्पणखा के पास रंग रूप बदलने की कला थी।
रावण के पास आकाश मार्ग से गमन करने वाले यान थे।
गिद्ध सम्पादी, सूर्य के पास तक पहुंच गया था।
भालू नल व नील में पत्थर को भी पानी में न डूबने देने की कला थी।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना के पूछने पर, मेघनाद की युद्ध में कटकर अलग हो गई भुजा द्वारा खुद को मारने वाले का नाम लिखकर बताया जाना।
श्री राम द्वारा देखने मात्र से युद्ध में घायल व जख्मी हुए योद्धाओं का स्वस्थ हो जाना।
वीर हनुमान द्वारा अपने सीने को चीरकर दिखाना।
राजा दशरथ के पास शब्दभेदी बाण चलाने की कला थी।
रावण ने अपने शरीर में अमृत कुण्ड बना रखा था, जिसके कारण वह लाखों वर्ष जीया।
रावण अपने आराध्य भगवान शंकर को पूजा के बाद अपना मस्तक काट कर चढ़ाता था।
रावण युद्ध में अपने लाखों रूप प्रकट कर लेता था।
उस समय भी आकाशवाणी होती थी।
यह सब उदाहरण उस समय के विज्ञान व उसकी उच्च तकनीक को दर्शाते हैं। क्या आज का विज्ञान इनमें से किसी एक कला को भी ईजाद कर बता सकता हैं?
शेष अगली कड़ी में—-
लेखक : शिव रतन मुंदड़ा