न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-16)
न्यूटन का गुरुत्त्वाकर्षण का सिद्धान्त गलत हैं – भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-16)
विज्ञान का एकमत यह भी हैं कि चन्द्रमा पृथ्वी का हिस्सा हैं, जो टूटकर अलग हो गया। कई लोगो का मत हैं कि प्रशांत महासागर इतना बड़ा व गहरा हैं कि उसमें अपना चाँद पूरा समा जाये। जो चाँद हमें आकाश में चमकता हुआ दिखाई देता हैं, वह हमारी पृथ्वी से नीचे स्थित हैं न की ऊपर। हमारा देश पृथ्वी के जिस हिस्से में स्थित हैं, वो लगभग मध्य का हैं। जब हम सूर्य के संग रहते हैं तो हमें सूर्य भी ऊपर दिखाई देता हैं और जब हम चांद के संग रहते हैं तो हमें चाँद भी ऊपर दिखाई देता हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हैं, जिसका ऊपरी भाग उतरी ध्रुव व नीचे का भाग दक्षिणी ध्रुव हैं, जो घूमते हुए भी अपनी जगह पर स्थित हैं। वहाँ दिन और रात का नजारा हम से भिन्न रहता हैं। अगर यह सही हैं कि चाँद हमसे ही अलग होकर बना हैं, तो उसका गुरुत्त्व बल इतना कम क्यों हैं? यदि विज्ञान घनत्त्व या भार के अनुसार गुरुत्त्व बल की बात करता हैं तो भी गलत सिद्ध होती हैं क्योंकि पृथ्वी के लगभग बराबर व्यास वाले प्लूटो ग्रह में भी हमारे जितना गुरुत्त्व बल नहीं हैं।
अंतरिक्ष में जाने वालों का कद लगभग दो इंच तक बढ़ जाता हैं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य हैं। ऐसा क्यों होता हैं? यह सब बातें न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को झुठलाती प्रतीत होती हैं। जब गर्मी शुरू हो जाती हैं, तब तेज हवाएँ, अंधड़, आँधियाँ आदि चलना शुरू हो जाते हैं। कई जगहों पर हवा के बवंडर बनने लगते हैं। कई बवंडर इतने शक्तिशाली होते हैं कि अपने दायरे में आई गाड़ियों तक को उड़ा ले जाते हैं। जैसे पानी में भँवर बनता हैं, उसी तरह यह हवा का भँवर हैं। फर्क इतना ही हैं कि पानी का भँवर अपनी चपेट में आई हर चीज को नीचे की ओर फेंकता हैं, जबकि हवा का बवंडर अपनी चपेट में आई हर चीज को ऊपर की तरफ ले जाता हैं।
हवा में हमें लट्टू की तरह घूमता हुआ जो बवंडर दिखाई देता हैं, वो नीचे से चौड़ा व ऊपर से संकरा यानि उल्टे कोण की तरह दिखाई देता हैं, वहीं पानी में आने वाला बवंडर, जिसे हम भँवर कहते हैं, वह सीधे कोण के रूप में दिखाई देता हैं। पानी का भँवर ऊपर से चौड़ा व नीचे तलहटी की तरफ संकरा होता चला जाता हैं। पानी के भँवर की चपेट में आई हुई वस्तु तुरंत तलहटी की ओर धकेल दी जाती हैं, वहीं हवा के बवंडर की चपेट में आई हुई कोई वस्तु ऊपर आकाश की ओर उछाल दी जाती हैं। वह वस्तु बवंडर के दायरे से बाहर होने पर ही पुनः नीचे की ओर आएगी।पानी में, जहाँ गुरुत्त्व बल कार्य नहीं करता हैं, वहाँ वस्तु तुरन्त नीचे की ओर जाती हैं जबकि खुली जमीन जहाँ न्यूटन के अनुसार हर चीज ऊपर से नीचे की ओर आएगी, वहाँ बवंडर के दायरे में आई हर चीज नीचे से ऊपर की ओर जाने लगती हैं।
अब आपके समक्ष में उस बात को रखना चाहता हूँ, जिसकी वजह से यह सब कुछ घटित हो रहा हैं। यह सब कुछ गुरुत्त्व बल के कारण नहीं, बल्कि वायु दाब की वजह से घटित हो रहा हैं। वायु दाब की वजह से हर वस्तु ऊपर से नीचे की ओर आती हैं। आप अब तक की चर्चा का पुनः अवलोकन करते हुए, वायु दाब को मूल में रखकर चिंतन करें, तो आपको स्वतः यह भान होने लगेगा कि वास्तव में इन सभी घटनाओं के पीछे ज्यादा सटीक कारक कौनसा बनता हैं?
यह वायु दाब किस तरह से कार्य करता हैं व जो वायु गतिशील होने पर हर वस्तु को ऊपर की तरफ उड़ाती हैं, वो किस तरह से हर वस्तु को ऊपर से नीचे की तरफ धकेलती हैं? इन सब बातों को समझने के लिए हमें अब विज्ञान से हटकर, भारतीय पुरातन ज्ञान की तरफ मुखातिब होना पड़ेगा।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा