पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-10)
पदार्थ की अवस्थाएं तीन नहीं बल्कि पाँच होती हैं- भारतीय पुरातन ज्ञान (भाग-10)
तेज तत्व का अहसास भी स्पर्श से होता है क्योंकि इसमें वायु तत्व का गुण स्पर्श भी समाहित हैं। जब तीव्र गर्मी पड़ती हैं। जब गर्मी में नंगे पांव चलते हैं। जब गर्म चीज को छूते हैं। जब धुप से गर्म हुए पत्थर पर बैठते हैं। इन सभी में अहसास हो जाता हैं परन्तु इसका कारण विज्ञान अग्नि व सूर्य को ही मानता रहा जिससे अलग पदार्थ के रूप में विज्ञान इसकी पहचान नहीं कर पाया। हमें बर्फ को छूने से ठंडक का अहसास होता हैं, यह भी तेज तत्व का ही भाग हैं। अब जाकर इस तेज तत्व को विज्ञान ऊर्जा नाम के पदार्थ के रूप में मानने लगा हैं। ऊर्जा शब्द तेज तत्व की अधूरी व्याख्या करता हैं। तेज तत्व मध्य में स्थित हैं। पदार्थ के रूपांतरण में इस तत्व की विशेष सहभागिता रहती हैं। यह रूपांतरण चाहे विकास की ओर हो, चाहे विनाश की ओर।
पांचवा व अंतिम आकाश तत्व वायु से भी ज्यादा मात्रा में रहता हैं। वायु की अधिकता हमारी पृथ्वी पर अन्य ग्रहों से अपेक्षाकृत ज्यादा हैं परन्तु आकाश तत्व की उपलब्धता तो पुरे ब्रह्माण्ड में हैं। इसका घनत्व नगण्य यानि न के बराबर होने से इसका अहसास भी नहीं होता हैं। स्पर्श से अनुभव करना या देख पाना तो बहुत दूर की बात हैं। चूँकि इस आकाश तत्व की उपस्थिति को हम देख नहीं सकते, छू नहीं सकते, स्पर्श का अहसास भी नही होता, इसलिए हमने उसे अवकाश या खाली जगह का नाम दे दिया, जबकि ऐसा नहीं हैं।
आकाश का अर्थ खाली जगह नहीं हैं। हमें इसका ज्ञान न होने से ऐसा कह देना अज्ञान हैं, लेकिन आप को यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि आकाश तत्व का निर्माण या प्रादुर्भाव इस अज्ञान से ही हुआ हैं। हमारा विज्ञान इस बात को जिस दिन समझ लेगा, उस दिन विज्ञान की यह अंतिम खोज होगी। हमारे पुरातन ज्ञान में इतनी स्पष्ट व्याख्या पहले से ही मौजूद है तो आज का विज्ञान उसे अपना आधार क्यों नही बनाता है?
विज्ञान खोज करता हैं। खोज का अर्थ है ढूँढना। जब हमारी कोई वस्तु गुम हो जाती है तो हम भी उस की खोज करते है। स्पष्ट है कि विज्ञान भी यही कर रहा है ायानिकी जो पहले से यहाँ है उसे ढूँढ रहा है, तो फिर जो पहले से ही बताया हुआ है उसे आधार बनाकर चलने मे क्या परेशानी आ रही है?
विज्ञान का दूसरा कार्य अनुसंधान का है, जिससे वह प्रमाण इकट्ठे करता हैं जबकि हमारा पुरातन ज्ञान तो पहले से ही प्रमाणिक है परन्तु विज्ञान उस प्रमाणिक ता को अब तक इसलिए नहीं समझ पाया है कि विज्ञान की कार्य प्रणाली विपरीत दिशा की ओर चलती है। इसलिए मैंने विज्ञान शब्द को विपरीत ज्ञान की संज्ञा दी हैं।
विज्ञान की यात्रा एक से अनेक की ओर चलती है। वह हर चीज के हर घटक को अलग-अलग कर उसकी व्याख्या करता हैं जबकि ज्ञान की यात्रा अनेक से एक की ओर चलती है। ज्ञान भौतिकता से प्रकृति की ओर चलने की यात्रा हैं। संसार से परम् की ओर जाने की यात्रा हैं। इस यात्रा की मंजिल पर पँहुचते-पँहुचते सारे रहस्य स्वतः खुल जाते हैं। फिर जानने को शेष कुछ नहीं बचता हैं। जिस दिन विज्ञान की यात्रा भी अनेक से एक की ओर शुरू हो जायेगी तब स्वतः ही सारी गुत्थिया अपने आप सुलझती जायेगी। वो दिन मानव सभ्यता का स्वर्णिम दिन होगा।
मैंने अपनी बात बहुत ही संक्षिप्त शब्दो मे आप तक पहुँचायी है। इस सम्बंध मे किसी को कोई शंका हो तो विस्तृत जानकारी हेतु व्यक्तिगत सम्पर्क किया जा सकता हैं। आगे की लेखमाला मे न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत पर चर्चा करेंगे जो मेरी नज़र मे गलत है।
शेष अगली कड़ी में……………… लेखक व शोधकर्ता : शिव रतन मुंदड़ा