होली ज्ञान – संजय उवाच
प्रिय मित्रो,
पर्यावरण संरक्षण एक अलग मुद्दा है
और
भारतीय त्योहारों की संस्कृति एक अलग मुद्दा है
आप दोनो को आपस मे जोड़कर नही देखे।
समग्र द्रष्टिकोण से अगर आप होली ना खेलने के पक्षधर है।
तो मै आपको चैलेंज करता हुँ
कि ऐसा नही है।
हम आपके घर आएं ,
आपको प्रेमपाश मे बांधकर रंगो से सराबोर कर दे,
फिर गुझीया और गरमा गर्म भजिये मांगे तो आप खिलाओगे कि नही ?
दूसरी बात
आप हम सभी अपने-अपने बचपन मे कच्चे-पक्के आंगनो मे खेली होली की धमाल क्या भूल गये होंगे, मै तो मरते दम तक नही भूल पाउंगा।
आईये हम अपना बच्चों को भी वो ही धमाल मस्ती और रंगो की उमंग दे।
जो उन्हे निश्चल प्रेम के रंगो मे सरोबार करे फिर हम शीतल जल की फुहार डाल कर उन्हे आल्हादित करे
और
शेष 364 दिन एक-एक बूंद जल की हमारे त्योहारों की ही तरह सुरक्षित करे संचित करे सहेजे।
होली मनाये, सच्चे मन से
अपनो को रंग दे, प्यार के पल से।
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