क्या इनकम टैक्स में इंस्पेक्टर राज लोट रहा है ?
क्या इनकम टैक्स में इंस्पेक्टर राज लोट रहा है ?
बजट 2017 के प्रावधानों के आधार पर देश के सबसे बड़े हिन्दी देनिक के “अब बिना कारण बताये भी सर्च कर सकेंगे टैक्स अधिकारी” शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की थी. इस खबर में यह भी लिखा था, “ नए प्रावधानों से टैक्स अधिकारी को ऐसे अधिकार मिल जायेंगे जिनका दुरूपयोग हो सकता है . इससे इंस्पेक्टर राज की वापसी हो सकती है “. इस खबर को कई लोगो ने पढ़ा व चिंता जताई कि अब इंस्पेक्टर राज लोट रहा है. व्यापारी जगत इस खबर से काफी चिंतिंत व खोंफ में नजर आ रहा है जबकि ऐसे प्रावधान पहले से है.
लेकिन जिन तथ्यों के आधार पर यह खबर बनाई गयी थी, उन तथ्यों के अनुसार यह खबर पूर्णत: गलत व बनावटी है. हकीकत तो यह है कि आयकर विभाग में 70% से 80% तक इंस्पेक्टर राज समाप्त हो चुका है. वर्तमान लोकप्रिय मोदी सरकार ऑनलाइन सुविधाओं की पैरोकार है, अत: इंस्पेक्टर राज का लोटना इस बजट के सम्बंधित अलोकप्रिय बदलाव से संभव नहीं है.
वास्तविकता यह है कि कुछ वर्त्तमान में प्रचलित व्यवहार को गंभीर क़ानून बनाया गया है जिससे यह अर्थ निकाला गया है. लेकिन ये जो गंभीर अलोकप्रिय परिवर्तन किये गए है, यह वाकई चिंता का विषय है. अत: उन प्रावधानों को समझना जरूरी है. इस बजट से पहले तक व आज भी, यदि किसी की व्यक्ति के यहाँ सर्च (search) करनी होती तो उच्चतर अधिकारियों के पास उपलब्ध किसी सूचना के आधार पर कर चोरी (आय, सम्पति आदि) होने के कारणों का विश्वास होता है तो वो अपने अधीनस्थ अधिकारियो को सर्च के लिए आयकर की धारा 132(1) के तहत अधिकृत करता है. जिसके लिए बाकायदा “कारण (Reasons)” को रिकॉर्ड करना होता है.
इसके बाद कर चोरी से सम्बंधित जिस अन्य स्थान (जो कि औथोराइजेसन में दर्ज नहीं है) के बारे में शंका करने का कारण होता है, उन कारणों को भी आयकर की धारा 132(1A) के तहत रिकॉर्ड किया जाता है. लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में रिकॉर्ड किये गए कारणों को सम्बंधित करदाता को कभी भी नहीं बताया जाता था / है. लेकिन विवाद होने पर आयकर ट्रिब्यूनल व हाई कोर्ट आदि के सामने उन रिकॉर्ड किये गए कारणों को पेश करना पड़ता है.
लेकिन लोकप्रिय मोदी सरकार ने अब उपरोक्त धारा 132(1) से सम्बंधित प्रावधान को 1 अप्रैल, 1962 व धारा 132(1A) से सम्बंधित प्रावधान को 1 अक्टूबर, 1975 से भूतलक्षी प्रभाव से क़ानून बनाया गया कि अब इन कारणों को आयकर ट्रिब्यूनल को भी बताने की कोई आवश्यकता नहीं होगी. आपको जानकारी में होना चाहिए कि धारा 132(1A) का क़ानून 1 अक्टूबर, 1975 से ही लागू हुआ था जबकि धारा 132(1) का सम्बंधित क़ानून 1 अप्रैल, 1962 से ही लागू हुआ था जिस दिन आयकर अधिनियम, 1961 भी लागू हुआ था.
सम्बंधित प्रावधान के कुछ मामलों में देखा गया है कि बिना कारण रिकॉर्ड किये ही सर्च कर दी जाती है. ऐसी स्थिति में अन्याय होने की संभावनाए बढ़ जायेगी. हालाकि नकारात्मक प्रावधान के अभाव में हाई कोर्ट / सुप्रीम कोर्ट पर कारण पूछने पर अब भी कोई पाबंदी नहीं लगाईं गयी है लेकिन हाई कोर्ट / सुप्रीम कोर्ट तक जाने व न्याय लेने की हेसियत कितने करदाताओ की है.
लेकिन मेरे स्वयं के पास एक राजसमन्द / उदयपुर (राजस्थान) का उदाहरण है जिसमे बिना किसी कारण व औथोराइजेसन के सर्च कर दी गयी थी. ऐसी गलतियों व तानाशाही पूर्ण ज्यादतियों को ढकने के लिए यह अन्याय पूर्ण क़ानून बनाया गया है ताकि पुराने मामलों में भी कोई कारण नहीं पूछ सके. इस तरह से विभाग के अधिकारियों की मनमानी करने की पूरी-पूरी संभावना रहेगी लेकिन इससे इंस्पेक्टर राज के लोटने की संभावना की बात में कोई दम नहीं है.
लेखक : सीए के.सी.मूंदड़ा (CA K. C. Moondra)
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