चुनाव आयोग (Election Commission) में निष्पक्षता की कमी के कारण देश का लोकतंत्र खतरे में (Democracy in Danger) ?
चुनाव आयोग (Election Commission) में निष्पक्षता की कमी के कारण देश का लोकतंत्र खतरे में (Democracy in Danger)?
कई ताजा घटनाओं से ऐसा स्पष्टसा दिख रहा है कि भारत के चुनाव आयोग ( Election Commission Of India) की निष्पक्षता में भारी कमी आ चुकी है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि देश का लोकतंत्र खतरे में है. यह भी संभावना हो सकती है कि चुनाव आयोग में भी भ्रष्टाचार ( Corruption) का भारी बोलबाला हो चुका हो.
ताजा मामला कर्नाटक विधान सभा चुनावों (Election for Karnataka Assembly) का है जिसकी तारीख की घोषणा चुनाव आयोग से पहले बीजेपी आईटी सेल (BJP IT Cell) के प्रमुख अमित मालवीय व कांग्रेस आईटी सेल (Congress IT Cell) प्रमुख श्रीवत्स ने ट्विटर (Twitter) के जरिये कर डाली. चुनाव आयोग की घोषणा से लगभग 17 मिनट पहले इन दोनों ने घोषणा करके यह साबित कर दिया कि चुनाव आयोग के अन्दर तक इन लोगो की पहुच है जो कि देश के लोकतंत्र के अशुभ संकेत है.
यह मामला सिर्फ 17 मिनट का नहीं है बल्कि इन पार्टी के लोगो को पहले से सब कुछ पता था और हो सकता है, किसी एक पार्टी ने चुनाव आयोग में लोबिंग (Lobbying in Election Commission) करके अपनी सुविधा की तारीख फाइनल करवाई हो. अब चुनाव आयोग जांच करवाएगा और आयोग की साख बचाने के लिए किसी छोटे कर्मचारी को दोषी बता कर या किसी टीवी चैनल के माथे मंढकर, इस काण्ड में शामिल बीजेपी व कांग्रेस के नेताओ को बचा लेगा. यदि कोई टीवी चैनल का रोल है तो भी चुनाव आयोग की गोपनीयता की भारी पोल है. थोड़ी सी गंभीरता से देखे तो स्पष्ट दिख रहा है कि इन पार्टियों को बहुत पहले से सब कुछ मालूम था. यदि घोषणा करने में थोड़ी सी जल्द-बाजी नहीं की होती या चुनाव आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस (Press Conference of Election Commission) में थोड़ी सी देरी नहीं की होती तो इन पार्टियों व चुनाव आयोग के अन्तरंग संबंधो की पोल शायद नहीं खुल पाती.
गुजरात विधान सभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) की घोषणा के समय भी स्पष्ट दिख रहा था, चुनाव आयोग ने तब तक तारीख का एलान नहीं किया जब तक प्रधान-मंत्री जी के सारे सरकारी कार्यक्रम पूरे नहीं हो गए थे. उस समय भी चुनाव आयोग की काफी निंदा हुई थी लेकिन चुनाव आयोग ने कोई सबक नहीं सिखा.
अभी कुछ दिनों पहले ही कर्नाटक चुनाव के लिए एक नई पार्टी ‘नया भारत पार्टी’ (Naya Bharat Party) द्वारा मांगे गए चुनाव चिन्ह (Election Symbol) को चुनाव आयोग ने देने से मना इस आधार पर कर दिया कि उसके द्वारा माँगा गया चुनाव चिंह कर्नाटक चुनाव में उतरी आसाम आधारित मुस्लिमो की पार्टी ‘ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट’ (All India United Democratic Front) के चुनाव चिन्ह से मिलता-जुलता है जबकि यह बहाना सही नहीं था बल्कि सरासर पक्षपात पूर्ण था. यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि ‘नया भारत पार्टी’ वर्त्तमान केंद्र सरकार की नीतियों की मुखर विरोधी है. इस चुनाव चिन्ह के बहाने इस नई पार्टी को ‘कर्नाटक चुनाव’ में उतरने से रोक दिया गया.
यही नहीं, ईवीएम मशीन (EVM Machine) से जुड़े कई गंभीर प्रश्नों से युक्त एक आर.टी.आई. (RTI) की भी सूचना भी चुनाव आयोग ने देना उचित नहीं समझा और सूचना प्राप्त करने के लिए Electronics Corporations Of India Limited (ECIL) व Bharat Electronics Limited (BEL) का रास्ता दिखा दिया. चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम मशीन से जुड़े सवालों को टालना भी कुछ ‘दाल में कुछ काला’ (Daal me kuchh Kaala) की ओर संकेत करता है.
> Manish Mewara
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