जीएसटी की तकनीकी कमियों को देश भक्त व्यापारी ही क्यों भुगते ?
जीएसटी की तकनीकी कमियों को देश भक्त व्यापारी ही क्यों भुगते ?
व्यापारियों को भी शायद अभी तक समझ में आ चुका है कि वो मोदी सरकार के लिए व्यापारी कोई राजनीतिक फायदेमंद ग्रुप नहीं है, अत: मोदी सरकार उनकी कुछ भी सुनने वाली नहीं है. मोदी सरकार का एक ही लक्ष्य है कि जीएसटी को कमियों के बावजूद भी लागू किया जाए तथा नोटबंदी के समय जारी किये गए सेकड़ो आदेशो के जेसे ही तकनीकी कमियों को दूर करने के प्रयास किये जाते रहेंगे. यदि कमिया दूर नहीं होती है तो व्यापारी जाएगा कहां ? यदि उसे भारत में व्यापार करना है तो इन्तजार करेगा. समय अभाव के कारण, इस लेख में कुछ कमियों को ही यही नीचे लिस्ट आउट किया जा रहा है, यदि पाठको के पास भी यदि कोई बात / तकलीफ हो तो, देश की जनता को बताने के लिए तो आप भी नीचे कमेंट लिख सकते है, जिनका समावेश अगले लेखो में किया जा सकेगा –
- जीएसटी का रजिस्ट्रेशन ही नहीं मिल रहा है – इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी गडबडी तो यह है कि अभी भी लाखो व्यापारियों को रजिस्ट्रेशन ही नहीं मिल पा रहा है. खास तोर से आधार में मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड नहीं होने के कारण. सरकार ने आधार में मोबाइल नंबर रजिस्टर करने / करवाने के लगभग सारे रास्ते भी बंद कर दिए है. अत: इस कमी को दूर करने तक के समय को व्यापारी आराम करने या तीर्थ यात्रा में सदुपयोग कर सकता है.
- जीएसटी का एम्.आर.पी. पर असर – सरकारी बुद्धिजीवियो ने इस समस्या की भी कल्पना ही नहीं की और अब समाधान के लिए कुछ भी आदेश जारी कर रहे है. इस बाहुबली सरकार के अधिकारी भी कम बाहूबली नहीं है. एक आदेश में आदेश दिया गया है कि यदि एम्.आर.पी. बढानी है तो स्टीकर लगादे तथा अखबारों में विज्ञापन देवे लेकिन यह स्टिक्कर व विज्ञापन का खर्चा कौन वहन करेगा? कोन क्या, वही मजबूर व्यापारी जिसके वोटो की कोई वैल्यू नहीं है. गलती पूरी सरकारी लेकिन नुकसान भुगते व्यापारी क्योकि देश में निशुल्क सेवा करने का ठेका सिर्फ व्यापारी का ही है. हाँ, जब तक स्टीकर नहीं छपते या विज्ञापन नहीं छपता, व्यापारी यातो पुरानी एम्.आर.पी पर ही माल बेच कर नुकसान खाए या फिर कुछ दिनों के लिए व्यापारे बंद रखे लेकिन उसे हड़ताल का नाम नहीं दे अन्यथा बोनस में डंडे भी खाने पद सकते है.
- पुरानी बिल बुक हुई रद्दी – हालाकि कुछ व्यापारी पुरानी बिल बुक को काम में लेने की जोखिम ले रहे है लेकिन सरकार की तरफ से व्यापारी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं. सरकार के इस नए क़ानून के अनुसार व्यापारी बिल बुक वाली सारी स्टेशनरी रद्दी में बेच दे, जो भी रद्दी से मिले उसे सरकार द्वारा मिला हर्जाना समझले. तकलीफ यह है कि प्रिंटिंग प्रेसो में लम्बी लाइन है और बिल बुक या कुछ भी छपवाना संभव नहीं हो रहा है. ऐसी स्थिति में व्यापारी क्या करे ? नई बिल-बुको का खर्चा भी व्यापारी को ही भुगतना है, साथ-साथ बिल बुक या जरूरी स्टेशनरी छपने तक अपना व्यापार भी बंद रखना है.
- वकील, सीए या अन्य तरह के कर सलाहकारो के बिना कुछ भी संभव नहीं है – जीएसटी राज में व्यापारी सरकारी कागजी / कंप्यूटर की कार्यवाही को बिना वकील, सीए या अन्य तरह के कर सलाहकारो की मदद के कुछ नहीं कर सकता है. अत: व्यापारी के सिर पर भारी खर्चे का बोझ डाला गया है, जिसकी भरपाई भी जीएसटी से नहीं, व्यापारी अपने जेब से करनी है.
शेष अगले लेख में …………………
- सीए के.सी.मूंदड़ा (कैलाश चंद्रा)