मंदी की ओर गिरती जा रही भारत की अर्थ-व्यवस्था के 10 बड़े कारण !
मंदी की ओर गिरती जा रही भारत की अर्थ-व्यवस्था के 10 बड़े कारण !
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आजकल यह चर्चा जोरो पर है कि देश व्यापक मंदी की और बढ़ रहा है, बेरोजगारी बढ़ रही है. राजनेता ही नहीं, कई उद्योगपति, अर्थ शास्त्री और विचारक भी बोलने की हिम्मत करने लग गए है. लेकिन देश की अधिसंख्य जनता को मोदी जी के वोट करिश्मे के आगे ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है. इसलिए जो भी कुछ मुट्ठी भर लोग मंदी या बेरोजगारी की बात कर रहे है, उनकी बात कौन सुनने वाला है.
हकीकत क्या है ? मंदी से अर्थ ‘चीजो के भाव कम होने से नहीं है’ – आर्थिक मंदी से अर्थ है, मांग में कमी. क्या गाडियों की बिक्री कम होना, हवाई ट्रैफिक/ फ्लाइट्स कम होना या टाटा से जुडी की सेकड़ो इकाइयों का बंद होना या मारूति सहित कई कंपनियों में छटनी होना, व्यापक मंदी की और इशारा करती है या मामला कुछ और है. ये कुछ बाते तो संगठित क्षेत्र के उद्दाहरण मात्र है, लेकिन हमारा मानना है कि इसे सिर्फ मंदी का दौर मानना सही नहीं है क्योकि उसे तो चीन-अमेरिका के झगड़े और अंतरार्ष्ट्रीय मंदी की बात से जोड़ कर बहुत छोटी कर दी जायेगी.
हमारा मानना है कि देश की अर्थ-व्यवस्था बहुत बुरी हालत की ओर बढ़ रही है क्योकि देश का व्यापार-वाणिज्य का बहुत बुरा हाल है जिससे चारो तरफ बेरोजगारी बढ़ेगी, देश का गेर-सरकारी विकास रूक सा गया है. ऐसी हालत में सरकारों की राजस्व भी कम हो जायेगी जिससे सरकारी विकास भी धीरे-धीरे रूक जाएगा. जीडीपी रेट / रिवर्स रेपो रेट आदि कई बड़े-बड़े शब्दों का 99% भारतीय के समझ से बाहर है . क्या मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है, आजकल एक नया नारा सूना जा रहा है – जी हाँ, ‘मोदी है तो मंदी भी मुमकिन’ है.
लेकिन आप, हम और आम भारतीय क्या देख रहे है –
देश का ओद्योगिक विकास रूक सा गया है, आसपास देखे, आपको कोई नया छोटा उध्योग भी नजर नहीं आयेगा. किराने के खुदरा व्यापार को छोड़ दे तो अन्य सभी व्यापारों (ऑनलाइन व्यापार सहित) के टर्नओवर में भारी गिरावट है. हजारो ओद्योगिक फेक्ट्रिया बंद हो चुकी है या बंद होने की कगार पर है. कलिष्ठतम GST अभी तक ठिकाने नहीं आया जिससे आम व्यापारी दुखी व परेशान है. GST पर कई jokes बनाने लग गए. नया भारत ने गुजरात विधान-सभा चुनाव से पहले सरकार को जगाने का प्रयास किया था, GST से सिर्फ कुछ सीए लोगो या कर सलाहकारों को अवश्य ही नींद खराब करने वाला कुछ रोजगार मिला है, लेकिन सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुचा है.
सभी सरकारे मुख्य रूप से पेट्रोल-डीजल के वेट से चल रही है और अधिकाँश राज्य सरकारे केंद्र सरकार के सामने याचक / भिखारी बनी हुई है. सरकारी प्रोजेक्ट्स अच्छी संख्या में चल रहे है जिससे सरकारी प्रोजेक्ट्स पर आधारित उद्योग (जेसे-सीमेंट उद्योग) की हालत हाल-फिलहाल ठीक ठाक है. मिडिल क्लास व्यापार-वाणिज्य से जुड़े परिवारों के बच्चे पारिवारिक व्यापार-वाणिज्य को छोड़कर प्राइवेट नोकरिया पसंद कर रहे है और रोजगार के लिए विदेश जाना पहली पसंद होती जा रही है. सरकारी नौकरिया नहीं के बराबर आ रही है और सिर्फ सरकारी नौकरियों से देश का पेट नहीं भर सकता.
भावी अनिश्चय और अविश्वास के माहोल में औसत भारतीय खर्चो में कटौती करने लग गया है लेकिन उसके सामने अच्छी आय वाले बचत के रास्ते बहुत कम रह गए है. देश के व्यापार-वाणिज्य जगत में सरकार की नीतियों पर अविश्वास बढ़ता जा रहा है – आर्थिक घोटालो को निपटाने का तरीके, दिवालिया क़ानून, एक लाख से ज्यादा बैंक डिपाजिट पर सरकार की गारंटी नहीं, रोकड़ व्यवहार पर पाबंदिया, GST से सरकार व करदाताओ को भारी नुकसान, GST करदाताओ का भारी उत्पीडन आदि.
भारत की अर्थ-व्यवस्था में व्यापार-वाणिज्य क्षेत्र का प्रमुख स्थान है लेकिन सरकार की नजर में देश का व्यापार-वाणिज्य क्षेत्र का अर्थ-व्यवस्था में अंतिम स्थान है. सरकार सिर्फ सरकारी योजनाओं से वोट पक्के करते हुए उसे ही रोजगार उत्त्पन्न करने का जरिया मान रखा है. गरीब मतदाताओं को खुश करने के लिए व्यापार-वाणिज्य क्षेत्र से जुड़े लोगो को कर-चोर और काला धन वाला बताया जाता है या गालिया दी जाती है. किसी भी देश की अर्थ-व्यवस्था के विभिन्न अंगो का संयोजन (Cordination) ‘व्यापार-वाणिज्य’ ही करता है .
लगता है अभी तो ट्रेलर भी पूरा नहीं दिख रहा है, पूरी पिक्चर बाकी है. गिर रही अर्थ-व्यवस्था के 10 सबसे बड़े कारण ?
- नोट बंदी और
2. अधूरा GST
3. सरकार हमेशा चुनावी मोड में रहती है.
4. सरकार हमेशा पब्लिसिटी मोड में रहती है.
5. प्रजातंत्र की चौथी आँख और सरकार के लिए भी आँख-कान का काम करने वाला ‘प्रेस-मीडिया’ की चुप्पी.
6. अर्थ-व्यवस्था को बारीकी से समझने वाला कोई जननेता नहीं है मोदी सरकार के पास और पूरी कमान सरकारी अधिकारियो के भरोसे एक ही हाथ में है.
7. किसी भी देश की अर्थ-व्यवस्था का ‘संयोजन’ करने वाला ‘व्यापार-वाणिज्य क्षेत्र’ ‘मोदी अर्थ-व्यवस्था’ में अंतिम स्थान पर उपेक्षित है.
8. देश के आम आदमी के आर्थिक जगत में मोदी सरकार के प्रति भारी अविश्वसनीयता पैदा हो चुकी है.
9. देश का पूरा माध्यम वर्ग बचत मोड में आ चुका है.
10. मोदी जी से आर्थिक जगत में भी 370 को खारिज करने जेसे क्रांतिकारी और नए कदमो की उम्मीद थी लेकिन कुछ भी नया और क्रांतिकारी नहीं मिला जिससे जनता नाउम्मीद है.