व्यवहारिक रूप से भारतीय जनतंत्र नेताओं के लिए न कि जनता के लिए ?
व्यवहारिक रूप से भारतीय जनतंत्र (Indian Democracy) नेताओं के लिए न कि जनता के लिए ?
बैंक में मामूली नौकरी पाने के लिये एक भारतीय नागरिक (Indian Citizen) का कम से कम ग्रेजुएट ( Graduate) तो होना जरूरी है, लेकिन राजनीतिक नेता अंगूठा छाप ( Illitearate Politician ) हो तो भी भारत का वित्त मंत्री (Finance Minister) बन सकता है.
एक भारतीय नागरिक को सेना (Military) में एक मामूली सिपाही ( Soldier ) की नौकरी पाने के लिये डिग्री के साथ 10 किलोमीटेर दौड़ कर भी दिखाना होगा, लेकिन राजनीतिक नेता यदि अनपढ़ और लूला-लंगड़ा है, तो भी वह आर्मी (Army), नेवी (Navy) और ऐयर फोर्स (Air Force) का चीफ यानि रक्षा मंत्री (Defence Minister) बन सकता है.
जिस राजनीतिक नेता के पूरे खानदान में आज तक कोई स्कूल नहीं गया, वो राजनीतिक नेता देश का शिक्षामंत्री (Education Minister) बन सकता है और जिस नेता पर हजारों केस चल रहे हों, वो नेता पुलिस डिपार्टमेंट का चीफ यानिकि गृह मंत्री (Home Minister) बन सकता है.
सरकारी कर्मचारी (Government Employees) 30 से 35वर्ष की संतोषजनक सेवा (Satisfactory Service) करने के उपरांत भी पेंशन (Pension) की कोई गारंटी नहीं और प्राइवेट कर्मचारी (Private Employee) तो पेंशन का ख्वाब भी नहीं देख सकता जब कि मात्र 5 वर्ष से भी कम समय रहे विधायक (MLA) / सांसद (MP) / राजनीतिक नेता को पेंशन जिन्दगी भर गारंटी के साथ. राजनीतिक नेता चाहे तो सरकारी खर्चे पर एक साथ दो सीट से चुनाव लड़ सकता है, लेकिन जनतंत्र का प्रहरी मतदाता दो जगहों पर वोट नहीं डाल सकता. आम मतदाता (General Voter) जेल मे बंद हो तो वोट नहीं डाल सकता लेकिन राजनीतिक नेता (Political Leaders) जेल (Prison) मे रहते हुए चुनाव लड सकता है.
यदि कोई आम मतदाता कभी जेल की यात्रा कर आया हो तो जिंदगी भर सरकारी नोकरी नहीं कर सकता लेकिन राजनीतिक नेता चाहे जितनी बार भी हत्या (Murderer) या बलात्कार (Rapist) के मामले में जेल गया हो, फिर भी वो प्रधानमंत्री ( Prime Minister ) या राष्ट्रपति ( President ) तक बन सकता है.
हमें उपरोक्त कंटेंट का व्हात्सप्प श्री जयसिंह जी मेवाड़ा, जयपुर ( Shri Jai Singh Mewara Jaipur) से मिला. उनके अनुसार यह मूलत: किसी श्री देशपांडे ( Mr. Deshpande) द्वारा जारी किया गया है. हम लगभग इससे सहमत है, इसीलिये हम इसे कुछ मामूली से संशोधन के साथ जन-हित में नए शीर्षक के साथ प्रकाशित कर रहे है.