उदयपुर-सिरोही की कुछ आयकर सर्च अभी भी अधूरी – 10 लाख की अघोषित नकदी आयकर के लिए समर्पित (आयकर सर्च भाग – 4)
उदयपुर–सिरोही की कुछ आयकर सर्च अभी भी अधूरी – 10 लाख की अघोषित नकदी आयकर के लिए समर्पित (आयकर सर्च भाग – 4)
नोटबंदी के बाद सरकारी नीति के तहत देश भर में चलाये जा रहे आयकर सर्च-सर्वे की कार्यवाहियों के तहत सिरोही राजस्थान के प्रतिष्ठित शराब व्यवसायी महेंद्र टाक, उनके भागीदारो, व्यापारिक सहयोगियों, मित्रो व कर्मचारियों के घरो व व्यवसाय स्थलों आदि लगभग 18-19 ठिकानों पर 21.03.2017 की सुबह लगभग 5.30 बजे सशस्त्र (शायद राइफल धारी) पुलिस के सानिध्य में आयकर विभाग द्वारा शुरू की गयी कार्यवाहियो कल दिनांक 24.03.2017 को मोटे तोर पर पूरी हो चुकी है. उदयपुर के एक मामले में 10 लाख की अघोषित नकदी को सरेंडर भी करवाया गया है.
लेकिन कुछ स्थानों पर अभी भी सर्च की कार्यवाहियों अधूरी रह गयी है या जानबूझकर अधूरी रखी गयी है. सिरोही के महेंद्र मेवाडा (जिसका महेंद्र टाक से कोई सम्बन्ध ही नहीं है) के विरूद्ध की गयी सर्च की कार्यवाही सबसे पहले 22.03.2017 अपरान्ह में संपन्न हुई थी तथा सबसे अंत में उदयपुर की रिद्धि-सिद्धि की सर्च को दिनांक 24.03.2017 में आंशिक रूप से एक बार के लिए संपन्न दिखाया गया है.
पूरी सूचना तो नहीं मिल सकी लेकिन कुछ मामलों में सम्बंधित पार्टियों के लॉकर सीज किये हुए है , अत: जब तक लॉकर्स की तलाशी नहीं हो जाती, इन मामलों की सर्च अधूरी ही रहेगी. जयपुर में भी अशोक मेवाडा नामक व्यक्ति का आवासीय मकान बंद मिलने के कारण वहा सर्च प्रारम्भ ही नहीं हो सकी.
लेकिन उदयपुर की रिद्धि-सिद्धि के मामले में स्थिति बिलकुल अलग है. रिद्धि-सिद्धि की सर्च को पहले तो अनावश्यक रूप से लंबा किया गया. फिर रिद्धि-सिद्धि की सर्च दिनांक 24.03.2017 शत-प्रतिशत रूप से पूरी भी करली गयी लेकिन विभागीय प्रचलन / प्रथा के अनुसार सर्च समाप्ति पर एक तलाशी लिए जा चुके खुले कमरे में कुछ कागजी सामग्री डालकर उस कमरे को सीज दिखा कर इस सर्च को लंबित रखा गया है. इस तरह से उदयपुर की रिद्धि-सिद्धि की यह सर्च को फाइनल नहीं किया गया बल्कि इसे अटकाकर – लटकाकर रखा गया है.
रणनीतिक कार्यवाही – उदयपुर की रिद्धि-सिद्धि की इस सर्च को फाइनल नहीं करना व एक खुले कमरे में कुछ कागजी सामग्री डालकर उस कमरे को सीज दिखाना (Prohibitory Order / PO करना), विभागीय रणनीति का हिस्सा मात्र है. सेकड़ो मामलों में विभिन्न कोर्ट द्वारा ऐसी कार्यवाही को गेरकानूनी माना जाता रहा है लेकिन विभाग के अफसर अपनी मनमानी करते रहते है ताकि तात्कालिक रूप से कुछ न कुछ उपलब्धि हासिल की जा सके. लेकिन एक षडयंत्र के तहत एक खुले कमरे में कुछ कागजी सामग्री डालकर उस कमरे को सीज दिखाना, एक क्रिमिनल व गेर-कानूनी कृत्य है.
गेर-कानूनी Prohibitory Order / PO क्यों किये जाते है – साधारणतया ऐसे Prohibitory Order / PO मकान के किसी भाग के बंद मिलाने या चाबी नहीं मिलने या किसी वाजिब कारण से किया जाता है. लेकिन अभी तक इस छूट का विभागीय अफसरों द्वारा दुरूपयोग ही ज्यादा हुआ है. राजस्थान के जिला मुख्यालय पाली में तो श्याम सोनी के मामले में तो बिना दरवाजे वाले निर्माणाधीन भवन को भी कागजो में सीज (Prohibitory Order / PO) कर दिया गया था जिसे बाद में आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल ने गलत माना था. साधारणतया ऐसे गेर-कानूनी Prohibitory Order / PO निम्न गलत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किये जाते है –
- सर्च की समयावधि (Time Limitation) को लंबा खीचकर करदाता को परेशान करना व उस पर दबाव बनाना.
- सर्च में जितना ज्यादा दबाव बनेगा उतना ज्यादा अघोषित आय का सरेंडर मिलेगा और जितना ज्यादा सरेंडर / टैक्स वसूली होगी, उतना ज्यादा इनाम (Reward) सर्च करने वाली टीम को मिलेगा.
- सर्च कार्यवाही संबंधी समय-सीमा के क़ानून को धत्ता दिखाना यानिकि अप्रत्यक्ष रूप से क़ानून की समय सीमा व अपने कानूनी अधिकारों का दुरूपयोग करना (Misuse of Powers) .
- षड्यंत्र के तहत ऐसे बाद किये जाने वाले रूम को खोलने के बहाने अकेले में रिश्वत / भ्रष्टाचार आदि के लिए बातचीत करने का मौका (Opportunity) बनाना.
- ऊपर चर्चा किये गए रिद्धि-सिद्धि के मामले में यदि सप्ताह भर यानिकी 31 मार्च तक कमरा नहीं खोला गया तो कर-निर्धारण के लिए विभाग के अफसरों को एक साल एक्स्ट्रा समय मिल जाएगा यानी कि समयावधि को एक साल के लिए खिसकाने में सफलता मिल जायेगी.
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