क्या देश की राजनीति व मीडिया में चल रहा झूठ ठगी नहीं है
क्या देश की राजनीति व मीडिया में चल रहा झूठ ठगी नहीं है ?
कोई समय देश में यह माना जाता था कि सत्य की सदेव जीत होती है. इस सिद्धांत को “ सत्यमेव जयते “ के रूप में कई जगह देखा जा सकता है. आज भी इस सिद्धांत की दुहाई दी जाती है लेकिन सिर्फ अपने पक्ष में. वास्तविकता देखी जाए तो व्यवहारिक रूप से सिद्धांत को उलट कर दिया गया है – “ असत्यमेव जयते “ यानिकी झूठ की जीत होती है.
क्या अब वाकई झूठ जीत रहा है : वर्तमान भारतीय समाज में झूठ जीत रहा है या नहीं लेकिन झूठ चल बहुत रहा है. सोशल मीडिया के आते-आते यह हालत हो गयी है कि कुछ भी झूठ चला लो. झूठ का चलना या चलाना या जीतना इस बात पर निर्भर करता है कि झूठ बोलने वाला व्यक्ति कितना बड़ा है, कितना प्रभावशाली है, कितना विश्वसनीय है और बोलने में कितना प्रभावी है. इन हालातो में राजनेताओं के मोज हो गयी लेकिन झूठ बोलने में भारी कम्पटीशन बढ़ गया है. जो जितना दमदार झूठ बोल सकता है, वह ज्यादा चलता है और उसका झूठ एक बारगी तो प्रभावी हो जाता है.
क्या झूठ बोलना ठगी नहीं है : सोशल मीडिया के आते-आते यह हालत हो गयी है कि कुछ भी झूठ चला लो. क्या झूठ बोलकर आम नागरिक से कुछ भी लेना ठगी-धोखाधड़ी नहीं है. हकीकत तो यह है कि झूठ बोल कर सिर्फ नोट लेना ही ठगी-धोखाधड़ी नहीं है बल्कि झूठ बोल कर किसी से कुछ भी लेना ठगी-धोखाधड़ी ही है चाहे वो नोट के या वोट ले. जो भी नेता जनता से झूठ बोल कर वोट लेने में सफल हो जाता है, वो किसी ठग से कम नहीं होता है.
क्या झूठ बोलना कानूनन अपराध है : हकीकत में देश में झूठ बोलने का फैशन बन गया है. हमारे देश में झूठ बोलने की पूरी आजादी है, जब तक कि झूठ बोल कर ठगी-धोखाधड़ी नहीं कर ली हो या मान-हानि नहीं कर दी हो. लेकिन सजा बहुत कम लोगो को हो पाती है. लेकिन सीधे तोर पर झूठ बोलना देश में अपराध नहीं है. कायदे से झूठ बोल कर वोट लेना भी ठगी-धोखाधड़ी ही है लेकिन इसे साबित करना असंभव सा है.
पार्टी के अन्दर में तो सच बोलने वाले को तो तत्काल सजा भी मिलती है : पार्टी के अन्दर ही नहीं, राजनीति में तो सच बोलने की बड़ी सजा मिलती है. देश की राजनीति का तानाबाना ही झूठ के इर्दगिर्द चलता है. जब हमारे नेता ही झूठ से परहेज नहीं करते हो तो ‘यथा राजा तथा प्रजा” के सिद्धांत के अनुसार हर कोई झूठ ही तो बोलेगा.
भारत ने और कोई विकास हुआ या नहीं, झूठ का विकास खूब हुआ. हमारे नेता तो रणनीति व पार्टी लाइन के नाम पर चलते में झूठ बोलते रहते है. और तो और आजकल जनता भी समझने लग रही है कि नेताजी झूठ बोल रहा है लेकिन नेताजी फिर भी बेशर्मी से झूठ बोलते रहते है. फिर भी हमारे नेता जनता को इमानदारी का पाठ सिखाते है.
सारांशत: यही कहना उचित होगा कि “ असत्यमेव जयते ”
लेखक : कैलाश चंद्रा