Thursday, August 31, 2017

जीएसटी के लिए सभी सरकारे कम पड़ रही है लेकिन चीन से लड़ाई के लिए हमारे न्यूज़ चैनल्स ही काफी है ?  

जीएसटी के लिए सभी सरकारे कम पड़ रही है लेकिन चीन से लड़ाई के लिए हमारे न्यूज़ चैनल्स ही काफी है ?

 

आजकल देश भक्ति के नाम पर देश के कुछ राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स पर लम्बे समय तक चीन के साथ चल रहे डोकलाम विवाद व लद्दाख विवादों की लगातार रिपोर्टिंग हो रही है. इस पूरी रिपोर्टिंग में भारत सरकार का अधिकृत रूख / बयान कही नहीं होता या बहुत ही संक्षिप्त होता है. लेकिन इन राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स की रिपोर्टिंग रबड़ की तरह लम्बी, ओर लंबी होती रहती है.

राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स की रिपोर्टिंग को बार सुनने से एक ही एहसास होता है कि चीन से निपटने के लिए हमारे ये कुछ राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स ही प्रयाप्त है और सेना आदि की कोई जरूरत ही नहीं है. दिन भर राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स पर एक काल्पनिक युद्ध माहोल की या सनसनीखेज चर्चा करके चीन को बड़ा दुश्मन और अपने आप को बड़ा देश भक्त बताने की होड़ मची रहती है तथा चीन को बुरी तरह से हराने की बाते की जाती है.

मिलिट्री इंटेलिजेंस को यदि कुछ मालूम नहीं हो तो इन राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स के पास चीन की ताकत  की सारी जानकारिया उपलब्ध है. जिससे ऐसा लगता है कि सरकार इंटेलिजेंस पर अनावश्यक खर्चा करती है और राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स के पास उपलब्ध सामग्री मिलिट्री के लिए प्रयाप्त हो सकती है.

एक दिन एक खबर को शीर्षक दिया गया – “ चीन की अब खेर नहीं “.  आगे खबर यह थी पूर्वोत्तर में पी एम मोदी जी ने देश के एक सबसे लम्बे पूल का उदघाटन किया जिससे चीन बॉर्डर के पास जाने में सेना के समय में काफी बचत होगी. लेकिन समझ में यह नहीं आया कि इससे चीन की अब खेर केसे नहीं रहेगी? दूसरी तरफ आप राष्ट्रीय अखबारों को देखे, वहा कोई खबर दोहराई नहीं जाती, जबकि  राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स पर कई स्वयं द्वारा तेयार रिपोर्ट्स को कट-पेस्ट  के साथ कई दिनों – महीनो तक दिखाई जाती रहती है.

एक जन -चर्चा : जन-चर्चा यह चल रही  है कि ऐसे राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स की अनावश्यक व नकारात्मक रिपोर्टिंग भारत व चीन के बीच रिश्तो को भी सामान्य नहीं होने दे रही है. इन राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स पर चीन के खिलाफ तोहीन  भरे शब्दों को इश्तेमाल कर एक तरह से चीन को चिढाया जाता है जिससे ऐसी रिपोर्टिंग चीन को भड़काने के लिए आग में घी का काम करती है, जिससे रिश्ते सामान्य नहीं हो पा रहे है.

दूसरी जन-चर्चा : यह भी एक जन-चर्चा है कि यह सब कुछ राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स किसी निहीत उद्देश्य से  चीन के साथ के विवाद को जरूरत से ज्यादा तरजीह दे रहे है जिससे जीएसटी से बिगड़ी देश की हालत / अर्थव्यवस्था  की ज्यादा चर्चा ही ना हो. लाखो व्यापारी जीएसटी की तकनीकी असफलताओं के कारण अपना व्यापार ही नहीं कर पा रहे जिसकी चर्चा कही नहीं हो रही है. यही कारण है कि जीएसटी की कष्टों की कही कोई चर्चा ही नहीं होती.

हालाकि एक तथ्य यह भी है कि ज्योही कोई नई खबर जेसे ट्रेन दुर्घटना या बाढ़  या बड़ी दुर्घटनाओ   की खबर मिलती है, तब चीन विवाद मीडिया में कमजोर पड़ जाता है लेकिन ज्योही और कोई मुद्दा नहीं होता है तब पुन: चीन पुराण चालू कर दिया जाता है जबकि हकीकत यह कि भारत सरकार क्या कर रही है, वह मीडिया को कुछ भी पता नहीं है. सरकार को स्पष्ट: देश की अन्तराष्ट्रीय संबंधो को प्रभावित करने वाली बनावटी रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगानी चाहिए.

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