नेताओं और बाबाओं की जुगलबंदी देश का बेड़ा गर्क कर रही है.
नेताओं और बाबाओं की जुगलबंदी देश का बेड़ा गर्क कर रही है.
बाबा राम रहीम ने एक एक बार फिर देश के धार्मिक वातावरण को तार-तार और देश को शर्मशार कर दिया. बाबा राम रहीम ने तो सारी हदे पार दी और सभी स्थापित सीमाओ का उल्लंघन कर डाला. ऐसे बाबाओं के निन्दनीय कृत्यों से पूरा देश व ख़ासतोर पर हिन्दू समाज शर्मशार है. यह तो इस देश का भाग्य अच्छा है कि किसी न किसी कारण से ऐसे बाबाओं के पापो का घडा फुट जाता है और ऐसे बाबा नंगे हो जाते है.
इससे भी बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसे बाबाओं की निंदा करने वालो को धर्म विरोधी तक कहा जाता है क्योकि एक तरफ ऐसे बाबाओं (चाहे किसी भी धर्म का हो) के राजनेताओं से घनिष्ठ सम्बन्ध रहते है और दूसरी और ऐसे बाबाओं व जुड़े हुए नेताओं से जुड़े अंध भक्त अपने अपने आकाओं को बचाने के लिए धर्म का राग अलापने लग जाते है.
बाबा राम रहीम की शरण में लगभग हर पार्टी के नेता धोंकने जाते रहे और राजनीतिक फायदा लेने के चक्कर में उसे संरक्षण देते रहे. इस कार्य में न चोटाला की पार्टी पीछे रही, न ही कांग्रेस ओर न ही बीजेपी. हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनने पर तो पूरा हरियाणा मंत्रीमंडल राम रहीम को धोंकने गया और आशीर्वाद लेकर आया. और तो और 15 अगस्त, 2017 को ही राम रहीम के जन्म दिन पर हरियाणा के एक वरिष्ट मंत्री स्वयं सरकार की और से 50 लाख का चेक गिफ्ट देकर आये.
यह तो ताजा बानगी है, बाकी कोई भी पार्टी हरियाणा में इस महिमा मंडन में पीछे नहीं रही. स्वयं प्रधानमंत्री मोदीजी ने हरियाणा चुनाव के समय भी अप्रत्यक्ष रूप से ‘डेरा सच्चा सौदा’ का अपने भाषण में महिमा मंडन किया था. इससे पहले हरियाणा में एक और बाबा रामपाल के राजनीतिक नेताओं के साथ रहे सम्बन्ध, अब तो सब के सामने है.
यही नहीं माननीय प्रधानमंत्री जी के गुजरात मुख्यमंत्री काल में मोदीजी व तथाकथित बापू आशाराम की नजदीकिया व जुगलबंदी जग जाहिर है. यू ट्यूब पर विडियो भरे पड़े है. यह तो भला हो न्यायालय के आदेश का, जिसके कारण राजस्थान की तात्कालीन कांग्रेस सरकार भी उसकी गिरफ्तारी नहीं रूकवा सकी. जब इतने बड़े-बड़े नेता लोग आशाराम जेसे बाबाओं का महिमा मंडन करते है तो आम आदमी भी धोखे में आकर ऐसे बाबाओं पर विश्वास कर ही लेता है.
एक बात आप सभी पाठक नोट करेंगे कि जितना बड़ा पाखंडी बाबा, उसका बड़े-बड़े नेताओं से उतने ही ज्यादा प्रगाढ़ सम्बन्ध. हकीकत में दोनों (बाबा व नेता) को अपने-अपने अनुयायी / समर्थक चाहिए होते है जिससे दोनों एक दूसरे के पूरक बन जाते है. नेता अपने आप को बाबा के साथ दिखाकर बाबा के भक्तो के वोटो की उम्मीद करता है और बाबा नेता के साथ दिख कर अपना कद बढ़ा कर धार्मिक रूप से आस्थावान भक्तो के अपने साम्राज्य का विस्तार करते है.
बाबाओं व नेताओं की ऐसी ही जुगल बंदी से देश व समाज को शर्मशार होना पड़ रहा है तथा देश का बेड़ा गर्क किया जा रहा है. समय आ गया है, देश जनता इस जुगलबंदी को समझे और प्रत्येक ऐसे ढोंगी बाबाओं (चाहे किसी धर्म का हो) व उनसे जुड़े नेताओं के चक्कर में नहीं पड़े. अब तो अखाड़ा परिषद् ने भी 14 बाबाओं को फर्जी घोषित कर दिया है, जिससे भी ढोंगी बाबाओं पर नकेल लगेगी.