आखिर उत्तर प्रदेश जीत के मायने क्या है ?
आखिर उत्तर प्रदेश जीत के मायने क्या है ?
उत्तरप्रदेश की एतिहासिक व रिकॉर्ड तोड़ जीत पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जी व सम्पूर्ण भाजपा को बहुत-बहुत बधाई !!!
चुनाव के दोरान टीवी-अखबारों पर कई चर्चाये चली और अब भारी जीत के साथ भी कई चर्चाये चल रही है. हर टीवी, अखबार, लेखक, वक्ता अपनी-अपनी बात अपने-अपने तरीके से रख रहे है व समीक्षाए कर रहे है. इसी क्रम में इस जीत से कई मायने / सारांश निकल रहे है या निकाले जा सकते है, जिनके चलते यह जीत सुनिश्चित हुई –
- चुनाव लड़ना व जीतना, दोनों ही राजनीतिक प्रबंधकीय कलाए है लेकिन मात्र प्रशांत किशोर जेसी प्रबंधकीय सलाहों से या व्यापारिक प्रबंधकीय कलाओ से चुनाव नहीं जीता जा सकता है, कुछ सहायता अवश्य मिलती है. बिहार में विपक्ष की एक जुटता की वजह से बीजेपी हारी थी न कि प्रशांत किशोर की रणनीति से. अत: इससे प्रशांत किशोर को चाणक्य बताने वालो की गलत-फ़हमी भी दूर हुई होगी.
- बीजेपी ने अपनी गुप्त रणनीति से न केवल विपक्ष को एक नहीं होने दिया बल्कि एक चर्चा के अनुसार, समाजवादी पार्टी में बिखराव कराने व उसके बिखराव के रख-रखाव में भी बीजेपी की अपनी गुप्त रणनीति भी अपना काम करती रही. ‘बिहार चुनाव’ के समय भी विपक्षी महा गढ़बंधन से अंतिम समय में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी बाहर निकल गयी थी (लेकिन बिहार में समाजवादी पार्टी का कोई विशेष प्रभाव नहीं था). लेकिन उसके बावजूद मजबूत विपक्ष (भाजपा विरोधी) की एकता से ही बीजेपी हारी थी. कल्पना करे यदि सपा, बसपा व कांग्रेस का महा गढ़बंधन यु.पी. होता तो क्या यही परिणाम होते ?
- उत्तरप्रदेश ही नहीं, पूरे भारत में राजनीति में जातिवाद को हिंदुत्व-वाद व राष्ट्रीयता-वाद से ही पछाड़ा जा सकता है. यह बात पहले भी कई बार साबित हो चुकी है.
- सुप्रीम कोर्ट व चुनाव आयोग के दबाव के बावजूद, उत्तरप्रदेश में हिंदुत्व का कार्ड सफलता पूर्वक चला जिसे बहुत ही होशियारी से तीन तलाक, बुर्का, ईद पर बिजली, कब्रिस्तान, केराना, रोमियो ब्रिगेड, मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या आदि मुद्दों के माध्यम से सकारात्मक रूप से उठाया गया. हिंदुत्ववादियों के लिए हिंदुत्व ही राष्ट्रवाद है, अत: हिंदुत्ववादियों के लिए इस चुनाव में भी हिंदुत्व सबसे बड़ा मुद्दा था जिसके नीचे बाकी सारे मुद्दे नीचे दब गए. तीन तलाक, बुर्का, ईद पर बिजली, कब्रिस्तान, केराना, रोमियो ब्रिगेड व मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या आदि मुद्दे राम मंदिर जेसे पुराने पड़ चुके मुद्दे के मुकाबले ज्यादा ताजा, नए व प्रभावी मुद्दे थे.
- मोदी जी / भाजपा नेताओं की यह तो गजब की होशियारी रही कि तीन तलाक व बुर्के के मामले में एक तरफ हिंदुवादी शक्तियों के लिए मुस्लिम विरोध पैदा कर हिंदुत्व की ज्योति जला दी गयी और दूसरी तरफ तीन तलाक व बुर्के के मुद्दे से मुस्लिम महिलाओ के बीच मुस्लिम महिला सम्मान व मुस्लिम महिला आजादी की ज्योति जला दी गयी जिससे मुस्लिम समाज भी कुछ हद तक दो फाड़ हो गया जिससे कई मुस्लिम महिलाओ ने बीजेपी को वोट दिया है.
- हिन्दुस्तान की जनता / मतदाता निश्चित ही भूल्लकड़ है लेकिन इतनी भी भूल्लकड़ नहीं है कि कुछ दिनों पहले से चुनाव के एन वक्त तक तथा चुनाव के दोरान चले ‘यादव परिवाद’ का नाटकीय झगड़े / नाटक व ‘राजनीति में परिवारवाद’ को भूल जाए.
- मोदीजी ने अपनी वाक् पटुता से नोटबंदी को गरीबी-अमीरी से जोड़ दिया और गरीबो को अहसास करा दिया कि उनका यह कदम सिर्फ व्यापारियों, उद्योगपतियों, अमीरों व काले धन वालो बेईमानो के विरूद्ध ही है. जिससे व्यापारियों, उद्योगपतियों व अमीरों के विरूद्ध कुछ स्वाभाविक इर्ष्या का कुछ हद तक तुष्टीकरण हो गया और ‘नोट बंदी समर्थक गरीबो’ का एक अलग किस्म का अस्थाई वोट बैंक बन गया.
- इस तरह से ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर से कांग्रेस व वामपंथियों का एकाधिकार न केवल समाप्त कर दिया बल्कि उस पर काफी हद तक कब्जा कर लिया है. इस में कोई दो राय नहीं है कि मुफ्त गेस कनेक्शन, मुफ्त शोचालय व जन-धन खातो वाली योजनाओं से भाजपा का नव-प्रवेश देश के लाखो अछूते गरीब मतदाताओं घरो में भी हुआ.
- एक सभा में मोदीजी ने कहा था कि मोदी सोच रहा है, दिमांग लगा रहा है , “ आपके जन-धन खातो में जमा कराई रकम (काला धन) केसे आपकी हो जाए ”. ऐसे आशार्थी जन-धन खाता वाले गरीब भी निश्चित ही मोदी जी के वोटर बने होंगे. इसी तरह ऋण माफी के वादे के आशार्थी किसान भी निश्चित ही मोदी जी के वोटर बने होंगे..
- आर्थिक रूप से ताकतवर बीजेपी के पास नोट बंदी से घायल राहुल गांधी, अखिलेश यादव व मायावती के मुकाबले बीसियों कद्दावर नेताओं, वक्ताओं, केन्द्रीय मंत्रियो की प्रभावशाली फोज थी तथा प्रशांत किशोर से भी कही ज्यादा श्रेष्ठतम चुनावी प्रबंधन का कौशल था.
- सारांशत: उत्तरप्रदेश में भाजपा की एतिहासिक व रिकॉर्ड तोड़ जीत में 75% प्रतिशत सफलता का श्रेय हिंदुत्ववादियों के राष्ट्रवाद (हिंदुत्ववाद) को जाता है.