गेर-जरूरी नोटबंदी नासमझी व अदूरदर्शिता के कारण फ़ैल हुई थी – भारत अब कालेधन से मुक्त होकर ईमानदार नागरिको का देश !
गेर-जरूरी नोटबंदी नासमझी व अदूरदर्शिता के कारण फ़ैल हुई थी – भारत अब कालेधन से मुक्त होकर ईमानदार नागरिको का देश !
शायद पूरा हिन्दुस्तान मेरी इस बात से सहमत होगा कि 2016 में घोषित की गयी नोटबंदी मोदीजी का निजी निर्णय था जो उन्होंने अपने आप को देश के सबसे बड़े अर्थशास्त्री मानते हुए पूरे देश पर थोप दिया था. उनके अपने स्वयंभू अर्थशास्त्र के अनुसार, इससे पूरे देश का काला धन एक झटके में समाप्त हो जाएगा और वो देश के बहुत बड़े हीरो बन जायेंगे. शायद इसी नासमझी के कारण, ऐसा लगता है कि उन्होंने उत्तरी कोरिया जेसे तानाशाह कम्युनिष्ट राष्ट्र को अपना आदर्श बनाया और देश को नोट बंदी के गहरे खड्डे में धकेल दिया.
नोटबंदी गेर जरूरी क्यों थी ? : मोदीजी ने नोटबंदी लाने के लिए अपनी रिज़र्व बैंक गवर्नर तक को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था और अंतत: उनका यह कार्यक्रम नोटबदली कार्यक्रम में बदल गया. जिन भी घोषित उद्देश्यों के लिए इस नोटबंदी को किया गया था, उसके लिए इसकी जरूरत ही नहीं थी. यदि भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी या किसी भी विचारक सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) से राय भी ली होती तो देश के मात्र 5 -10% कालेधन के लिए पूरे देश को अराजकता में धकेलना नहीं पड़ता.
नोटबंदी नासमझी क्यों थी ? : मेरे जेसे किसी भी पढ़े-लिखे व्यक्ति या किसी अच्छे विचारक आयकर अधिकारी से ही राय ली होती तो इस नोटबदली के मुकाबले मात्र एक प्रतिशत खर्च, लागत, कष्ट व नुकसान से ही वो सब कुछ हासिल किया जा सकता था, जो मोदीजी नोट बंदी से चाहते थे लेकिन मोदी जी के नासमझ अर्थशास्त्र के कारण पूरे देश को कई सौ गुना खर्च, लागत, कष्ट, नुकसान भुगतना पडा और देश की अर्थ व्यवस्था का भट्टा और बेठ गया. इसीलिए मै दावे के साथ कहता हूँ कि नोटबंदी देश में दिखाई गयी सबसे बड़ी नासमझी थी.
नोटबंदी में अदूरदर्शिता क्यों थी ? : बड़े जोश-खरोश के साथ घोषणा तो कर दी गयी लेकिन इस बात की कोई गणना ही नहीं थी कि आगे क्या-क्या होने वाला है. ज्यो-ज्यो आगे बढे, नई-नई बीमारिया (तकलीफे) बढ़ती गयी और नया-नया इलाज करते रहे, लेकिन सरकार के इलाजो से ही सारे दो नंबर वाले के नोट, नए नोटों में बदल गये. काला धन यूं का यू ही रहा मात्र उसका रंग बदला. सरकार इलाज कर रही थी नोटबंदी को सफल करने के लिए और देश की पूरी जनता लगी हुई थी अपने, अपने पड़ोसियों, मित्रो, नियोक्ताओ, गुरुओ, शुभ चिंतको के नोटों का रंग बदलने में. यदि सरकार द्वारा देश के साथ बेईमानी नहीं की गयी होती तथा 31 मार्च तक नोट बदलते, तो पूरी दुनिया हम पर हंसती और हमारे चैनल पाकिस्तान व आतंकवाद पर मोदी जी गुणगान करते रहते. स्पष्ट है कि कही कोई दूरदर्शिता ही नहीं थी, नोटबंदी तो अँधेरे में मार करने वाला एक भटका हुआ लेकिन चमकता हुआ सुदर्शन चक्र था, जो किसी को घायल कर रहा था, किसी मार रहा था और किसी को बचा रहा था लेकिन उससे पूरा देश अवश्य घायल हो गया.
नोट बंदी ने भारत को ईमानदारो का देश साबित कर दिया : सुषमा जी को किडनी देने वाला मिला गया, सेना के नोजवानो को सहायता देने वाले मिल गए, बाढ़ व अन्य दुर्घटनाओ में साथ देने वाले मिल गए, लेकिन मोदीजी के सवा सो करोड़ मित्रो, भाई , बहनों, भाजपा समर्थको में से, देश को एक भी ऐसा देश भक्त या मोदी भक्त या भाजपा भक्त नहीं मिला जिसने आगे आकर कहा हो कि मेरे पास कालेधन का 500 या 1000 का एक भी नोट है.
जब घर में आग लगती है तो कोई इंसान पहले खुद के कपड़ो की आग बुझाता है, न कि परिवार के अन्य सदस्यों की. ऐसी हालात में, हर घर में आग लगाने के बाद मोदी जी की मदद कौन करता क्योकि हर कोई अपनी आग बुझाने में लगा था. यही कारण था कि कोई आन्दोलन नहीं हुआ जिसे मोदी जी अपनी जीत मान रहे थे. चलो मोदीजी सहित देश के हर देशवासी को खुश होना चाहिये कि भारत अब काले धन से मुक्त होकर ईमानदार नागरिको का देश बन चुका है.
लेखक : सीए कैलाश चंद्रा / सीए के.सी.मूंदड़ा / Kailash Chandra